N4N DESK : केंद्र में सरकार चाहे किसी पार्टी या गठबंधन की रही हो। चुनाव आयोग और सरकारी संस्थाओं पर पक्षपात करने का आरोपी लगते रहते हैं। आज दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल जहाँ ईडी पर पक्षपात करने का लगाते नहीं थकते हैं। वहीँ कई विपक्षी पार्टियों के नेता चुनाव आयोग और सीबीआई के दुरूपयोग का आरोप लगाते हैं। लेकिन एक दौर ऐसा भी था, जब विपक्ष में रही भारतीय जनता पार्टी ने चुनाव आयोग पर पक्षपात करने का आरोप लगाया था।
दरअसल भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी के रथयात्रा करने से कांग्रेस नेता अर्जुन सिंह बेहद नाराज थे। उन्होंने इस मामले को लेकर चुनाव आयोग में शिकायत दर्ज कराई थी। उन्होंने चुनाव आयोग से भाजपा की मान्यता रद्द करने और उसका चुनाव चिन्ह रद्द करने की मांग की थी। इस बीच टी.एन.शेषन मुख्य चुनाव आयुक्त बनाये गए थे। जिन्हें इस मामले की सुनवाई करनी थी। हालाँकि भाजपा की ओर से कहा गया था की किसी पार्टी की मान्यता रद्द करने का अधिकार चुनाव आयोग को नहीं है। न ही यह याचिका चुनाव आयोग के सुनने लायक है।
इसके बावजूद टी एन शेषन ने इस मामले की सुनवाई किया और भाजपा को तलब किया। जिसके बाद भाजपा ने चुनाव आयोग पर पक्षपात करने का आरोप लगाया था। हालाँकि टी.एन.शेषन ने 12 अप्रैल 1991 को अपना फैसला सुनाया। उन्होंने फैसला अर्जुन सिंह के पक्ष में दिया। लेकिन इस खिलाफ भाजपा नेताओं का गुस्सा फूट पड़ा। लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी व अन्य भाजपा नेताओं ने 15 अप्रैल को शेषण के फैसले के खिलाफ रैली की और गिरफ्तारी दी। उन्होंने ‘चुनाव आयोग को शेषण से बचाओ’ जैसे नारे लगाए।
इसी बीच, 16 अप्रैल को सभी राजनीतिक दलों की सहमति के आधार पर तय हुआ कि चुनाव चिह्न से जुड़े सभी विवाद आम चुनाव तक लंबित रख दिए जाएं। इस तरह बीजेपी को ‘कमल’ निशान का विकल्प तलाशने की जरूरत नहीं पड़ी और पार्टी ने ‘कमल’ निशान पर ही चुनाव लड़ा। इस तरह भाजपा का कमल निशान बच गया।