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बीजेपी का दलित दांव, SC-ST एक्ट को चुनाव में भुनाने की तैयारी

बीजेपी का दलित दांव, SC-ST एक्ट को चुनाव में भुनाने की तैयारी

PATNA : एससी- एसटी वोट बैंक को अपने पाले में लाने के लिए राजनीतिक खींचतान जारी है। जब से बीजेपी पर एससी- एसटी विरोधी होने का आरोप प्रचारित हुआ है, वह बेचैन है। वह खुद को इन वर्गों का सबसे बड़ा हिमायती बताने के लिए लगातार मशक्कत कर रही है। मंगलवार को पटना में बीजेपी के एससी- एसटी प्रकोष्ठ की कार्यशाला आयोजित हुई। इस मौके पर डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी ने कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट ने अत्याचार निवारण अधिनियम के पक्ष में फैसला नहीं दिया तो केन्द्र सरकार अध्यादेश लाएगी। हम इन वर्गों का अधिकार कम नहीं होने देंगे।

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सुशील मोदी ने कहा कि नरेन्द्र मोदी सरकार ने अत्याचार निवाराण अधिनियम 1989 को और मजबूत किया है। पहले इस कानून में 22 तरह के ही अपराध को शामिल गया था लेकिन मोदी सरकार ने अपराधों की संख्या 47 कर दी है। दंड के प्रावधान को और कठोर बनाया गया है। अब एससी- एसटी को पहले से अधिक सुरक्षा मिलेगी। इतना करने के बाद भी बीजेपी की छवि का खराब करने के लिए दुष्प्रचार किया जा रहा है।

ये राजनीति तब से शुरू हुई जब 20 मार्च 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने अत्याचार निवारण अधिनयम (एससी- एसटी एक्ट) के संबंध में कुछ दिशा निर्देश जारी किये थे। सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की पीठ ने कहा था कि क्या इस अधिनियम के प्रावधानों के दुरुपयोग को रोकने के लिए सुरक्षात्मक उपाय किये जा सकते हैं ? कोर्ट ने कहा था कि यदि सरकारी कर्मचारी के खिलाफ इस कानून के तहत FIR  करायी जाती है तो उसकी गिरफ्तारी तब तक नहीं हो जब तक कि उसको नियुक्त करने वाले अधिकारी की लिखित मंजूरी न मिल जाए। अगर किसी आम आदमी के खिलाफ इस तरह का मामला दर्ज हो तो उसकी गिरफ्तारी तब तक नहीं हो सकती जब तक कि पुलिस अधीक्षक इसकी लिखित मंजूरी न दे दें। अगर FIR  प्रथमदृष्टया दुर्भावनापूर्ण लगे तो अग्रिम जमानत पर भी गौर किया जा सकता है।

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सुप्रीम कोर्ट के इस दिशानिर्देश के बाद राजनीतिक विवाद शुरू हो गया। राजनीतिक दल ये कहने लगे कि अत्याचार निवारण अधिनियम में तत्काल गिरफ्तारी ही सबसे बड़ा सुरक्षा अधिकार था। अगर यही छीन लिया जाएगा तो एससी- एसटी को सुरक्षा कैसे मिलेगी। तब से अन्य राजनीतिक दलों के साथ साथ बीजेपी भी इस कानून में किसी संशोधन के खिलाफ है।

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