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चकाचौंध की दुनिया और लाखों की नौकरी छोड़कर ग्रामीण जीवनशैली को बढ़ावा दे रही है IIT पासाआउट पूजा

चकाचौंध की दुनिया और लाखों की नौकरी छोड़कर ग्रामीण जीवनशैली को बढ़ावा दे रही है IIT पासाआउट पूजा

डेस्क... जीवन में चाहे आप कितनी ऊंचाई पर चले जाइए, लेकिन अपने गांव या शहर की प्रगति को लेकर एक टीस हमेशा मन रहती है। चकाचौंधी भरी जिंदगी और लाखों की सैलरी मिलने का सपना हर किसी का होता है और कुछ लोग इस सपने को हकीकत में भी बदल लेते हैं, लेकिन उनके अंदर की जमीर अपने घर और गांव के लिए हमेशा जिंदा रहती है और वो उसे ही आगे बढ़ाने में खुश होते हैं। ऐसी ही एक बानगी देखने को मिली नालंदा जिले के बिहार शरीफ में, जहां आईआईटी की छात्रा पूजा अपने लाखों के पैकेज वाली नौकरी को छोड़कर गांव के लोगों को सिर्फ खेती ही नहीं बल्कि ग्रामीण जीवनशैली को बढ़ावा देना है। 

पूजा कहती हैं, मेरा मकसद खेती करना और सिखाना था। जब मैंने नौकरी छोड़ी थी ,तब मेरा पैकेज 22 लाख के आसपास था। अगर मैं नौकरी में रहती, तो अभी मेरा वेतन सालाना 33 लाख के करीब होता। जाहिर है कि खेती करके मैं इतना नहीं कमा रही हूं, लेकिन पहले से बहुत ज्यादा खुश और स्वस्थ हूं। वो कहती हैं, 'मैं बिल्कुल स्पष्ट थी कि खेती में इतनी कमाई नहीं होगी। लेकिन यहां मैंने जो कमाया है, उसे सिर्फ पैसों में नहीं गिना जा सकता। यहां मन की शांति बहुत है, स्वास्थ्य बेहतर है, तनाव नहीं है। मेरी असली कमाई यही है। मुझे अपने जीवन में फाइव एल- लव, लॉफ, लाइवलीहुड, लर्निंग और लिविंग, ये सभी एक ही जगह मिल रहा है।

आईआईटी से पासआउट हैं पूजा

IIT से पासआउट पूजा भारत की बड़ी सरकारी कंपनी GAIL (गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड) में शानदार नौकरी कर रहीं थीं। लेकिन जब-जब उन्हें अपने गांव की याद आती, उनका मन उदास हो जाता। मूलरूप से नालंदा जिले के बिहारशरीफ की रहने वाली पूजा भारती एक होनहार छात्रा थीं। 2005 में उन्होंने IIT की प्रवेश परीक्षा पास की और 2009 में मैकेनिकल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएट होते ही उनकी नौकरी GAIL में लग गई। पूजा का गांव में बड़ा घर था। खेत थे, बाग-बगीचे थे। शहर की नौकरी में उन्हें पैसा तो मिला, लेकिन सुकून नहीं।

यही वजह थी कि नौकरी में रहते हुए उन्हें जब भी प्रकृति के करीब जाने का मौका मिलता, वो गांव जातीं। IIT में पूजा के बैचमेट रहे मनीष ने पास आउट होने के बाद नौकरी करने के बजाए बिहार लौटकर खेती से जुड़ा स्टार्टअप शुरू किया। मनीष गांव में बेरोजगारी से दुखी थे और गांव के लोगों के लिए कुछ करना चाहते थे। पूजा को जब भी मौका मिलता, वो मनीष से ऑर्गेनिक खेती के बारे में बात करतीं। उन्होंने कई ऐसे गांवों का दौरा भी किया, जहां किसान ऑर्गेनिक खेती कर रहे थे।

अपने बैचमैट का मिला साथ

पूजा बताती हैं, 'मैं और मनीष खेती को लेकर बातें करते थे। मुझे ये एहसास हुआ कि कृषि क्षेत्र में ऐसे लोगों की जरूरत है, जो सोच-समझकर खेती करते हों, क्योंकि खेती से अधिकतर वो ही लोग जुड़े हैं, जिनके पास नौकरी या अपना कारोबार नहीं होता है। कोई और विकल्प ना होने की वजह से वे खेती करते हैं।' वो कहती हैं, 'मैंने 2015 में जॉब छोड़ी और उसके बाद अगले एक साल तक जैविक कृषि के बारे में सीखा। दीपक सचदे मेरे गुरू थे, पिछले साल अक्टूबर में उनकी मौत हो गई। उनसे मिलने के बाद आर्गेनिक फार्मिंग पर मेरा विश्वास और गहरा हुआ और मुझे लगा कि खेती का सही तरीका यही है।'

पूजा बताती हैं, 2016 में हमने बैक टु विलेज शुरू किया। इसका मकसद सिर्फ जैविक खेती करना नहीं, बल्कि ग्रामीण जीवनशैली को बढ़ावा देना है। हमने तय किया कि हमें शहर में नहीं, गांव की तरफ जाना है और वहां रोजगार के अवसर पैदा करने है। पूजा और मनीष ने सबसे पहले ओडिशा में काम शुरू किया। शुरुआत में सिर्फ वे दोनों ही साथ थे। एक-डेढ़ साल तक वो गांव जाते थे और किसानों को हो रही समस्याओं को समझते थे। फिर उन्हें ध्यान में रखकर सॉल्यूशन निकालते। धीरे-धीरे उनकी टीम बढ़ती गई और काम भी बढ़ता गया।

पूजा बताती हैं, 'हम लोग किसी कॉर्पोरेट की तरह काम नहीं करते हैं। हमारी टीम में सब बराबर हैं। ऐसे लोग भी हैं, जो दसवीं पास नहीं हैं। लेकिन उनका ओहदा अच्छे पढ़े-लिखों से ऊपर है। हम किसानों के लिए काम नहीं करते हैं, बल्कि किसानों के साथ काम करते हैं।'

क्या है बैक टु विलेज मॉडल

उनकी कंपनी बैक टु विलेज गांवों में उन्नत कृषि केंद्र चला रही है। अभी ओडिशा में उनके दस केंद्र चल रहे हैं। पूजा बताती हैं कि हम गांव के प्रोग्रेसिव किसान को ट्रेनिंग देते हैं और वहां एक छोटा सा दफ्तर और करीब दो एकड़ का फार्म शुरू करते हैं। हम अपने फार्म में ऑर्गेनिक तरीके से वही फसलें उगाते हैं, जो आमतौर पर वहां के किसान उगाते हैं। हम किसानों को उनके पास ऑर्गेनिक खेती करके दिखाते हैं। जब किसान देखते हैं कि कम खर्च में बेहतर पैदावार हो रही है, तो वो भी प्रेरित होते हैं। 



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