DESK: बिहार में लोक आस्था का महापर्व चैती छठ का चार दिवसीय अनुष्ठान शुरू हो चुका है. नहाए खाए के साथ इस पावन पर्व की शुरुआत हो गई है. छठ पूजा मुख्य रूप से भगवान भास्कर की उपासना का पर्व है. साल में दो बार छठ पूजा मनाई जाती है. पहला चैत्र मास में और दूसरा कार्तिक मास में. मान्यता है कि छठ पर्व में सूर्योपासना करने से छठ माता प्रसन्न होती है और परिवार में सुख, शांति, धन-धान्य से परिपूर्ण करती हैं.
इस बार कोरोना के बढ़ते मामलों की वजह से बिहार में पहले से ही आदेश जारी कर दिए गए हैं कि घाटों पर छठ पूजा का आयोजन नहीं हो सकेगा. इसलिए इस बार लोगों को अपने अपने घरों में ही भगवान भास्कर को अर्घ्य देना होगा. यह सही भी है क्योंकि जिस तरह से देश कोरोना की दूसरी लहर से जूझ रहा है और बिहार में भी लगातार संक्रमितों की संख्या बढ़ रही है, लोगों को सुरक्षित रहने के लिए अपने घरों में ही त्योहार मनाने चाहिए.
सूर्योपासना के महापर्व में पहले दिन का अनुष्ठान ‘नहाए-खाए’ कहलाता है. नहाय खाय में लौकी की सब्जी, अरवा चावल, चने की दाल और आंवलाका प्रसाद बनाकर व्रती ग्रहण करती हैं. इस बार नहाए-खाए 16 अप्रैल को है. इसके बाद 17 अप्रैल को खरना होता है. इस दिन व्रती पूरे दिन व्रत रखती हैं. शाम में गुड़ की खीर, रोटी का प्रसाद ग्रहण करती हैं जिसके बाद शुरू होता है 36 घंटे का निर्जला व्रत. 18 अप्रैल को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा और 19 अप्रैल को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के बाद इस महापर्व का समापन हो जाएगा. जिसके बाद छठव्रती पारण कर सकतीं हैं.