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जातीय जनगणना के पक्षधर नेताओं के विचार और व्यवहार में अंतर को दर्शाता राजनेताओं का अंतर्धार्मिक विवाह

जातीय जनगणना के पक्षधर नेताओं के विचार और व्यवहार में अंतर को दर्शाता राजनेताओं का अंतर्धार्मिक विवाह

पटना. बिहार के राजनीतिक गलियारों में इन दिनों दो मुद्दों पर चर्चा है. एक जातीय जनगणना और दूसरा तेजस्वी यादव की शादी. राजद सुप्रीमो लालू यादव और बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के पुत्र तेजस्वी यादव बिहार में नेता प्रतिपक्ष हैं. उन्होंने 9 दिसम्बर को एक पारिवारिक समारोह में रेचल नामक लडकी से शादी की है जिसके हिंदू से इसाई बनने की बातें कही जा रही हैं. तेजस्वी के विवाह के बाद से उनके मामा साधु यादव ने लालू परिवार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. उन्होंने साफ तौर पर कहा है कि जब लालू यादव बिहार की राजनीती यादवों के नाम पर करते हैं तो उनके बेटे गैर धर्म और जाति की लड़की से शादी कैसे कर लिए?

साधु का सवाल कुछ मायनों में सही भी है. बिहार में इन दिनों सत्ताधारी जदयू और मुख्य विपक्षी दल राजद का जातीय जनगणना कराने के मुद्दे पर एक सुर है. दोनों ही दल जातीय जनगणना के फायदे गिनाने में लगे हैं. यहाँ तक कि केंद्र सरकार के स्पष्ट शब्दों में नकारने के बाद बिहार सरकार ने अपने खर्चे पर जातीय जनगणना कराने की बात कही है. तो सवाल लाजमी है कि जब राजनीति जाति के नाम पर हो और शादी गैर जातीय- धार्मिक लड़की से कर ली जाए तो क्या बात बात में जाति का हवाला देना मात्र राजनीतिक शिगूफा है. 

बिहार के दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों का कहना है कि जातीय जनगणना से बड़ा सामाजिक बदलाव आएगा. उचित प्रतिनिधित्व न मिलने वाली जातियों की स्पष्ट संख्या ज्ञात होने से उन्होंने हर क्षेत्र में बेहतर हिस्सेदारी देने की पहल की जा सकती है. जातियों की संख्या जानकर उस आधार पर राजनीतिक दल अपनी राजनीति जरुर साध लेंगे लेकिन जब निजी जीवन में वे कितने जातिवादी हैं यह देखना भी जरूरी है. 


तेजस्वी ही नहीं बिहार में कई ऐसे नेता हैं जो अपनी जाति को गोलबंद कर उनके नाम पर राजनीती करते रहे हैं लेकिन जब विवाह जैसे बंधनों में बंधने की बारी आई तो उन्होंने निजी जीवन में जाति को आड़े आने नहीं दिया. दिवंगत रामविलास पासवान ने जब दूसरी शादी की तो वह गैर बिरादरी में हुई. पप्पू यादव की पत्नी रंजीता रंजन भी अन्य जाति से हैं. भाजपा नेता शाहनवाज हुसैन ने भी गैर धार्मिक विवाह किया है. वहीं नेताओं के संतानों की लंबी सूची है जिन्होंने जाति से अलग जाकर विवाह किया. 

बिहार के मौजूदा दौर के नेता नीतीश-लालू के राजनीतिक प्रेरणास्रोत जयप्रकाश नारायण और राम मनोहर लोहिया ने दशकों पूर्व जाति बंधन तोड़ने की बात कही थी. वहीं नीतीश लालू के जमाने में यह बंधन टूटने के बजाय और ज्यादा मजबूत हुआ. यहाँ तक कि मंडल-कमंडल की राजनीती में पूरा बिहार झुलस गया था. अब एक बार फिर जातीय जनगणना के नाम पर जाति की महत्ता बताई जा रही है. 

तो तेजस्वी जैसे युवा का अंतरजातीय और धार्मिक विवाह करना इसे भी दर्शाता है कि जाति की राजनीती भले की जाए लेकिन अपने निजी जीवन के लिए राजनेता इससे अलग निर्णय करते हैं. अब सोचना बिहार के नागरिकों को है कि वे जिसे जातीय गौरव और अभिमान मानते हैं कहीं वे जाति के नाम पर बिहार को बरगलाने वाले राजनेता तो नहीं. 





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