PATNA : बिहार विधानसभा चुनावी की तारीखों के ऐलान के साथ ही अब सियासी दलों ने भी अपने कैंडिडेट की लिस्ट जारी कर दी है. पहले फेज के नामांकन के लिए 8 अक्टूबर अंतिम तारीख रखी गई है. लेकिन इस बार के चुनाव में राजनीतिक घटनाक्रम तेजी से बदला. पुरानी साथी अलग हो गए और नए साथियों ने पुराने साथियों की कमी दूर कर दी. वीआईपी चीफ मुकेश सहनी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. एनडीए के चिराग ने जाते जाते वीआईपी पार्टी को रोशनी दे दी.
चिराग के स्पेश को क्या भर पाएंगे सहनी
महागठबंधन से अलग होने के ऐलान के बाद मुकेश सहनी ने तेजस्वी पर कई आरोप लगाए. प्रेस कॉन्फ्रेंस कर 243 सीटों पर चुनाव लड़ने का दावा भी किया लेकिन उसके बाद सहनी चुपचाप दिल्ली निकल गए. जहां उन्होंने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष से गुपचुप मुलाकात की. तब तक लोजपा ने राजग से अलग होने का एलान कर दिया था. लोजपा के अलग होने के साथ ही बीजेपी को किसी ऐसे साथी ही दरकार थी जो पिछड़ा वर्ग से आता हो.
बीजेपी को लगा कि यह कमी सहनी शायद पूरा करते कर दें. लिहाजा एनडीए में चिराग वाला स्पेश खाली ही था और सहनी अलग थलग पड़े हुए थेा तो बात बन गई और सहनी भाजपा का हिस्सा हो गए. बता दें कि बिहार के निषाद समाज की आबादी करीब तीन से चार फीसद है. भले यह आंकड़ा वोट के लिहाज से छोटा हो लेकिन मुजफ्फरपुर, दरभंगा, औरंगाबाद और खगडिय़ा जैसे क्षेत्रों में निषाद कोटे का वोट निर्णायक होता है. लेकिन यह सच्चाई है कि यदि लोजपा ने राजग को अलविदा ना कहा होता तो सहनी भाजपा का हिस्सा कतई नहीं होते, लेकिन लोजपा ने सहनी की राह को आसान बना दिया और उन्हें नया आशियाना मिल ही गया.
अब देखना है कि भाजपा ने जिस मकसद से सहनी को अपने खेमे में बुलाया है क्या वो उसे पूरा कर पाते हैं? या चिराग पासवान की पहले से प्लानिंग एनडीए के लिए भारी पड़ती है. राजनीतिक बिसात बिछ चुका है अब आने वाला वक्त बताएगा कि भाजपा के लिए चिराग असरदार थे या सहनी.