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स्पेशल रिपोर्ट : चूके तो मांझी का होगा राजनीतिक पिंडदान, आसान नहीं है गया में जीत का परचम लहराना

स्पेशल रिपोर्ट : चूके तो मांझी का होगा राजनीतिक पिंडदान, आसान नहीं है गया में जीत का परचम लहराना

GAYA : पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने गया लोकसभा सीट से आज अपना नामांकन दाखिल कर दिया. महागठबंधन के वोट बैंक के बूते संसद पहुंचने की उम्मीद लिए मांझी लगातार दूसरी बार गया लोकसभा के चुनावी रण में उतरे हैं. मांझी 2014 के लोकसभा चुनाव में जेडीयू उम्मीदवार के तौर पर चुनाव मैदान में उतरे थे. तब मांझी को तीसरे स्थान से संतोष करना पड़ा था, उन्हें महज 1 लाख 31 हजार 828 वोट मिले थे जो कुल मतों का 16 फीसदी से थोड़ा ज्यादा था. मांझी तब अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए थे. 2014 में मांझी गया से चुनाव हारे तो मायूस होकर पटना लौटे लेकिन उनकी किस्मत ने ऐसा रंग बदला की चंद दिनों बाद ही वह बिहार के मुख्यमंत्री बन गए. लोकसभा चुनाव में मुंह की खाने के बाद नीतीश कुमार ने तब इस्तीफा देकर अपने कैबिनेट सहयोगी जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी थी. चुनाव में हार के बाद मांझी को जो तोहफा मिला वह राजनीति में शायद ही किसी को मिलता है.

गया लोकसभा क्षेत्र अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित सीट है. गया के वोटरों ने सभी राजनीतिक दलों को यहां मौका दिया है. इस सीट पर बीजेपी ने 4 दफे, कांग्रेस ने 6 बार, जनता दल ने 3 बार और राष्ट्रीय जनता दल बनने के बाद लालू प्रसाद के उम्मीदवार ने भी एक बार जीत हासिल की है. फिलहाल इस सीट पर बीजेपी का कब्जा है लेकिन बीजेपी ने अपने सीटिंग सांसद हरी मांझी का टिकट काटकर यह सीट अपने सहयोगी दल जेडीयू को दे दी है. जेडीयू ने जीतन राम मांझी के मुकाबले यहां से उन्हीं की जाति से आने वाले विजय मांझी को मैदान में उतारा है. विजय मांझी गया कि सांसद रह चुकीं भगवती देवी के बेटे हैं. गया के वोटरों ने साल 1996 में पत्थर तोड़ने वाली एक मजदूर महिला भागवती देवी को संसद भेजकर सबको चौंका दिया था. तब भागवती देवी को जनता दल ने उम्मीदवार बनाया था लेकिन आज उनके बेटे विजय मांझी जेडीयू के उम्मीदवार हैं. गया जीतन राम मांझी का गृह जिला है लेकिन बावजूद इसके यहां के वोटरों ने अबतक उन्हें संसद की सीढ़ियां चढ़ने का मौका नहीं दिया है. 2014 के चुनाव में मांझी जब जेडीयू के उम्मीदवार रहे तब उनकी पार्टी बिहार में अकेले चुनाव लड़ रही थी. देशभर में बीजेपी के लिए मोदी लहर तो थी ही साथ ही साथ गया में आरजेडी उम्मीदवार रामजी मांझी 2 लाख 10 हजार 726 वोट लेकर दूसरे स्थान पर रहे थे. नमो लहर में बीजेपी उम्मीदवार हरी मांझी ने 3 लाख 26 हजार 230 मत हासिल कर जीत तय की थी. वोट से जुड़े आंकड़ों की बात करें तो गया में कुल 16 लाख 98 हजार 772 मतदाता हैं. गया लोकसभा क्षेत्र में सबसे ज्यादा वोटर 'यादव' जाति के हैं. यहां कुल 20.24 फ़ीसदी वोटर 'यादव' जाति के हैं.  मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 13.60 प्रतिशत, राजपूत जाति के वोटर 4.95 प्रतिशत, भूमिहार 4.51 प्रतिशत, कोईरी जाति के मतदाता 7.11 प्रतिशत, मुसहर वोटर 5.35 फीसदी, पासवान वोटरों की तादाद 4.42 प्रतिशत और रविदास जाति का वोट 4.56 फीसदी है.

गया लोकसभा क्षेत्र में कुल 6 विधानसभा क्षेत्र हैं. इन सभी विधानसभा क्षेत्रों पर हर राजनीतिक दल की अपनी पकड़ है. मांझी औरंगाबाद लोकसभा क्षेत्र के अंदर आने वाले इमामगंज विधानसभा से विधायक हैं. 2015 के विधानसभा चुनाव में जब जीतन राम मांझी ने इमामगंज में जेडीयू उम्मीदवार उदय नारायण चौधरी को पटखनी दी थी तब मांझी एनडीए में थे. गया की बाकि 6 विधानसभा सीटों में से 3 पर आरजेडी, एक - एक सीट पर बीजेपी, जेडीयू और कांग्रेस का कब्जा है. 2 लाख 62 हजार 102 वोटरों वाले गया शहरी के विधानसभा क्षेत्र में बीजेपी का शुरू से दबदबा रहा है. वोटों के लिहाज से विधानसभा क्षेत्र का सीधा हिसाब नहीं होना इस सीट पर सभी आकलनों को उलझाए हुए है. लेकिन एक तरफ मांझी को गया से राजनीतिक मोक्ष का हासिल ना होना और दूसरी तरफ इस सीट पर राजेश कुमार से लेकर भागवती देवी जैसे उम्मीदवारों का जीत हासिल करना यह बताता है कि गया के मतदाता किसी डार्क हॉर्स पर दांव लगाने से भी नहीं चूकते हैं. अगर ऐसा हुआ तो जीतन राम मांझी का राजनीतिक पिंडदान गया में तय माना जा सकता है. मांझी के लिए असल मुश्किल यह भी है कि अपनी मजबूत पकड़ होने के बावजूद आरजेडी ने गया सीट सहयोगी दल हम को दे डाली है. ऐसे में आरजेडी के स्थानीय नेताओं में फैला असंतोष भितरघात की संभावना को बढ़ा रहा है. बीजेपी के सामने भी ऐसी ही परिस्थिति है लेकिन एनडीए के लिए राहत की बात यह है कि जेडीयू की भी अपनी अलग पकड़ रही है. एनडीए के उम्मीदवार विजय मांझी को बीजेपी के सवर्ण वोट बैंक का साथ मिलने का पूरा भरोसा है लेकिन जीतन राम मांझी मतदान के पहले तय तक इस संशय में रहेंगें कि आरजेडी का आधार वोट बैंक उनके लिए मजबूती से खड़ा होगा या नहीं. दांव पर जीतन राम मांझी की साख भी है और उनकी पार्टी 'हम' का भविष्य भी. चूके तो राजनीतिक पिंडदान हमेशा के लिए उन्हें बिहार की सियासी धारा में प्रवाहित मान लेगा. चुनाव नतीजों पर भविष्यवाणी सबसे बड़ा जोख़िम का काम है, हम तो केवल इतना कह सकते हैं महागठबंधन के नाव पर सवार जीतन राम मांझी जीत के किनारे लग जाएंगे इसकी गारंटी कोई नहीं दे सकता. 23 मई 2019 की तारीख बताएगी कि मांझी vs मांझी की लड़ाई में कौन लहरों से आगे निकलकर जीत हासिल करता है.

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