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चुनावी मौसम में हर मंच से गूंजेगा ये तीन नाम, जानिए कौन हैं वो

चुनावी मौसम में  हर मंच से गूंजेगा ये तीन नाम, जानिए कौन हैं वो

PATNA: 2019 लोकसभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी है. बिहार यूपी पर देश की नजर है. क्योकि ये दो स्टेट काफी हद तक देश की राजनीति को प्रभावित करने का माद्दा रखते है और यकीन मानिए राजनीतिक तौर पर ऐसी मान्यता भी है कि बिहार यूपी वाले राजनीति खूब समझते है. अब सवाल ये है कि जहां के लोग राजनीति खूब समझते है वहां के लोगों को किन तीन नामों के जरिए इमोशनली ब्लैकमेल किया जाता है. हर मंच से इन्हीं तीन लोगों के आदर्श की बात की जाती है. और ये तीन नाम हैं लोहिया, कर्पूरी और जेपी.

यूपी में पिछली बार नमो लहर की ऐसी बयार चली कि क्या मुलायम, क्या माया, क्या अखिलेश सभी हवा हवाई हो गए थे. लेकिन यूपी के मंच पर जब भी कोई समाजवादी नेता भाषण देता है तो लोहिया का जिक्र जरूर करता है. लेकिन जनता को अब तो समझना चाहिए की इतिहास अकाट्य सत्य है उसे हम भूल नहीं सकते लेकिन क्या मार्मिक भाषण और लोहिया के आदर्शों की बात करके कबतक देश में चुनाव होंगे. विकासील देशों की श्रेणी से हम कब विकसित बनेंगे इस बात का ध्यान रखकर हमें वोट करना चाहिए.

अब यदि बात बिहार कि करें तो पूरे बिहार के हर मंच से दो ही शब्द गूजेंगा...हम जेपी का शिष्य हूं. कर्पूरी के विचारों को मैं मानने वाला हूं... लेकिन जिस जेपी ने वंशवाद की राजनीति का हमेशा विरोध किया, लोकनायक जयप्रकाशजी का सबसे बड़ा आदर्श जिसने भारतीय जनजीवन को गहराई से प्रेरित किया, वह था कि उनमें सत्ता की लिप्सा नहीं थी, मोह नहीं था, वे खुद को सत्ता से दूर रखकर देशहित में सहमति की तलाश करते रहे. आज के दौर में उन्हीं के मानने वाले सिर्फ और सिर्फ पहले अपने परिवार के लोगों का टिकट कंफर्म करते हैं फिर किसी और कार्यकर्ता का.

अब यदि कर्पूरी को याद करें तो राजनीति में इतना लंबा सफ़र बिताने के बाद जब वो मरे तो अपने परिवार को विरासत में देने के लिए एक मकान तक उनके नाम नहीं था. ना तो पटना में, ना ही अपने पैतृक घर में वो एक इंच जमीन जोड़ पाए. जब करोड़ो रूपयों के घोटाले में आए दिन नेताओं के नाम उछल रहे हों, कर्पूरी जैसे नेता भी हुए, विश्वास ही नहीं होता. उनकी ईमानदारी के कई किस्से आज भी बिहार में आपको सुनने को मिलते हैं. उनसे जुड़े कुछ लोग बताते हैं कि कर्पूरी ठाकुर जब राज्य के मुख्यमंत्री थे तो उनके रिश्ते में उनके बहनोई उनके पास नौकरी के लिए गए और कहीं सिफारिश से नौकरी लगवाने के लिए कहा. उनकी बात सुनकर कर्पूरी ठाकुर गंभीर हो गए. उसके बाद अपनी जेब से पचास रुपये निकालकर उन्हें दिए और कहा, "जाइए, उस्तरा आदि खरीद लीजिए और अपना पुश्तैनी धंधा आरंभ कीजिए. अब सवाल ये है कि चुनाव के वक्त आज के नेता लोगों से वोट के लिए ऐसे नेताओं का जिक्र करते तो जरूर हैं लेकिन क्या किसी नेता का वर्तमान ऐसा है. 

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