बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लंबे समय से विपक्षी दलों की एकता बनाने की कोशिश की और उन्हें सफलता भी मिली इंडिया महागठबंधन ने साकार रुप लिया. गठबंधन तो बन गया लेकिन 'इंडिया' महागठबंधन की समन्वय समिति की तीन बैठक के बाद न तो संयोजक पद के लिए नाम तय हो सके हैं और न ही सीट बंटवारे को लेकर कोई सर्वमान्य रास्ता हीं निकल पाया है. विपक्षी दलों को एकजुट करने में प्रमुख भूमिका निभाने वाले नीतीश कुमार को पीएम पद के उम्मीदवार के रुप में फिर से मांग कर जदयू ने इंडिया गझबंदन के नेताों के माथे पर पसीना ला दिया है.
जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह के बाद मंत्री अशोक चौधरी ने नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री के लिए योग्य उम्मीदवार बता कर साथी दलों की चिंता बढ़ा दी है.मंत्री अशोक चौधरी ने कहा कि बिहार को छोड़ दीजिए देश के कई राज्यों के लोग नीतीश कुमार को पीएम देखना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि यदि सर्वे कराया जाए तो बहुत लोग चाहेंगे कि नीतीश कुमार प्रधानमंत्री बनें. चौधरी ने हालांकि यह भी कहा कि जो राजनीतिक परिदृश्य होगा उसके अनुसार आगे निर्णय लिया जाएगा.
याद कीजिए नीतीश ने जब विपक्षियों को एक करने करने की मुहिम शुरु की थी तो उनके पीएम उम्मदवार की चर्चा भी जोरों पर थी. विपक्षियों का इंडिया गठबंधन बना तो उम्मीद थी नीतीश को इसका संयोजक बनाया जाएगा. पीएम पद के उम्मीदवार पर लालू ने राहुल को दुल्हा बता कर और सभी को बराती बनने की बात कह कर नीतीश के पीएम पद के उम्मीदवारी पर ब्रेक लगा दिया है.
इंडिया महागठबंधन में अभी बहुत पेंच है. बिहार जैसे राज्य में भी विपक्ष को साझेदारी के लिए सीटों का बँटवारा करना होगा, जहाँ राष्ट्रीय जनता दल, जनता दल यूनाइटेड, कांग्रेस और वामपंथी पार्टियों की ‘महागठंबंधन’ की सरकार पिछले क़रीब एक साल से सत्ता में है. बिहार में बना महागठबंधन ही वह बुनियाद है, जिस पर राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा विरोधी दलों का ‘इंडिया’ गठबंधन बना है. जिस राज्य में विपक्षी गठबंधन में जितने ज़्यादा सहयोगी दल होंगे, वहां सीटों की साझेदारी में उतनी ही मुश्किलें आ सकती हैं.
बिहार में सीटों के बँटवारे का काम बेहद चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है.अगले साल के लोकसभा चुनाव में सीटों के बँटवारे पर कांग्रेस अपनी उम्मीदें कई बार ज़ाहिर कर चुकी है. बिहार प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद अखिलेश सिंह कहते हैं, “कांग्रेस की अपेक्षा यही होगी कि जहाँ हमारा मज़बूत जनाधार है, जहाँ से बड़े नेता चुनाव लड़ते रहे हैं, वो सारी सीटें नीतीश जी और लालू जी कांग्रेस के लिए छोड़ें. कांग्रेस ‘इंडिया’ गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी है और हमें उचित जगह मिलनी चाहिए.”माना जाता है कि कांग्रेस अगले साल के लोकसभा चुनावों में साझेदारी के तहत बिहार में क़रीब 9 सीटें चाहती है. साल 2019 के लोकसभा चुनावों में भी कांग्रेस ने इतनी ही सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे.
मुंबई की बैठक में इस बात की भी चर्चा थी कि केंद्र सरकार लोकसभा के चुनाव समय से पहले करा सकती है. ऐसे में हमें सीटों के बँटवारे पर भी काम शुरू कर देना है.”दीपांकर भट्टाचार्य का मानना है कि साल 2019 के लोकसभा चुनाव पूरे विपक्ष के लिए ख़राब रहे थे, उन चुनावों में बिहार की 40 में से 39 लोकसभा सीटें एनडीए ने जीती थीं.इसलिए उस आधार पर सीटों का बँटवारा नहीं हो सकता. बल्कि सीटों का बँटवारा साल 2020 के विधानसभा चुनावों के प्रदर्शन के आधार पर हो सकता है.
सीटों के बँटवारे के लिहाज से साल 2019 के लोकसभा चुनाव और साल 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के परिणाम में कई पेच फंसे हुए हैं.पिछले लोकसभा चुनावों में किशनगंज की एक मात्र सीट कांग्रेस के खाते में गई थी जबकि बीजेपी ने 17, जेडीयू 16 और एलजेपी ने 6 सीटों पर कब्ज़ा किया था.साल 2020 के विधानसभा चुनावों में महागठबंधन में जेडीयू शामिल नहीं थी और इसमें वामपंथी पार्टियों का प्रदर्शन बेहतर रहा था. उन चुनावों में सीपीआईएमएल ने 19 सीटों पर चुनाव लड़ा था और इसमें 12 सीटों पर उसकी जीत हुई थी.जबकि कांग्रेस ने साल 2020 के विधानसभा चुनावों में 70 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए थे, जिनमें 19 की जीत हुई थी. इस लिहाज से सीपीआईएमएल का दावा कांग्रेस के लगभग बराबर ही बैठता है.
सीटों के बँटवारे को लेकर सभी पार्टियों को अपना अहम छोड़ना होगा. लगातार दो बार लोकसभा चुनाव हारने के बाद विपक्षी दलों को इसका अहसास है कि अगर अब हारेंगे तो परेशानी और भी ज़्यादा बढ़ेगी. इसलिए सबको यथार्थवादी रवैया अपनाना होगा.साल 2019 के पिछले लोकसभा चुनाव में जेडीयू ने 17 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 16 पर जीत दर्ज की थी. उस वक़्त बीजेपी के साथ समझौते का भी जेडीयू को फ़ायदा हुआ था. ऐसे में उन सीटों पर दूसरे नंबर पर रहने वाले ‘इंडिया’ के सहयोगी दल भी अब अपना दावा पेश कर सकते हैं.
सीटों के इस समझौते के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर सबकी नज़र रहेगी.नीतीश विपक्षी एकता की कोशिश में लगे हुए थे और अब हो सकता है कि इसके लिए उन्हें अपनी कुछ सीटों की क़ुर्बानी देनी पड़े और इसकी राजनीतिकि प्रतिक्रिया भी दिलचस्प हो सकती है.