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जब तक CM नीतीश को चेताया जाता तब तक पूरा 'गिरोह' नीतीश कुमार जिंदाबाद करते मुख्यमंत्री के कमरे में पहुंच गया और फिर.....

जब तक CM नीतीश को चेताया जाता तब तक पूरा 'गिरोह' नीतीश कुमार जिंदाबाद करते मुख्यमंत्री के कमरे में पहुंच गया और फिर.....

PATNA: बिहार में विधान सभा के चुनाव हो रहे हैं।दोनों तरफ से आरोप-प्रत्यारोप के तीर चलाये जा रहे। इन सब के बीच हम आपको दो दशक पहले यानी सन 2000 में ले जाना चाहते हैं।वर्ष 2000 के विधानसभा का चुनाव काफी दिलचस्प रहा था।नीतीश कुमार की पार्टी बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही थी।दूसरी तरफ लालू यादव थे।तब उस चुनाव में एनडीए के सभी दल मिलाकर 122 सीटें आई थी और लालू प्रसाद की पार्टी को एनडीए से सिर्फ 2 सीटें अधिक यानी 124 सीटें। जब पक्ष और विपक्ष के बीच अँतर सिर्फ 2 सीटों का रह गया तो ऐसे में राज्यपाल ने बड़ी चाल चल दी। तब के राज्यपाल  विनोद पांडेय ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी।3 मार्च 2000 को नीतीश कुमार पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री  बन गए।

शहाबुद्दीन 8 कांग्रेसी विधायकों को बनाये हुए था बंधक

 विधान सभा में बहुमत के लिए नीतीश कुमार को हफ्ते भर का समय मिल गया। इसके बाद जोड़-तोड़ की राजनीति शुरू हो गई. एक तरफ लालू के वफादार मोहम्मद शहाबुद्दीन जो उस समय का सबसे खतरनाक और प्रभावशाली बदमाश था. उसने 8 कांग्रेसी विधायकों को पटना के सरकारी स्वामित्व वाली पाटलिपुत्र होटल में बंदूक के साए में बंधक बनाकर रखा.दूसरी तरफ जमानत पर जेल से छूटे लालू यादव ने सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल को फोन घुमाना शुरू कर दिया. तब लालू ने सोनिया को कहा कि बिहार को सांप्रदायिक ताकतों के हाथों में जाने से बचाएं मुझे और राबड़ी को सहारा दें. आपके लोगों का सरकार में बहुत-बहुत स्वागत है. अपनी कीमत बताएं मगर धर्मनिरपेक्ष ताकतों को निराश न करें. करीब 1 सप्ताह तक शहाबुद्दीन अपनी पैंट की जेब में एक तमंचा रखे पाटलिपुत्र होटल में दबे पांव चक्कर लगाता रहा। वह एक अच्छा निशानेबाज भी था, यह भी कहा जाता है कि घोड़ा दबाने में उसे जरा भी हिचक नहीं होती थी. उसके नौकर व गुमास्ते लालू के अपने दर्जनों ऐसे विधायकों पर निगरानी रखे थे जिनकी वफादारी संदेहजनक थी.

बाहुबलियों का सहयोग ले हाथ गंदा नहीं करना चाहते थे नीतीश

वहीं नीतीश कुमार को बाहुबली लोगों की मदद लेने से बहुत चिढ़ थी, लेकिन इस बार वह भी असल राजनीत में उंगली दबाने के लिए तैयार बैठे थे, बशर्ते उन पर कोई दाग न आए. ताकत का इस्तेमाल करने से उन्हें परहेज नहीं था, लेकिन वह अपने हाथ गंदे करना नहीं चाहते थे. उन्हें बताया गया कि कई निर्दलीय प्रत्याशी इस बार चुनाव जीते हैं और वह उन्हें समर्थन देने के लिए तैयार हैं . नीतीश को उन लोगों से मिलने तथा उन्हें समर्थन के बदले चढ़ावा देने का सुझाव दिया गया और कहा गया अगर बात बन जाती है तो गद्दी आपकी हो जाएगी. सूरजभान सिंह, सुनील पांडे, धूमल सिंह, राजन तिवारी, रामा सिंह,मुन्ना शुक्ला जैसे नेता चुनाव जीत कर आए थे. इन सभी लोगों का अपराध से गहरा नाता था. ऐसे अपराधी किस्म के विधायक अपनी जेल कोठियों में पोशाक धारण कर सहयोग वाला  दस्तखत करने के लिए तैयार बैठे थे ,बस नीतीश कुमार के बुलावे का इंतजार था. अपराधियों का यह गिरोह नई सरकार में सहयोगी बनने वाला था। नीतीश कुमार को यकीन दिलाया गया कि अगर वे एक बार सहमत हो जाएं तो समर्थन मिल जाएगा. 

यह गंदा काम करने बीड़ा मिश्रा जी ने उठाया

नीतीश कुमार का मन ललचा भी रहा था और उन्हें घुटन महसूस हो रही थी. एक तरफ जीवन का सपना पूरा करने का अवसर सामने था, दूसरी ओर सबके सामने अपराधियों को गले लगाना तथा कैबिनेट में अपनी बगल में बिठाने की कड़ी यातना नीतीश कुमार को बेचैन किए हुए था. रात भर वह सो नहीं सके.मदद जरूर चाहते थे लेकिन कीमत चुकाने की मांग पर नहीं .अंत में उन्होंने दागी विधायकों से समर्थन लेने का फैसला किया लेकिन यह काम स्वयं करने को तैयार नहीं हुए. तब बिहार के तत्कालीन सर्वे सर्वा नेता कैलाशपति मिश्र को इस काम का बोझ अपने सिर उठाने का बीड़ा लिया. समर्थन प्राप्त करने के लिए वे स्वयं बेउर जेल के अंदर गए और बाहुबली विधायकों से कई वायदे किए.

और नीतीश जिंदाबाद चिल्लाते पहुंच गए वो लोग

नीतीश कुमार मुख्यमंत्री की शपथ ले चुके थे और अब विधानसभा में नए सदस्यों का शपथ ग्रहण हो रहा था. कई ऐसे सदस्य थे जो सीधे जेल से आ रहे थे. इस बार इन विधायकों के बारे में खूब चर्चा थी. इसके लिए सबसे प्रमुख कारण था कि वे नीतीश कुमार के समर्थन में खड़े हो रहे थे. उधर नीतीश कुमार मुख्यमंत्री के कक्ष में कुर्सी पर सहमे हुए बैठे हुए थे.  जिस कुर्सी को पाने के लिए  लंबी प्रतीक्षा करनी पड़ी और अब उस पर बैठे हों फिर भी परेशान थे। उन्हें चिंता थी कि  जिस अपराधी विधायकों से वे समर्थन ले रहे हैं  उनसे कैसे मुलाकात करेंगे.....।  लिहाजा उन्होंने  संदेशा भिजवाया की  वह कैदियों से भेंट नहीं करेंगे.  सबके सामने तो किसी भी कीमत पर नहीं .इसी बीच  बेऊर जेल से सभी बाहुबली विधायकों को शपथ ग्रहण के लिए विधानसभा लाया गया.  यह विधायक अल्पमत की सरकार बनाए रखने के लिए अपनी पूरी कीमत चाहते थे. वे विधायक सत्ता केंद्र तक अपनी पहुंच को औपचारिक रूप से घोषित करने  का प्रमाण चाहते थे.  लिहाजा शुरुआती दौर में नए मुख्यमंत्री के साथ  एक फोटो की चाहत थी। नीतीश कुमार को इन विधायकों की मंशा बताई जाती इसके पहले ही  पूरा का पूरा गिरोह  नीतीश कुमार जिंदाबाद चिल्लाते हुए  मुख्यमंत्री के कमरे में जा पहुंचा.  वे विधायक फोटो खींचने वालों को भी साथ लेकर ही आए थे.  कैमरा का फ्लैश चमकने लगा और  मुख्यमंत्री नीतीश कुमार  बाहुबलियों के साथ गले मिलते कैमरे में कैद कर लिए गए. आखिर  मुख्यमंत्री कर भी क्या सकते थे,  हाथ मलते  रह गए  और कुछ मिला भी नहीं. नीतीश कुमार शक्ति परीक्षण के पहले ही  अपने पद से इस्तीफा दे दिया और एक बार फिर से  राबड़ी देवी बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर लौट गई नीतीश कुमार वापस दिल्ली लौट गए।

साभारः बंधु बिहारी

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