बिहार उत्तरप्रदेश मध्यप्रदेश उत्तराखंड झारखंड छत्तीसगढ़ राजस्थान पंजाब हरियाणा हिमाचल प्रदेश दिल्ली पश्चिम बंगाल

LATEST NEWS

CONTEMPT OF SUPREME COURT : उम्मीदवारों के अतीत की जानकारी नहीं देने पर फंस गए राजद, बीजेपी, जदयू सहित नौ पार्टियां, सुप्रीम कोर्ट ने लगाया लाखों ₹ का जुर्माना

CONTEMPT OF SUPREME COURT : उम्मीदवारों के अतीत की जानकारी नहीं देने पर फंस गए राजद, बीजेपी, जदयू सहित नौ पार्टियां, सुप्रीम कोर्ट ने लगाया लाखों ₹ का जुर्माना

NEW DELHI/PATNA : पिछले साल विधानसभा चुनाव के दौरान उम्मीदवारों के अतीत (BACKGROUND) की जानकारी नहीं देने को लेकर राजद, बीजेपी, जदयू सहित बिहार के नौ राजनीतिक दल सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अनदेखी कर बुरी तरह से फंस गए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और जनता दल (यूनाइटेड) सहित नौ राजनीतिक दलों को अवमानना का दोषी ठहराया है। शीर्ष अदालत ने कहा कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले और राजनीति के अपराधीकरण में शामिल लोगों को सांसद और विधायक बनने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इन सभी पार्टियों पर आर्थिक जुर्माना भी लगाया है। संभवतः यह पहली बार है कि उम्मीदवारों की जानकारी नहीं देने पर राजनीतिक दलों को अवमानना का दोषी पाए जाने के साथ आर्थिक दंड भी लगाया गया है.

मामला 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश का पालन नहीं करने का है। 13 फरवरी, 2020 में दिए अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने इन राजनीतिक दलों को एक आदेश दिया था। इसमें कहा गया था कि उम्मीदवारों के चयन के 48 घंटे के भीतर या नॉमिनेशन से कम से कम दो सप्ताह पहले उनके अतीत का ब्योरा प्रकाशित करें।राजनीति में अपराधीकरण पर तल्ख टिप्पणी करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि राजनीतिक दल राजनीति से अपराध खत्म करने की दिशा में सही कदम नहीं उठा रहे हैं।

निर्वाचन आयोग की रिपोर्ट में 469 दागी उम्मीदवार

मामले मे निर्वाचन आयोग ने कहा था कि बिहार विधानसभा चुनाव में 10 राजनीतिक दलों ने आपराधिक पृष्ठभूमि वाले 469 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था। बेंच ने कहा कि केवल जीत के आधार पर क्रिमिनल बैकग्राउंड वाले उम्मीदवारों का चयन सुप्रीम कोर्ट के 13 फरवरी 2020 के निर्देश का उल्लंघन है। जस्टिस आरएफ नरीमन और जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने कहा कि देश लगातार इंतजार कर रहा है और धैर्य खो रहा है। 

बेंच ने कहा कि राजनीति की प्रदूषित धारा को साफ करना सरकार की विधायी शाखा की तात्कालिक चिंताओं में शामिल नहीं है। बेंच ने दो राजनीतिक दलों-भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) पर पांच-पांच लाख रुपए का जुर्माना लगाते हुए कहा कि उन्होंने इस अदालत द्वारा जारी निर्देशों का बिल्कुल भी पालन नहीं किया है। जनता दल (यूनाइटेड), राष्ट्रीय जनता दल, लोक जनशक्ति पार्टी, कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी पर एक-एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया और उनसे आठ सप्ताह के भीतर निर्वाचन आयोग में रकम जमा करने को कहा। हालांकि रालोसपा पर कोई जुर्माना नहीं लगाया गया।

अपराधी बना रहे देश का कानून, यह सही नहीं

 फैसले में कहा गया कि कोई भी इस बात से इनकार नहीं कर सकता कि भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में अपराधीकरण का खतरा दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। बेंच ने कहा कि आपराधिक अतीत वाले व्यक्तियों और राजनीतिक व्यवस्था के अपराधीकरण में शामिल लोगों को कानून बनाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। कोई भी इस बात से इनकार नहीं कर सकता कि राजनीतिक व्यवस्था की शुद्धता बनाए रखने के लिए यह कदम बेहद जरूरी हैं। 

लोगों को जागरुक करने की आवश्यकता

कोर्ट ने निर्वाचन आयोग को जागरुकता अभियान चलाने का भी निर्देश दिया। इसके मुताबिक इस दौरान हर मतदाता को उसके जानने के अधिकार के बारे में बताया जाए। साथ ही सभी चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के आपराधिक अतीत के बारे में जानकारी की उपलब्धता के बारे में जागरूक किया जाए। आदेश में कहा गया कि यह सोशल मीडिया, वेबसाइट, टीवी विज्ञापनों, प्राइम टाइम डिबेट, पर्चा आदि सहित विभिन्न प्लेटफॉर्मों पर किया जाएगा। इस उद्देश्य के लिए चार सप्ताह की अवधि के भीतर एक कोष बनाया जाना चाहिए। 

बहरे हो गए हैं देश के कानून निर्माता
 71 पेज के फैसले में जस्टिस नरीमन ने कहा कि उन्हें भविष्य में सतर्क रहना चाहिए। साथ ही यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट के साथ-साथ निर्वाचन आयोग द्वारा जारी निर्देशों का अक्षरश: पालन हो। बेंच ने उम्मीदवारों के आपराधिक अतीत के बारे में विवरण प्रस्तुत करने के अपने पहले के निर्देशों में से एक को संशोधित किया। फैसले में कहा गया है कि शीर्ष अदालत बार-बार देश के कानून निर्माताओं से अपील करती रही है कि वे आवश्यक संशोधन लाने के लिए कदम उठाएं। ताकि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों की राजनीति में भागीदारी निषिद्ध हो सके। पीठ ने कहा कि ये सभी अपीलें बहरे कानों के सामने अनसुनी रह गयी हैं। 

Suggested News