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DM हो तो ऐसा, जिसने एक पिछड़े जिले को बना दिया पूरे देश का मॉडल जिला,कोरोना से जंग में रचा इतिहास

DM हो तो ऐसा, जिसने एक पिछड़े जिले को बना दिया पूरे देश का मॉडल जिला,कोरोना से जंग में रचा इतिहास

MUMBAI : कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित राज्यों में महाराष्ट्र टॉप पर है। राज्य में लगभग हर जिले महामारी से बुरी तरह से ग्रसित हैं। लेकिन इस सबके बीच एक जिला ऐसा भी हैं जहां कोरोना मरीज तो हैं, लेकिन उन्हें दूसरे जगहों की तुलना में न तो अस्पतालों में बेड के लिए मारामारी करने की जरुरत पड़ रही है और न ही ऑक्सीजन के लिए भटकना पड़ रहा है। यहां के डीएम ने पिछले एक साल में ऐसी व्यवस्था की है कि अब देश में यह ऐसा जिला बन गया है, जिसकी तारीफ रेल मंत्री से लेकर कई नेता कर रहे हैं और इस मॉडल को अपनाने की सलाह दे रहे हैं।

महाराष्ट्र के इस जिले का नंदूरबार। बेहद पिछड़े और आदिवासी बहुल नंदुरबार जिले ने पिछले साल महज 20 बेड्स के बूते कोविड से जंग शुरू की थी। आज यहां अस्पतालों में 1,289 बेड्स, कोविड केयर सेंटरों में 1,117 बेड्स और ग्रामीण अस्पतालों में 5620 बेड्स के साथ महामारी को काबू में करने के लिए मजबूत हेल्थकेयर सिस्टम खड़ा है। पीएचसी, स्कूलों, हॉस्टलों, सोसाइटियों और मंदिरों तक में बेड्स मुहैया करा दिए गए हैं। यही नहीं, 7,000 से ज्यादा आइसोलेशन बेड्स और 1,300 आईसीयू बेड्स भी उपलब्ध हैं।

ऑक्सीजन के मामले में आत्मनिर्भर
 
 कभी दूसरे जिलों पर निर्भर रहने वाला नंदुरबार आज अपने लिए खुद ऑक्सिजन बना रहा है। यह कमाल किया है यहां के जिलाधिकारी डॉ. राजेंद्र भरुड ने। 2013 बैच के आईएएस अधिकारी और मुंबई के केईएम अस्पताल से एमबीबीएस करने वाले डॉ. राजेंद्र भरुड ने कोरोना महामारी की दूसरी लहर की आहट समय रहते भांपकर दिसंबर से ही कारगर सिस्टम खड़ा करने की तैयारी शुरू कर दी थी। उन्होंने जिला विकास निधि और एसडीआरएफ के फंड से 3 ऑक्सिजन प्लांट लगवा दिए, जहां 3,000 लीटर प्रति मिनट ऑक्सिजन तैयार हो रही है। ऑक्सिजन बनाने के लिए लिक्विड टैंक लगाने का भी काम चल रहा है।

100 फीसदी आरटीपीसीआर टेस्ट की व्यवस्था 

नंदुरबार में पिछले साल औसतन 190 कोविड मरीज रोज मिलते थे, जो अब 1,200 तक पहुंच गए हैं। यह डॉ. भरुड की कोशिशों का ही नतीजा है कि कोरोना महामारी शुरू होते समय रोज नंदुरबार में 15-20 RTPCR टेस्ट की क्षमता अब करीब 100 गुनी होकर 1,500 तक पहुंच गई। कोविड मरीजों के लिए पिछले 3 महीने में 27 एंबुलेंस की खरीदी गईं।
 

गरीबी में पला था बचपन
 
 राजेंद्र खुद नंदुरबार जिले के साकरी तालुका में एक आदिवासी परिवार में पैदा हुए। उनके जन्‍म से पहले ही उनके पिता का देहांत हो गया। वह अपने परिवार की गरीबी केबारे में बताते हैं, हम इतने गरीब थे कि हमारे पास मेरे पिता का एक भी फोटो नहीं हैं। मुझे नहीं पता कि वह कैसे दिखते थे। बताया जाता है कि घर का खर्च चलाने के लिए उनकी मां महुआ के फूलों से शराब बनाकर बेचती थीं। राजेंद्र बचपन से पढ़ने में होशियार थे, स्‍थानीय स्‍कूल से पढ़ने के बाद वह जवाहर नवोदय विद्यालय में पढ़ने गए। इसके बाद मुंबई के सेठ जीएस मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस करने लगे। पढ़ाई के आखिरी साल में ही उनका पहली बार में ही यूपीएससी में सलेक्‍शन हो गया। 

आज जिले में उनके बनाए गए हेल्थ सिस्टम की तारीफ 

नंदूरबार के हेल्थ सिस्टम की तारीफ राज्य के हेल्थ मिनिस्टर राजेश टोपे, बायोकॉन चेयरपर्सन किरण मजमूदार शॉ, रेल मंत्री पीयूष गोयल और वरिष्ठ प्रशासक तुकाराम मुंडे तक ने की है और उन्हें कोरोना का रियल हीरो बताया है। टोपे ने तो पूरे राज्य में नंदुरबार मॉडल को अपनाने की घोषणा की है।
 
  नंदूरबार में पहले से यह किया इंतजाम

जहां देश में हाईकोर्ट के निर्देश पर अब  वेब पोर्टल का सहारा लिया जा रहा है, वहीं नंदूरबार जिले में पहले ही मेडिकल सेवा से जुड़े स्थानीय लोगों को खास ट्रेनिंग देकर उनकी सेवाएं ली गईं। जिला प्रशासन के आधिकारिक फेसबुक पेज, ट्विटर हैंडल और वेब पोर्टल पर निजी और सरकारी अस्पतालों में बेड्स, ऑक्सीजन और दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित की गई।  साथ ही  कंट्रोल रूम से 24 घंटे हेल्पलाइन नंबरों और सोशल मीडिया के जरिए लोगों को मदद पहुंचाई गई।

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