PATNA : केदार दास श्रम व समाज अध्ययन संस्थान द्वारा द्वारा आज " नवउदारवादी दौर में स्वास्थ्य नीति" विषय पर परिचर्चा का आयोजन किया गया। इस परिचर्चा में सामाजिक कार्यकर्ता, संस्कृतिकर्मी सहित विभिन्न संगठनों के लोग शामिल हुए।
परिचर्चा के दौरान अपने विचार व्यक्त करते हुए पटना के चर्चित चिकित्सक दा सत्यजीत ने अपने संबोधन में कहा कि हमारे देश में राजनीति में स्वास्थ्य मुद्दा नहीं बन पाया है। 180 देशों में हमारा स्थान 120 वें से भी पीछे है। जनता भी इस मामले में थोड़ी उदासीन है। हम हथियार खरीदने में तो दुनिया के देशों में चौथे पांचवें हैं लेकिन स्वास्थ्य में हमारा खर्चा बहुत कम है।
वहीं डॉ. विकास वाजपेयी ने कहा कि जनस्वास्थ्य और कुछ नहीं बल्कि बड़े पैमाने पर राजनीति है। जब तक राजनीतिन पर लगाम नहीं कसी जाएगी कुछ नहीं होगा। हमें लोगों को बीमार पड़ने से रोकना होगा। स्वास्थ्य संपूर्ण सामाजिक, मानिसक रूप से थील रखने की प्रक्रिया है। पश्चिम के देशों में जो स्वास्थ्य की बेहतरी हुई है उसकी वजह सिर्फ दवाइयों नहीं बल्कि कई दूसरे सामाजिक-आर्थिक कारण थे। ब्रिटिश उपनिवेशवाद के पहले भारत व चीन का विश्व सकल घरेलू उत्पाद में 56 प्रतिशत हिस्सा था जिसमें अकेले भारत का हिस्सा 27 प्रतिशत था। जब अंग्रेज़ देश छोड़ कर जाने लगे तब भारत का हिस्सा महज 1 प्रतिशत था। जाहिर है इसका स्वास्थ्य पर भी प्रभाव पड़ना था।
विकास वाजपेयी ने कीन्स आदि का उदाहरण देते हुए बताया कि पूंजीवादी अर्थव्यवस्था को नियमित करने की जरूरत है, सामाजिक क्षेत्र में खर्च करने की जरूरत है। हम जिसे नेहरूवियन समाजवाद कहते हैं दरअसल वो पूंजीपतियों द्वारा तैयार किया गया था क्योंकि उनके उपर आधारभूत संरचना का जिम्मा राज्य को खर्च करना चाहिए कुछ इस प्रकार की इसका लाभ निजी क्षेत्र को मिले।
वाजपेयी ने स्वास्थ्य संबंधी 1945-46 में बनी घूरे समिति की सिफारिशों का जिक्र करते हुए कहा कि बीमारियों के रोकथाम व इलाज दोनों के लिए राज्य की ही भूमिका होनी चाहिए। उस रिपोर्ट में सोवियत संघ की हतरीन स्वास्थ्य सेवा का हवाला दिया गया है। गहरे समिति ने स्वास्थ्य को ठीक करने के लिए गरीबी व बेरोजगारी को मिटाने की प्राथमिकता की बात की। जो लोग बीमार पड़ते हैं उसमें से 25 प्रतिशत गरीबी रेखाओ के नीचे चले जाते हैं। हमने आजतक वो भी हासिल न किया जिसे घूरे समिति ने दस साल में समाप्त करने की बात की थी।
उन्होंने चीन का उदाहरण देते हुए कहा कि चीन ने क्रांति के बाद यानी 1949 से ' बेयर फुट ' डॉक्टरों के माध्यम से आम लोगों की लाइफ एक्सपेटेंसी दुगनी कर दी, जिसे विकसित देशों को हासिल करने में सौ साल लग गए। चीन ने ये काम गांवो के डॉक्टरों को प्रशिक्षित करने के माध्यम से किया।
वाजपेयी ने कहा कि आज भी स्वास्थ्य पर खर्च करने के मामले में भारत दुनिया के सबसे नीचे के पांच देशों में आता है। हिन्दुतान में एक परिवार का 2 से 3 प्रतिशत तक स्वास्थ्य सेवा पर खर्च होता है। आज बड़े-बड़े सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल बनाने की बात होने लगी है, जबकि भारत जैसे बड़े देश मे कुपोषण से मुक्ति का काम आंगनबाड़ी केंद्रों द्वारा हो सकता है। हमने कम आबादी वाले पश्चिम देशों के स्वास्थ्य मॉडल का अनुकरण किया जो भारत जैसे विशाल आबादी वाले देश के लिए फिट नहीं बैठता है। अब बाजारू अर्थव्यवस्था नहीं बल्कि बाजारू समाज बनाया जा रहा है। एक ऐसा समाज जिसकी नैतिक मूल्यों को भी तय करता है। अब स्वास्थ्य नीति में जनस्वास्थ्य नही बल्कि आर्थिक वृद्धि के बात की जा रही है।
वहीं दिल्ली के अपोलो अस्पताल का जिक्र करते हुए विकास वाजपेयी ने बताया कि दिल्ली के अपोलो अस्पताल के 17 एकड़ जमीन मात्र 1 रुपये की कीमत पर दी गई है। अपोलो अस्पताल का पूरा भवन सरकारी खर्चे पर बना है। तब वादा था कि एक तिहाई गरीबों का इलाज ये अपोलो करेगा, लेकिन यदि कोई गरीब पहुंच जाए तो उसका गार्ड गेट पर ही इलाज कर देगा। यानी गरीबों के लिए वहां प्रवेश बेहद मुश्किल है। तमाम स्वास्थ्य सेवाएं मात्र 20 बड़े शहरों में ही केंद्रित है। नई स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ एक बहुत छोटे समूह के हाथों हुआ है।
परिचर्चा के दौरान मदन प्रसाद सिंह, अक्षय कुमार, रवींद्र नाथ राय, सतीश, जयप्रकाश ललन, डॉ गोपाल सिंह, अरुण कुमार, अनिल कुमार राय, एस. पी वर्मा, अवध कुमार, अरुण मिश्रा , विजय कुमार सिंह, जयप्रकाश, अमरनाथ , प्रमोद यादव, सुमन्त , अनीश अंकुर आदि मौजूद रहें।