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कुशवाहा की JDU में उल्टी गिनती शुरू ! CM नीतीश की खऱी-खरी.. दो-तीन दफे बाहर गए फिर खुद आ भी गए...उनकी इच्छा हमें मालूम नहीं

कुशवाहा की JDU में उल्टी गिनती शुरू ! CM नीतीश  की खऱी-खरी.. दो-तीन दफे बाहर गए फिर खुद आ भी गए...उनकी इच्छा हमें मालूम नहीं

PATNA: जेडीयू संसदीय बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा की उल्टी गिनती शुरू हो गई। भाजपा से गठबंधन की खबरों के बीच सीएम नीतीश ने कुशवाहा को लेकर बड़ा बयान दे दिया है. नीतीश कुमार ने साफ कर दिया कि सबको अपना-अपना अधिकार है, जो जहां जाना चाहे वो जा सकता है. वैसे वे दो-तीन बार पार्टी छोड़कर गए और फिर आ गए. बता दें, उपेन्द्र कुशवाहा का बयान इन दिनों काफी सुर्खियों में है. चाहे डिप्टी सीएम बनने की बात हो या फिर जेडीयू के कमजोर होने की. सहयोगी राजद पर भी उपेन्द्र कुशवाहा लगातार हमलावर हैं. कुशवाहा के इस बयान से जेडीयू नेतृत्व अंदर ही अंदर परेशान है. अब मुख्यमंत्री ने इशारों ही इशारों में कुशवाहा को लेकर अपना स्टैंड साफ कर दिया.  

जेडीयू में खुद आये कुशवाहा 

गया में समाधान यात्रा पर गए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मीडिया में खुलकर अपनी बात रखी. उनसे पूछा गया कि उपेन्द्र कुशवाहा से भाजपा के नेता मिल रहे हैं. क्या लगता है कि वे भाजपा से संपर्क में हैं ? इस पर सीएम नीतीश ने तपाक से कहा कि जरा उपेंद्र कुशवाहा जी से कह दीजिए न बतिया लेंगे. आगे कहा कि वह तो दो-तीन बार बाहर छोड़कर गए, फिर खुद आए. उनकी क्या इच्छा है हमको नहीं मालूम है. अभी तो उनकी तबीयत खराब है.बाहर है, पता चला है, हालचाल ले लेंगे. लेकिन कोई बात आ रही है. वैसे तो सबको अपना अपना अधिकार है. हाल ही में हमसे मिले थे तो पक्ष में बोल रहे थे. अगर ऐसी कोई बात है तो हम पूछ लेंगे. आयेंगे तो तो हम पूछ लेंगे कि क्या मामला है? 


कुशवाहा ने 2021 में अपनी पार्टी का जेडीयू में किया था विलय 

उपेन्द्र कुशवाहा 14  मार्च 2021 को जेडीयू में शामिल हुए थे। अपनी पार्टी रालोसपा का जेडीयू में विलय की घोषणा करते हुए उपेंद्र कुशवाहा ने कहा था कि यह देश और राज्य के हित में है. उन्होंने कहा था कि विलय वर्तमान राजनीतिक परिस्थिति की मांग थी. उपेंद्र कुशवाहा ने कहा, ''नीतीश कुमार मेरे बड़े भाई की तरह हैं. मैंने व्यक्तिगत रूप से हमेशा उनका सम्मान किया है. इसके पहले वे 2013 में जेडीयू से अलग हुए थे और अलग पार्टी बनाई थी. साल 2014 में कुशवाहा एनडीए में शामिल हो गए थे, जबकि नीतीश कुमार आरजेडी के साथ चले गए थे. 2014 में उपेंद्र कुशवाहा को तीन लोकसभा सीटें बिहार में मिली थीं और सभी पर जीत हुई थी. कुशवाहा मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में मंत्री भी बनाए गए. साल 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में कुशवाहा की पार्टी ने 23 सीटों पर चुनाव लड़ा था लेकिन महज़ तीन सीटों पर ही वो खाता खोल पाई थी.इसके बाद साल 2018 में कुशवाहा एनडीए से अलग हो गए थे.

साल 2000 के विधानसभा चुनाव में उपेन्द्र कुशवाहा ने जंदाहा सीट से ही चुनाव लड़ा और जीत हासिल की थी। चुनाव जीतने के बाद कुशवाहा, नीतीश कुमार के करीब आ गए। इसी का नतीजा था कि साल 2004 में जब सुशील मोदी लोकसभा चुनाव जीतकर केन्द्र में चले गए तो नीतीश के समर्थन से कुशवाहा बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बना दिए गए। इसके बाद इन्हें बिहार के भावी सीएम की कतार में भी गिना जाने लगा. 2005 में हुए विधानसभा के पहले चुनाव में उपेन्द्र कुशवाहा जंदाहा सीट से चुनाव हार गए। उस चुनाव में किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला और जोड़-तोड़ करने के बाद भी कोई पार्टी सरकार नहीं बना पायी। इसके बाद अक्टूबर 2005 में ही फिर से चुनाव हुए, लेकिन इस बार दलसिंहपुर सीट से उपेन्द्र कुशवाहा चुनाव हार गये. हार की वजह से नीतीश सरकार में इन्हें मंत्री नहीं बनाया जा सका। 

2005 के विधानसभा चुनाव में नीतीश के नेतृत्व में जदयू-भाजपा की सरकार बनी. उपेन्द्र कुशवाहा को इसमें जगह नहीं मिली। माना जाता है कि तभी से ही दोनों नेताओं के बीच मनमुटाव की शुरुआत हो गई थी। इसके बाद कुशवाहा ने नीतीश का साथ छोड़कर एनसीपी की सदस्यता ग्रहण कर ली। एनसीपी ने उन्हें पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया लेकिन महाराष्ट्र में उत्तर भारतीयों पर हुई हमलों की घटनाओं के बाद कुशवाहा ने एनसीपी भी छोड़ दी। साल 2009 में कुशवाहा की फिर से जदयू में एंट्री हुई और पार्टी ने उन्हें 2010 में राज्यसभा भी भेज दिया, लेकिन उस दौरान भी पार्टी लाइन से हटकर बयानबाजी करने के चलते उन्हें फिर से जदयू छोड़नी पड़ी। साल 2013 में उपेन्द्र कुशवाहा ने जेडीयू को छोड़कर जोरदार तरीके से पटना के गांधी मैदान से नई पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) के गठन का ऐलान किया. 


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