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'नियाग्रा ऑफ बिहार' ककोलत में जुटने सैलानियों की भीड़, लेकिन 'बिहार के कश्मीर' के लिए लोगों की सुविधा पर प्रशासन का ध्यान नहीं

'नियाग्रा ऑफ बिहार' ककोलत में जुटने सैलानियों की भीड़, लेकिन 'बिहार के कश्मीर' के लिए लोगों की सुविधा पर प्रशासन का ध्यान नहीं

NAWADA :  अपनी शीतलता के लिए प्रसिद्ध ककोलत में सैलानियों के पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया है। पूरा इलाका गुलजार होने लगा है। प्रतिदिन बड़ी संख्या में सैलानी ककोलत जलप्रपात का लुत्फ उठा रहे हैं। बिहार के कश्मीर के रूप में चर्चित ककोलत जलप्रपात में नवादा जिले के विभिन्न गांवों के साथ ही दूसरे जिले के सैलानी भी पहुंच रहे हैं। गर्मी की तपिश बढ़ने पर भीड़ में और इजाफा होने की उम्मीद है। स्थानीय लोगों का कहना है कि जैसे-जैसे गर्मी अपने परवान पर होगी, वैसे-वैसे पर्यटकों की भीड़ बढ़ेगी। राजगीर-बोधगया पहुंचने वाले विदेशी सैलानी भी ककोलत का लुत्फ उठाने पहुंचते हैं। फिलहाल विदेशी पर्यटक तो नहीं पहुंच रहे, लेकिन उनके आने की भी पूरी उम्मीद है।

बिहार का कश्मीर कहा जाता ककोलत को, नियाग्रा फॉल्स से होती है तुलना

बिहार की राजधानी पटना से 133 किमी की दूरी पर ककोलत जलप्रपात है। इसे लोग बिहार का कश्मीर भी बोलते हैं। इसकी अमेरिका के नियाग्रा जलप्रपात से तुलना की जाती है। ककोलत को 'नियाग्रा ऑफ बिहार' भी कहा जाता है। यह नवादा जिले में पहाड़ियों से घिरा हुआ है। गर्मी की शुरुआत होते ही यहां पर्यटकों की संख्या बढ़ने लगती है। करीब 150 मीटर की ऊंचाई से यहां पानी गिरता है, जो इसकी खूबसूरती को और भी बढ़ाता है।

आज तक पता नहीं चला कहां से आता है पानी

ककोलत जलप्रपात को लेकर धार्मिक मान्यता है कि महाभारत काल में ककोलत के समीप एक ऋषि के श्राप की वजह से राजा निग्र गिरगिट के रूप में वास करते थे। अज्ञातवास के दौरान पांडवों के आने से वे श्राप से मुक्त हुए थे। ककोलत जल प्रपात पहुंचने के एक किलोमीटर पहले से ही ठंडी हवाएं आपका स्वागत करने लगती है। करीब 150 मीटर की ऊंचाई से गिरने वाला पानी कई पहाड़ियों से गुजरते हुए यहां गिरता है। पानी के श्रोत के बारे में कई बार जानकारी लेने की कोशिश की गई। लेकिन, इसका पता नहीं चल सका।

शाम होते ही हो जाता है विरान 

ककोलत जल प्रपात कभी नक्सल प्रभावित इलाके में आता था। यहां आने से पहले लोगों को काफी कुछ सोचना पड़ता था। लेकिन, समय बदला तो व्यवस्थाएं भी बदली। सुरक्षा को लेकर उठ रहे सवाल धीरे-धीरे खत्म होने लगे। बड़ी संख्या में लोग अब यहां पहुंचते हैं।  यहां के पानी में भोजन भी बहुत जल्दी पकता है। साथ ही स्वाद भी गजब का होता है। हालांकि, शाम के बाद पर्यटक ककोलत जल प्रपात से निकलने लगते हैं। क्योंकि, अब तक यहां रहने की व्यवस्था नहीं की गई है।

पूर्ण कायापलट का इंतजार

बिहार के इस महत्वपूर्ण जलप्रपात को  लंबे समय तक कोई सुविधा नहीं थी। 2009 में इसके सौंदर्यीकरण की योजना बनी। लेकिनन भूमि के चलते इसके निदान में छह साल लग गए। 2015 में 12.3 एकड़ भूमि स्थानांतरण की प्रक्रिया के बाद 11.65 करोड़ रुपए की योजना से वन विभाग के जरिए काम शुरू हुआ। 2018 तक 2.27 करोड़ से सीढ़ियां, तीन कल्वर्ट जैसे कुछ काम हुए। लेकिन आज भी इस पर्यटन के इस महत्वपूर्ण स्थान को लेकर सरकार और प्रशासन का रवैया उदासीन है।


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