NEW DEHLI : एक सप्ताह से आयुर्वेद और एलोपैथ को लेकर चल रहे विवाद में दिल्ली हाईकोर्ट में सख्त टिप्पणी की है। हाईकोर्ट ने इसे फिजूल का मामला करार दिया है। कोर्ट ने कहा कि आयुर्वेद या ऐलोपैथ में कौन बेहतर है, इस पर कोई भी अपनी व्यक्तिगत राय दे सकता है, इस मामले में कोर्ट में मुकदमा करने का क्या औचित्य है?
दरअसल, योग गुरू बाबा रामदेव के द्वारा ऐलोपेथिक इलाज को लेकर पिछले सप्ताह सवाल उठाए थे, साथ ही डॉक्टरों की संस्था आईएमए की मान्यता को लेकर भी बड़ा आरोप लगाया था। जिसके बाद दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। गुरुवार को मामले में सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने न सिर्फ याचिका को खारिज कर दिया, बल्कि इसे बेवजह का मामला करार देते हुए इसे समय की बर्बादी करार दिया है। इस दौरान कोर्ट ने कोरोनिल मामले पर यह साफ कर दिया कि इस पर चिंता आयुष मंत्रालय को करना है, किसी और को मशाल लेकर चलने की आवश्यकता नहीं है
क्या इतना कमजोर है ऐलपैथी, एक बयान से उसे नुकसान हो जाएगा
दिल्ली हाई कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा, 'क्या एलोपैथी इतना कमज़ोर साइंस है कि किसी के बयान देने पर कोर्ट में अर्जी दाखिल कर दी जाए? एलोपैथी इतना कमज़ोर पेशा नहीं है. आप लोगों को कोर्ट का समय बर्बाद करने के बजाय महामारी का इलाज खोजने में समय लगाना चाहिए.'
कोरोनिल पर आप क्यों चिंतित है
अपनी अर्जी में DMA ने कहा था कि COVID-19 के इलाज के रूप में कोरोनिल का झूठा प्रतिनिधित्व किया जा रहा है. हाईकोर्ट ने DMA से कहा, 'आप वीडियो को अदालत ने नहीं पेश कर सके. अगर वे यू ट्यूब से हटा दिए गए हैं, तो वे बेकार हैं, आपको मूल दस्तावेज फाइल करने की जरूरत है. कोर्ट ने कहा कि अगर कोरोनिल को लेकर नियमों का उल्लंघन हुआ भी है, तो मंत्रालय को इस बारे में तय करना है. 'आप (डीएमए) क्यों मशाल उठाकर आगे चल रहे हैं.'