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मौनी अमावस्या पर वाल्मिकीनगर पहुंचे लाखों श्रद्धालु, 'त्रिवेणी संगम' में लगाई डूबकी

मौनी अमावस्या पर वाल्मिकीनगर पहुंचे लाखों श्रद्धालु, 'त्रिवेणी संगम' में लगाई डूबकी

बेतिया। इंडो नेपाल सीमा पर स्थित नारायणी गंडक नदी तट पर प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी मौनी अमावस्या माघ मेला में लाखों श्रद्धालुओं का जत्था पहुंचा । ज़ी हां माघ महीने के मौनी अमावस्या के मौके पर लगने वाले मेला को लेकर श्रद्धालु भारत- नेपाल सीमा पर स्थित वाल्मीकिनगर के त्रिवेणी संगम तट पर पहुंचे हैं जहां आस्था कि डुबकी लगाई जा रही है और गौ दान तिल के साथ चावल और नगदी दान किया जा रहा है।  यहां नारायणी गंडक नदी में श्रद्धालु स्नान कर गौ दान में जुटे हैं ताकि मोक्ष की प्राप्ति हो सके।

माघ मेला में हर साल लाखों की संख्या में भक्त यहां दोनों देशों से पहुंचते हैं लेकिन इस बार कोरोना की वजह से बॉर्डर बन्द होने से नेपाल के लोग भारत में और भारत के लोग नेपाल सीमा में नहीं जा सके हैं जो आस्था पर प्रहार जैसा नज़ारा है। बावजूद इसके कड़ाके की ठंड और सर्दी में गंगा स्नान को लेकर आस्था भारी पड़ रहा है। दरअसल मौनी अमावस्या पर त्रिवेणी संगम तट पर नारायणी गंडक नदी में स्नान के लिए भक्तों की भीड़ जुटती है। इस साल भी बताया जा रहा है कि बिहार, उत्तरप्रदेश और नेपाल से मौनी अमावस्या के मौके पर भारत-नेपाल सीमा पर स्थित त्रिवेणी संगम तट पर लाखों की संख्या में श्रद्धालु दोनों देशों के छोर पर पहुंचे हैं. इस दौरान वाल्मीकि टाइगर रिजर्व जंगल भी गुलजार है। 

सोनभद्र, ताम्रभद्र और नारायणी नदियों का होता है संगम

जानकारी के मुताबिक हिमालय की गोद से निकलने वाली गंडक नदी को नेपाल में शालिग्राम और काली गंडकी के नाम से जाना जाता है. गंडक नदी विश्व की एकमात्र ऐसी नदी है जिसके गर्भ में शालिग्राम पत्थर पाया जाता है. इस नदी में सोनभद्र, ताम्रभद्र और नारायणी का पवित्र मिलन होता है, यही वजह है कि इसे प्रयागराज के बाद देश का दूसरा त्रिवेणी संगम होने का गौरव प्राप्त है. ऐसे में आज जब माघ मौनी अमावस्या का दिन भगवान विष्णु की पूजा की जारही है तो शालिग्राम नदी जिसको गंडक, सप्त गंडकी और सदानीरा के नाम से भी हमारे देश में जाना जाता है उसमें स्नान के बाद दान का महत्व ख़ास बढ़ जाता है।

स्नान के दान की है परंपरा

माघ महीने के माह में पड़ने वाले मौनी अमावस्या पर्व में मौन धारण कर मुनियों के समान आचरण करते हुए स्नान दान की परंपरा ख़ास है. यहां भारी संख्या में पहुंचे श्रद्धालु स्नान के बाद तिल, तिल के बने लड्डू, तिल का तेल, आंवला, वस्त्र, नगदी समेत दूध देने वाली गाय का दान कर भक्त और श्रद्धालु पुण्य के भागीदार बन रहे हैं। बता दें कि माघ मास में गोचर करते हुए भगवान सूर्य जब चंद्रमा के साथ मकर राशि पर आसीन होते हैं तो उस काल को मौनी अमावस्या कहा जाता है। चूंकी बॉर्डर अभी सील है इस लिहाज से पुलिस प्रशासन की ओर से सुरक्षा व्यवस्था के मद्देनजर एसएसबी भी कदमताल होकर सीमा पर तैनात है ।

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