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छपरा के धनंजय सिंह मासूम‌ ने की 'गांववाला कॉन्सेप्ट स्टूडियोज़' की शुरुआत, ग्रामीण कहानियों को रोचक अंदाज में प्रस्तुत करने का उठाया बीड़ा

छपरा के धनंजय सिंह मासूम‌ ने की 'गांववाला कॉन्सेप्ट स्टूडियोज़' की शुरुआत, ग्रामीण कहानियों को रोचक अंदाज में प्रस्तुत करने का उठाया बीड़ा

DESK: बिहारी लोगों की रचनात्मक संभावनाओं से पूरा देश वाकिफ़ हैं। बिहार के छपरा जिले से ताल्लुक रखने वाले धनंजय सिंह मासूम ने गांव आधारित और जमीन से जुड़ी कहानियों को सशक्त व वास्तविक तरीके से पेश करने का बीड़ा उठाया है। उन्होंने एक डिजिटल क्रिएटर के तौर पर 'गांववाला कॉन्सेप्ट स्टूडियोज़' की शुरुआत की और अब वे ज़मीन व गांव की मिट्टी से जुड़ी कहानियों को एक नये मगर वास्तविक अंदाज़ में पहुंचाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं।

उल्लेखनीय है कि 'गांववाला कॉन्सेप्ट स्टूडियोज़' का इस बात पर दृढ़ विश्वास रहा है कि 'जिस कहानी में गांव नहीं, वो हमें सुनानी नहीं.' इसी पर 'गांववाला कॉन्सेप्ट स्टूडियोज़' की नींव रखी गयी है। और इसी के चलते धनंजय सिंह मासूम ने 'द गांव डायरीज़: बिहार' का भी निर्माण किया। उन्होंने इस सीरीज़ से जुड़े कई एपिसोड्स बनाए जिसमें 'बेरोज़गार पति', 'ब्याह कटवा', 'साली की जालसाज़ी' और 'बंटवारा' जैसे शोज़ शामिल हैं। इसमें ग्रामीणों और ग्रामीण जीवन की दिलचस्प कहानियों को बड़े ही अनूठे अंदाज़ में पेश किया गया है जिसे लोगों ने ख़ूब पसंद किया। अब तक 20 करोड़ से ज्यादा दर्शक इन शोज़ को देख चुके हैं। 

धनंजय सिंह मासूम का कहना है कि भारत की आत्मा गांवों में बसती है और ऐसे में गांवों के लोगों, वहां की रोज़मर्रा की ज़िंदगी और वहां की कहानियों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है। उल्लेखनीय है कि 'गांववाला कॉन्सेप्ट स्टूडियोज़' की शुरुआत करने से पहले धनंजय सिंह मासूम ने कॉपीराइटर और क्रिएटिव डायरेक्टर के तौर पर अपने करियर की शुरुआत की थी। बाद में टीवी जगत से जुड़कर उन्होंने अगले 15-20 सालों में कई ऐसे टीवी शोज़ के‌ लिए काम किया जो काफ़ी लोकप्रिय साबित हुए। इसके बाद उन्होंने मराठी फ़िल्म जगत से जुड़कर 'फुंतरू' और 'टकाटक' जैसी फ़िल्मों का भी निर्माण किया। मगर जल्द ही उन्हें इस बात का एहसास हुआ कि इंटरनेट क्रांति के इस दौर में भी ग्रामीण लोगों व ग्रामीण जीवन  की सही तस्वीर लोगों के सामने नहीं पेश की जा रही है। इसी‌ के चलते उन्होंने 'गांववाला कॉन्सेप्ट स्टूडियोज़' की शुरुआत की और कामयाबी की एक नई इबारत लिखी।

एक के बाद एक हिट शोज़ देने के बाद 'गांववाला कॉन्सेप्ट स्टूडियोज़' फिलहाल ग्रामीण जीवन पर और भी कई शोज़ के निर्माण में व्यस्त है। 'बेरोज़गार पति' की अभूतपूर्व कामयाबी के बाद अब शो पर आधारित 10 और एपिसोड्स का निर्माण किया जा रहा है। इसमें एक बेरोज़गार पति और उसकी कामकाजी पत्नी के रिश्ते और सामज के उन दोनों के प्रति नज़रिए को रोचक तरीके से पेश किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि एक और शो 'ससुराल झुनकी का' के पांच एपिसोड पहले ही शूट किये जा चुके हैं। यह शो एक ऐसी लड़की पर आधारित है जिसकी शादी महज़ 18 साल की उम्र में कर दी जाती है और ऐसे तमाम‌ रिश्तों के ताने-बाने को समझने में थोड़ा वक्त लगता है। मगर जल्द ही वो एक परिपक्व व आत्मविश्वास से भरपूर लड़की का रूप धारण कर लेती है। उल्लेखनीय है कि इस शो को दो सीज़न में बांटा गया है और हर सीज़न में इसके 26 एपिसोड्स होंगे।

'गांववाला कॉन्सेप्ट स्टूडियोज़' की एक और पेशकश का नाम 'मोहब्बत से आगे' है जो एक ऐसी किशोरवयी लड़की की कहानी है जो बेहद कम उम्र में गर्भवती हो जाती है और ये घटना उसकी ज़िंदगी की सबसे बड़ी समस्या साबित होती है। स्टूडियोज़ की ओर से बनाए जा रहे शो 'बिदेशी बेटा' भी एक अनूठी कहानी पर आधारित है जिसमें दिखाया गया है कि कैसे विदेश में जाकर बस चुका एक भारतीय लड़का फिर से भारत लौटकर अपने समाज के लोगों के लिए कुछ अच्छा करने की जद्दोजहद करता है। मगर इस दौरान उसे ढेरों समस्याओं का सामना करना पड़ता है। 'पहुना ओ पहुना' भी एक बेहद दिलचस्प शो है जिसकी कहानी एक ऐसे दामाद के इर्द-गिर्द घूमती है जो अपने सास-ससुर को परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ता है।

बिहार के छपरा जिले में पले-बढ़े और ग्रामीण जीवन को बेहद करीब से जानने-समझने वाले धनंजय सिंह मासूम कहते हैं, 'मैं अपने स्टूडियोज़ के‌ माध्यम से आगे भी गांव आधारित कहानियों को लोगों के सामने रोचक अंदाज़ में प्रस्तुत करता रहूंगा। असली भारत तो गांवों में ही बसता है तो ऐसे में हमारे लिए ज़रूरी हो जाता है कि हम ग्रामीण जीवन के तमाम पहलूओं को लोगों के सामने लाएं। मेरी यह कोशिश आगे भी अलग-अलग शोज़ के माध्यम से जारी रहेगी।"

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