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गया में इलेक्ट्रॉनिक चाक से बन रहे है दीये, फिर भी कुम्हारों को कम हो रहा मुनाफा, जानिए वजह

गया में इलेक्ट्रॉनिक चाक से बन रहे है दीये, फिर भी कुम्हारों को कम हो रहा मुनाफा, जानिए वजह

GAYA : दीपावली के मौके पर भले बाज़ार में चाईनिज बत्तियों की भरमार हो जाती है. लेकिन मिट्टी के दीयों का महत्व इससे कम नहीं हो जाता है. बाज़ार में इनकी भरपूर मांग होती है. कुम्हारों पर इन्हें बनाने का काफी दबाव होता है. लेकिन गया में कुम्हारों ने इसे बनाने के लिए नया तरीका अपनाया है. गया के मानपुर प्रखंड के नोरंगा पंचायत के कुम्हर टोली में इन दिनों इलेक्ट्रॉनिक चाक हर घर मे चल रही है. दीवाली का त्योहार के आते ही कुम्हारों के चाक की रफ्तार तेज हो जाती है और कुम्हार परिवार के लोग दिन रात एक कर मिट्टी के बर्तन व दीया और मूर्तियां बनाने में लग जाते हैं. 

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बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक सभी इस काम में हाथ बंटाते है. इस टोले में परंपरागत तरीके के चाक जिसे हाथ से घुमा कर मिट्टी के दीये, खिलौने बनाने का काम किया जा रहा था. अब कम समय मे ज्यादा उत्पादन के लिए इलेक्ट्रॉनिक चाक का इस्तेमाल किया जा रहा .है इस इलेक्ट्रॉनिक चाक में लगी मोटर से ही यह चाक घूमता रहता है. इसमें शारीरिक कार्य कुछ कम करना पड़ता है. दीपावली की तैयारी में जुटे कुम्हारों ने बताया कि पहले मिट्टी फ्री में मिलती थी. अब मिटटी खरीदना पड़ता है. 

उसमें भी जितना मिट्टी का खपत होता है इस हिसाब से मिट्टी भी नही मिल पाती है. अगर मिल भी जाए तो ऊचें दरों पर मिल पाता है. मिट्टी से लेकर मिट्टी से बने सामान को पकाने के लिए जलावन आदि में जितना मेहनत और पैसा खर्च हो जाता है उस हिसाब से मुनाफा भी नही मिल पाता है. मिटटी के दिया और खिलौना बना रहे कुम्हारों ने बताया की पहले हमलोग मिटटी फ्री में लाते थे. अब एक हजार रुपया में एक ट्रैक्टर मिटटी लेते है. उन्होंने कहा की दीया या बर्तन बनाने में दीपावली के तीन महीने पहले से हमलोग काम करना शुरू केर देते हैं. 

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दीपावली के एक दो दिन पहले तक सभी बनाये हुए दीया को बाजार में बेचने के लिए ले जाते है. उन्होंने कहा कि पहले मिटटी का दिया खूब बिकता था. अब लोग अपने -अपने घरो पर चाइनीज लाइट लगा लेते है. उससे बिक्री में कमी आया है.

गया से मनोज कुमार की रिपोर्ट 


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