DESK : ब्लड डोनेट सिर्फ इंसान ही नहीं बल्कि जानवर भी करते हैं। जी हां, यह सही है। राजस्थान में ऐसा ही एक मामला सामने आया है, जहां एक डॉगी ने अपना खून देकर अपनी डॉगी की जान बचाई है। ब्लड डोनेट करने के बाद दोनों जानवर स्वस्थ बताये गये हैं।
जानकारी के अनुसार मामला जोधपुर शहर के रातानाडा स्थित पशु चिकित्सालय में सामने आया है. जोधपुर के नारायण जोशी का पालतू डॉग टफी स्पिट्स ब्रीड का है. टफी के बीमार होने पर नारायण जोशी उसे जांच के लिए 8 दिसंबर को रातानाडा स्थित पशु चिकित्सालय लेकर आए. वहां पशु चिकित्सक संजय कृष्ण व्यास ने डॉगी का चेकअप किया।
शरीर में थी खून की कमी
चेकअप के दौरान ब्लड टेस्ट किया गया तब पता चला कि डॉग टफी का हिमोग्लोबिन 2.7 हो गया है. आम तौर पर स्वस्थ डॉगी का हिमोग्लोबिन 12 से 18 के बीच रहता है। ऐसे में उसकी जान बचाने के लिए रक्त चढ़ाने की जरुरत पड़ेगी। इस पर डॉक्टर ने सलाह दी की डॉगी के सिबलिंग से यह काम संभव हो सकता है।
ब्लड को किया गया मिक्स
जिसके बाद नारायण जोशी तुरंत अपने टफी के सिबलिंग को लेकर आए। उसके ब्लड को टफी के ब्लड से मैच करवाया गया. डॉक्टर ने बताया कि दोनों के ब्लड को मिक्स कर रखा गया और देखा गया कि थक्का ना जमें. ब्लड का थक्का नहीं जमने पर टफी के सिबलिंग का ब्लड निकाला गया.
खून चढ़ाने के लिए किया सीरींज का प्रयोग
बताया गया कि ब्लड निकालने के लिए अलग से कोई पाऊच वगैरह की व्यवस्था नहीं थी। ऐसे में सीरिंज में भरकर डोनर के शरीर से ब्लड निकाला गया. सीरिंज में हिपेरिन दवाई मिलाई ताकि खून का थक्का ना जमें। एक तरफ निकालकर दूसरे तरफ हाथों हाथ खून चढ़ाया गया। लगभग दस दिन बाद टफी का फीड बैक लेने पर वह पूर्ण रूप से स्वस्थ्य हो गया। बताया गया कि जोधपुर के वेटनरी अस्पताल में इस तरह ब्लड डोनेशन का यह पहला मामला था।
सबसे ज्यादा मुश्किल होता है सिबलिंग मिलना
डॉक्टर ने बताया कि टफी को ब्लड पेरेसाइट हो गया था. इससे खून बनना कम हो जाता है. ऐसे में डॉगी की आंखें पीली पड़ जाती है और जीभ सफेद हो जाती है। यह इस बीमारी के लक्षण होते हैं। डॉगी सुस्त रहता है। खाना नहीं खाता और दुबला हो जाता है अक्सर डॉगी की मौत इस बीमारी से हो जाती है। उन्होंने बताया सबसे ज्यादा मुश्किल डॉग के सिबलिंग को मैच कराना। कई डॉग के सिबलिंग नहीं मिल पाते हैं ऐसे में बीमार डॉगी को ब्लड की कमी हो जाती है और उनकी मौत हो जाती है।