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दुष्यंत कुमार की वो कविताएं जो युवा दिलों की आवाज़ बनी

दुष्यंत कुमार की वो कविताएं जो युवा दिलों की आवाज़ बनी

N4N Desk: दुष्यंत कुमार का जन्‍म उत्तर प्रदेश में बिजनौर जनपद की तहसील नजीबाबाद के ग्राम राजपुर नवादा में हुआ था. इस समय सिर्फ़ 42 काफी वर्ष के जीवन में दुष्यंत कुमार ने अपार ख्याति अर्जित की. युवाओं के दिल में बसते थे दुष्यंत कुमार ऐसा निदा फ़ाज़ली ने कहा था। दुष्यंत कुमार ने अपनी ग़ज़लों से क्रान्ति ला दी थी, उनकी रचनाएं वो संचार थीं जिन्होंने समाज के पिछड़े वर्गों को जागरूक किया। दुष्यंत ने 30 दिसंबर, 1975 को अंतिम सांस ली थी.

दुष्यंत का जन्मदिन है तो इस मौके पर आप उनके कुछ कविताएं 


1 कहाँ तो तय था चिराग़ाँ हर एक घर के लिए

कहाँ चिराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए 


यहाँ दरख़तों के साये में धूप लगती है

चलो यहाँ से चलें और उम्र भर के लिए 


न हो कमीज़ तो पाँओं से पेट ढँक लेंगे

ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफ़र के लिए 


ख़ुदा नहीं न सही आदमी का ख़्वाब सही

कोई हसीन नज़ारा तो है नज़र के लिए 


वो मुतमइन हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता

मैं बेक़रार हूँ आवाज़ में असर के लिए 


तेरा निज़ाम है सिल दे ज़ुबान शायर की

ये एहतियात ज़रूरी है इस बहर के लिए 


जिएँ तो अपने बग़ीचे में गुलमोहर के तले

मरें तो ग़ैर की गलियों में गुलमोहर के लिए


2 वो आदमी नहीं है मुकम्मल बयान है 

माथे पे उस के चोट का गहरा निशान है 


रहनुमाओं की अदाओं पे फ़िदा है दुनिया 

इस बहकती हुई दुनिया को सँभालो यारों 


3 आज वीरान अपना घर देखा, तो कई बार झाँक कर देखा 

पाँव टूटे हुए नज़र आए, एक ठहरा हुआ खंडर देखा 


बहुत क़रीब न आओ यक़ीं नहीं होगा 

ये आरज़ू भी अगर कामयाब हो जाए 


कैसे आकाश में सूराख़ नहीं हो सकता 

एक पत्थर तो तबीअ'त से उछालो यारों

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