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लॉक डाउन का असर : नहीं थम रहा बिहार में मजदूरों के आने का सिलसिला

लॉक डाउन का असर : नहीं थम रहा बिहार में मजदूरों के आने का सिलसिला

KAIMUR : पूरे देश में लॉक डाउन होने के बाद मजदूरों के जो आज हालात सड़कों पर दिखाई दे रहे हैं. वह रोंगटे खड़े कर देने वाले हैं. दिन हो या रात प्रवासी मजदूरों का जत्था रुकने का नाम नहीं ले रहा है. कोई बिना खाए तीन दिनों से पैदल चल रहा है तो कोई पैदल चल कर थक कर तपती धूप में पानी खोज रहा है. कोरोनावायरस से निजात पाने के लिए सरकार ने पूरे देश में लॉक डाउन कर दिया. लेकिन अभी जो हालात बने हैं. उससे देखने से यही अंदाजा लगाया जा सकता है कि कोरोनावायरस लोगों को मारे या ना मारे यह हालात लोगों की जिंदगी एक एक कर निगल रहा है. 

कई मजदूरों को पैदल जाने के दौरान वाहन धक्का मार दे रही है तो कितने मजदूरों की गाड़ियां घर जाने की जल्दबाजी में एक्सीडेंट कर जा रही है. सड़क पर एक तरफ जाम के कारण वाहनों की लंबी कतारें दिखाई दे रही है तो दूसरी लेन में प्रवासी मजदूरों का पैदल और ट्रकों पर चढ़कर जाना दिखाई दे रहा है. कोई ट्रकों से लिफ्ट लेकर कुछ दूरी काट रहा है तो कोई ट्रक भाड़े पर बुक कर अपने घर के लिये निकल पड़ा है. इस चिलचिलाती धूप में भी खुले ट्रक में बैठकर छोटे-छोटे बच्चों को लेकर बस घर जाने की आपाधापी दिख रही है. 

सरकार मजदूरों के हितों में बहुत काम करने का दावा करती है उनके लिए भोजन, खाते में पैसे, घर जाने के लिए ट्रेन और बसों का इंतजाम होने का दावा कर रही है. लेकिन खुश किस्मत ही हैं वह लोग जिनको इंतजाम नसीब हो पा रहा है. मजदूरों की संख्या के एक चौथाई भी सरकार ने ना तो बसों का इंतजाम की है ना ही ट्रेन ही उपलब्ध हो पाए हैं. काम बंद होने के बाद मजदूरों ने लॉक डाउन वन और लॉक डाउन टू में काम शुरू होने की उम्मीद में घरों से पैसे मंगाकर और कर्ज लेकर किसी तरह अपने दिन बिता दिए. लेकिन लॉक डाउन थ्री होने के बाद प्रवासी मजदूरों का सब्र का बांध टूट गया और सरकार के इंतजाम को धत्ता बताते हुए प्रवासी मजदूर सड़कों के रास्ते घरों के लिए निकल लिए. 

चाहे बीच रास्ते में कोई उन्हें लिफ्ट दे या फिर पैदल ही उन्हें जाना पड़े इसकी परवाह वह नहीं कर रहे हैं. दिन और रात बस चलते जा रहे हैं. कई लोगों ने ब्याज पर पैसे मंगा कर ट्रक चालकों को किराया दिया. तब ट्रक चालकों ने उन्हें उनके जिले में छोड़ने के लिए चल पड़े. ऐसा नहीं कि सभी प्रवासी मजदूर बिहार के ही रहने वाले हैं. कैमूर जिले मे स्थित बॉर्डर से बंगाल और झारखंड के लिए भी मजदूरों का पलायन जारी है. महिलाओं और छोटे-छोटे बच्चों को लेकर मजदूर सैकड़ों किलोमीटर पैदल जाने को विवश है. बस इन्हें मंजिल तक सही सलामत पहुंचाने के लिए सिर्फ भगवान की ही दुआ कर रहे हैं. 

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