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इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम "असंवैधानिक", सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया फैसला, मोदी सरकार के वर्ष 2018 के फैसले पर लगी रोक

इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम "असंवैधानिक", सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया फैसला, मोदी सरकार के वर्ष 2018 के फैसले पर लगी रोक

DESK. सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को "असंवैधानिक" करार दिया है. कोर्ट की प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय संविधान पीठ ने गुरुवार को यह फैसला दिया है. पीठ में डीवाई चंद्रचूड़ सहित जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल रहे. फैसले में कहा गया है कि इलेक्टोरल बॉन्ड सूचना के अधिकार का उल्लंघन है। मतदाताओं को पार्टियों में होने वाली फंडिंग के बारे में जानने का पूरा हक दिया जाना चाहिए। बता दें कि इस योजना को सरकार ने 2018 में अधिसूचित किया था, जिसके अनुसार चुनावी बॉण्ड को भारत का कोई भी नागरिक या देश में स्थापित इकाई खरीद सकती है। 

सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि राजनीतिक दल चुनावी प्रक्रिया में प्रासंगिक इकाइयां हैं और चुनावी विकल्पों के लिए राजनीतिक दलों की फंडिंग के बारे में जानकारी आवश्यक है। सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि दो अलग-अलग फैसले हैं - एक उनके द्वारा लिखा गया और दूसरा न्यायमूर्ति संजीव खन्ना द्वारा और दोनों फैसले सर्वसम्मत हैं। सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि गुमनाम चुनावी बांड सूचना के अधिकार और अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन हैं।

साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसके साथ ही SBI से तीन सप्ताह यानी 6 मार्च तक रिपोर्ट देना है।  SBI को बताना है कि चुनावी बांड योजना से किस पार्टी को कितने पैसे मिले। SBI द्वारा 2019 से इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम के तहत मिले पैसे पर रिपोर्ट दी जाएगी। कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा है कि वह SBI से जानकारी ले। इसके बाद चुनाव आयोग 13 मार्च तक यह जानकारी अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करे।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि चुनावी बॉन्ड योजना सूचना के अधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी का पूर्ण रूप से उल्लंघन है। राजनीतिक दलों द्वारा फंडिंग की जानकारी उजागर ना करना उद्देश्य से परे है। इस संबंध में मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि बेंच सर्वसम्मति से ही इस फैसले पर पहुंची है। फैसले का समर्थन समर्थन जस्टिस गवई, जस्टिस पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा ने किया है। इसमें अलग राय न्यायाधीश संजीव खन्ना की भी है मगर दोनों एक निष्कर्ष पर पहुंचने में सफल हुए है।

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