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खत्म होते संयुक्त परिवार और अकेलापन बच्चों में बढ़ा रहा डिप्रेशन

खत्म होते संयुक्त परिवार और अकेलापन बच्चों में बढ़ा रहा डिप्रेशन

न्यूज़4नेशन डेस्क : इन दिनों बच्चे हद से ज्यादा नाजुक होते जा रहे हैं। छोटी सी बात होने पर वे डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं, आखिर क्यों? इस सवाल का जवाब हमें अपने बचपन और हमारे बच्चों के बचपन के अंतर को जानने से ही मिलेगा। बच्चों में डिप्रेशन की शिकायतों के मुख्य कारण :

1. हम संयुक्त परिवारों में रहते थे। माता-पिता के प्यार के अलावा हमें दादा-दादी, चाचा-चाची, बुआ वगैरह का प्यार मिला। घरों में हमेशा चहल पहल और रौनक बनी रहती थी। लेकिन आज हमारे बच्चे छोटे एकल परिवारों में रह रहे हैं, जहां पिता के साथ-साथ मां भी दिनभर बाहर काम करती है। खाली घरों में बच्चों की देखभाल आया कर रही है। 

2. हमारे घरों पर बहुत से रिश्तेदारों का आना जाना लगा रहता था। उनके लिए घर के साथ-साथ हमें अपने दिल में भी जगह बनानी पड़ती थी। सुख सुविधा के अभाव में हम अनजाने में ही सही, मेहनती और जिम्मेदार बनते चले गए। अब बच्चों को न तो मेहमान दिखते हैं और न ही अभाव। उनके लिए हर चीज एक ऑर्डर पर हाजिर होती है। 

3. भाई-बहनों के साथ जब भी हमें डांट या मार पड़ती थी तो हमें कभी भी दुख या अपमान का एहसास नहीं होता था, क्योंकि जब अपनों का साथ होता है तो दर्द का पता ही नहीं चलता। सजा भी मजेदार लगती है। लेकिन आज अकेलेपन में छोटी सी डांट भी बच्चों को चुभने लगी है। उन्हें लगता है कि बहुत बड़ी बेइज्जती हो गई है। 

4. उन दिनों परिवार में कोई न कोई बड़ा जरूर होता था, जैस चाचू /बड़ी मम्मी /भाभी आदि, जिनके साथ हम अपने दिल की हर बात बेझिझक कह सकते थे। जो बात हम माता-पिता से भी कहने में डरते थे, उनसे बिना हिचकिचाहट कह पाते, लेकिन आज इस सूने से घर में ऐसा कोई नहीं है जिसके पास बच्चों को समझने या सुनने की फुर्सत हो जिससे वो अकेलापन महसूस करता है। 

5. जब भी हम बोर होते, आसानी से बाहर जा सकते थे और ताजी हवा में घंटों खेल सकते थे। लेकिन अब ज्यादातर वक्त बच्चे गैजेट्स से चिपके हुए हैं। पैरेंट्स भी डर के कारण बच्चों को अकेले बाहर नहीं भेजते। तुलनात्मक रूप से हम सुरक्षित वातावरण में पले-बढ़े थे, पर हमारे बच्चे प्रदूषण और मिलावट के वातावरण में रह रहे हैं। इससे उनमें नकारात्मक विचार पैदा होते हैं। 

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