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गंजी-लूंगी पहने यह शख्स रखता है राज्य मंत्री का दर्जा, अकेले ही बेकार टापू में तैयार कर दिया अमरुद का बागीचा

गंजी-लूंगी पहने यह शख्स रखता है राज्य मंत्री का दर्जा, अकेले ही बेकार टापू में तैयार कर दिया अमरुद का बागीचा

गया। 15 साल पहले वह माउंटेन मैन दशरथ मांझी से मिले थे. जिसके बाद उसने भी कुछ ऐसा करने की ठान ली, जो औरों से अलग है। जहां दशरथ मांझी ने पहाड़ काटकर रास्ता बनाया, वहीं इस शख्स ने हरियाली को अपने जीवन का मकसद बनाया। उन्होने इसके लिए जगह चुनी फल्गू नदी की बेकार पड़ा टापू। आज डेढ़ दशक की मेहनत के बाद उसने अमरुद का पूरा बागिचा तैयार कर दिया है। उनके इस कार्य से खुश होकर बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने बाल संरक्षण आयोग का सदस्य भी बना दिया। यह कहानी है गया पूर्व के बाल सरंक्षण आयोग का सदस्य और वर्तमान में मगध विश्वविद्यालय में सीनेट सदस्य  सतेंद्र गौतम मांझी की। जिनके दिनचर्या है अपने बगीचे में पसीना बहाना और पौधों की देखभाल करना।

पर्वत पुरुष ने कहा था ऐसा करने के लिए 

गौतम मांझी बताते हैं गया जिला के बेलागंज प्रखंड क्षेत्र का छोटा का गांव है इमालियाचक। फल्गु तट पर बसा इस गांव में मजदूर वर्ग के ही लोग रहते हैं। सतेंद्र गौतम मांझी बताते हैं कि घूमते हुए कभी पर्वत पुरुष दशरथ मांझी उनके घर आये थे। गया जिले के गहलौर के रहने वाले दशरथ मांझी पहाड़ को काटकर रास्ता बनाया था। जिससे उनकी प्रसिद्धि देश दुनिया मे हो चुकी थी। सतेंद्र गौतम बताते हैं कि उस समय यह जगह बंजर और वीरान था जहां सिर्फ बालू ही बालू था। पर्वत पुरुष के कहने पर उन्होंने यह काम शुरू की। 

शुरुआती परेशानी के बाद स्थिति में सुधार

शुरुआत में काफी परेशानी हुई। घर से घड़ा में पानी लेकर आना पड़ता था पौधों के लिए। जानवर पौधों को नष्ट कर देते थे। जंगल से कांटेदार झाड़ियों को काटकर आज भी लाते हैं बगीचे के घेराबंदी के लिए। सतेंद्र गौतम बताते हैं कि पर्यावरण संरक्षण के लिए उनके योगदान की जानकारी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को मिली तो उन्होंने बाल संरक्षण आयोग का सदस्य बनाया गया था जिसका दर्जा राज्यमंत्री के बराबरी का होता है। 

10 हजार से अधिक अमरुद के पेड़ है बागीचे में

वे बताते हैं कि उनके बगीचे में लगभग 10 हजार अमरूद के पौधे हैं। जिनमे से अधिकांश इलाहाबादी अमरूद है जो उच्च क़्वालिटी का माना जाता है। वे बताते हैं कि पूजा पाठ के लिए लोगों को मुफ्त में अमरूद देते हैं। इतने वर्षों के मेहनत का अब उन्हें लाभ भी मिलने लगा है। अमरूद बेचकर उन्हें मुनाफा भी होने लगा है।

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