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साहित्यकार पहले अपने रोजी-रोटी का जुगाड़ कर लें, तभी उनका साहित्य गम्भीर होगा : कृष्ण कुमार

साहित्यकार पहले अपने रोजी-रोटी का जुगाड़ कर लें, तभी उनका साहित्य गम्भीर होगा : कृष्ण कुमार

PATNA : साहित्यकार सबसे पहले अपना रोजी रोटी का जुगाड़ कर लें तभी उनका साहित्य गम्भीर होगा। उक्त बातें भोजपुरी-हिंदी के प्रसिद्ध लेखक कृष्ण कुमार ने प्रभा खेतान फाउंडेशन, मसि इंक द्वारा आयोजित आखर नामक कार्यक्रम में बातचीत के दौरान कही। 

कृष्ण कुमार ने अपने भाषा लगाव पर बात करते हुए कहा कि भोजपुरी भाषा से प्रेम गांव में रहने के कारण हुआ। मैंने सर्वप्रथम चर्चित कथाकार मिथलेश्वर जी हिंदी रचना को भोजपुरी में अनुवाद किया। मैं कथा में शिल्प से ज्यादा उसके कथानांक को तहरीज देता हूं।

उन्होंने कहा कि भोजपुरी में भी गम्भीर लेखन हो रहा है। भोजपुरी की छवि जो मीडिया में बनी है वो पूरी तरह से सही नहीं है। भोजपुरी साहित्य में समाज की चिंता कलात्मक रूप से व्यक्त हो रहा है। 

वहीं लिंगभेद भाव पर कहते हुए उन्होंने कहा कि बेटा और बेटी में कोई अंतर नहीं होता है। इस अंतर को शिक्षा से ही खत्म किया जा सकता है। भ्रूणहत्या का सबसे बड़ा कारण है दहेज। इसका बदलाव सरकारी कानून से नहीं, जनसमान्य के हृदय में बदलाव से होगा। 

रचनाकर्म में अपने आदर्श की बात पर उन्होंने कहा कि लेखन में मेरे आदर्श सिर्फ मां और भगवान है। 

इस कार्यक्रम में भोजपुरी के युवा लेखक जितेन्द्र वर्मा, तुषारकान्त उपाध्याय, महामाया प्रसाद, प्रो. वीरेंद्र झा, विनीत कुमार, रंगकर्मी जय प्रकाश, अन्विता प्रधान, मार्कण्डेय शारदेय, रजनीश प्रियदर्शी, सागर सहित अन्य लोग उपस्थित थे।

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