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BJP के पांच बड़बोले विधायकों और सांसदों को गंवानी पड़ी अपनी कुर्सी ! विरोधी भी हुए चारों खाने चित, खेल अभी बाकी है..ऐसे किए तो गए...सुप्रीम कोर्ट तक की है नजर..

BJP के पांच बड़बोले विधायकों और सांसदों को गंवानी पड़ी अपनी कुर्सी ! विरोधी भी हुए चारों खाने चित, खेल अभी बाकी है..ऐसे किए तो गए...सुप्रीम कोर्ट तक की है नजर..

LOCKNOW: लोकसभा चुनाव का बयार देश में बह रहा है। चुनाव को लेकर सियासत भी तेज हो गई है। लोकसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक पार्टी जोरो शोरो से प्रचार प्रसार कर रहे हैं। मालूम हो कि लोकसभा चुनाव के तारिखों की घोषणा के साथ ही देश में आदर्श आचार संहिता लागू हो गई है। वहीं अपने तीखे बयान, भड़काऊ भाषणों से चुनावी माहौल को गरमाने और आदर्श आचार संहिता को ताक पर रखने वाले राजनेताओं को सजा का डर सताने लगा है। भाजपा के 5 बड़बोले विधायकों और सांसदों को अब अपनी कुर्सी भी गंवानी पड़ सकती है। सत्तारूढ़ और विरोधी दल के बड़े नेताओं को हुई सजा के मामले इसकी नजीर हैं।

आचार संहिता को लेकर सुप्रीम कोर्ट सख्त 

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद बीते दो वर्षों में नेताओं के सजा के मामले तेजी से बढ़े हैं। इसका असर इस बार के लोकसभा चुनाव में भी दिख रहा है। आदर्श आचार संहिता उल्लंघन के छिटपुट मामले तो दर्ज हो रहे हैं, लेकिन नेता कोई बड़ी खता करने से डर रहे हैं। उन्हें डर है कि अभी की गई कोई खता भविष्य में कुर्सी जाने का सबब न बन जाए। इसका असर यूपी में भी देखने को मिल रहा है। बता दें कि, वर्ष 2022 से इन मुकदमों के निपटारे ने तेजी पकड़ी है। जिसके बाद से कुछ माननीयों के फिर से माननीय बनने का सपना टूट गया है। वहीं इसमें सबसे पहला नाम माफिया मुख्तार अंसारी का रहा। मुख्तार को एक के बाद एक सजाएं हुईं और वह सक्रिय राजनीति से दूर हो गया। इसी तरह आजम खान और उनके बेटे अब्दुल्लाह आजम को भी अपनी लोकसभा व विधानसभा की सदस्यता गंवानी पड़ी।  

इन नेताओं को गंवानी पड़ी कुर्सी

वहीं बीजेपी विधायक खब्बू तिवारी, विक्रम सैनी, राम दुलार गोंड, कुलदीप सिंह सेंगर और अशोक सिंह चंदेल को भी अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी। विरोधियों के साथ साथ सत्ता पक्ष के लोग भी इन मामलों में फंसे हैं। वहीं मुख्तार के भाई अफजाल अंसारी को भी सजा हो गई थी और उनकी सदस्यता चली गई थी। हालांकि बाद में उन्हें सुप्रीम कोर्ट से राहत मिल गई। 

इन मामलों में हुई सजा

आइए अब कुछ मामलों की बात करते हैं जिनके बाद से जहरीले बयानों पर लगाम लगता दिख रहा है। पहला मामला 2012 का है। जहां आचार संहिता उल्लंघन के मामले में बीजेपी सांसद रीता बहुगुणा जोशी को करीब 12 वर्ष बाद फरवरी 2024 में छह महीने की सजा सुनाई गई। वहीं 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान भड़काऊ भाषण देने के मामले में सपा सरकार के पूर्व मंत्री आजम खान को जुलाई 2023 में दो साल की सजा सुनाई गई। वहीं 2014 से 2017 तक के लोकसभा चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश में भड़काऊ भाषणों की बाढ़ आ गई थी। इस दौरान अमित शाह, आजम खां, बाबा रामदेव, हेमा मालिनी, बेनी प्रसाद वर्मा, नरेंद्र भाटी, जफर आलम, मुरली मनोहर जोशी, इमरान मसूद और राज बब्बर समेत कई बड़े नेताओं के खिलाफ आचार संहिता उल्लंघन के मुकदमे दर्ज हुए। इमरान मसूद को गिरफ्तार भी किया गया। हालांकि किसी भी नेता के खिलाफ मामला सजा तक नहीं पहुंचा।

2014  से 2017 तक कई मामले हुए दर्ज

बता दें कि, 2014 के लोकसभा चुनाव में यूपी में आचार संहिता के 415 मामले दर्ज किए गए। इनमें से 298 में चार्जशीट लगी और 115 में फाइनल रिपोर्ट। 22 मामलों में सजा हुई, जबकि 250 से ज्यादा मामले लंबित हैं। वहीं विधानसभा चुनाव 2017 में आचार संहिता उल्लंघन के 1,270 मामले दर्ज हुए थे। इनमें से 1,100 से ज्यादा मामलों में पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की और 34 मामलों में सजा हुई। 148 मामलों में पुलिस ने फाइनल रिपोर्ट लगा दी और तीन मामलों में पुलिस कुछ तलाश ही नहीं पाई। लोकसभा चुनाव 2019 में आचार संहिता उल्लंघन के 479 मामले दर्ज हुए। 385 मामलों में चार्जशीट दाखिल की गई और इनमें 31 मामलों में सजा हुई। 328 मामले अंडर ट्रायल हैं, जबकि एक मामला अभियोजन स्वीकृति के लिए लंबित है। 93 मामलों में पुलिस ने फाइनल रिपोर्ट लगा दी, जिसमें 44 स्वीकृत हो गईं, जबकि 49 मामले कोर्ट में लंबित हैं। 15 मामलों में आरोपितों की रिहाई हो गई।

विधानसभा में  इतने मामले हुए दर्ज 

वहीं यूपी के विधानसभा चुनाव की बात करे तो साल 2022 के विधानसभा चुनाव में आचार संहिता उल्लंघन के 1,335 मामले दर्ज हुए। 1,114 मामलों में चार्जशीट दाखिल की गई और 30 मामलों में सजा हुई। 1,011 मामले कोर्ट में अंडर ट्रायल हैं। 24 मामलों में आरोपित बरी हो गए। 204 मामलों में पुलिस ने फाइनल रिपोर्ट लगाई, जिनमें 47 मंजूर हो गईं। चार मामलों में जांच चल रही है।

किन धाराओं में होती है कार्रवाई?

रिश्वत देकर लोगों को प्रभावित करना (आईपीसी 171 ख)

अवैध भुगतान (171 ज)

निर्वाचन से जुड़े खर्च का ब्योरा न देना (171 झ)

चुनावों के परिणाम पर प्रभाव डालने को लेकर मिथ्या बयान देना (171 छ)

इन धाराओं को IPC के तहत असंज्ञेय अपराधों में रखा गया है। इनमें 500 रुपये तक के जुर्माने की सजा है।

आरपी ऐक्ट 1951 के तहत निर्वाचन सभाओं में उपद्रव करने वाले को छह माह की सजा और 2000 रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान।

मतदान केंद्र के पास प्रचार करने पर 250 रुपये जुर्माना।

मतदान केंद्र के पास बवाल करने पर तीन माह की सजा और जुर्माने का प्रावधान है।

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