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स्वस्थ बच्चे के जन्म के लिए जेनेटिक काउंसलिंग जरूरी- डॉ. नरेन्द्र मल्होत्रा

स्वस्थ बच्चे के जन्म के लिए जेनेटिक काउंसलिंग जरूरी- डॉ. नरेन्द्र मल्होत्रा

PATNA :  स्वस्थ बच्चे का जन्म माता पिता और परिवार की जिन्दगी के लिए वरदान से कम नहीं है। लेकिन इसके लिए होने वाले माता पिता को हमेशा सतर्क रहने की जरूरत है। आज लगातार यह देखा जाता है जागरूकता के अभाव में गर्भ में पल रहे भ्रूण के स्वास्थ के प्रति लोग सचेत नहीं रहते। इसका परिणाम यह होता है कि बच्चा अस्वस्थ पैदा हो जाता है। इसकी बड़ी वजह यह है कि लोग जेनेटिक काउंसलिंग नहीं करते । आज के परिवेश में जेनेटिक बीमारियों से बचने के लिए एडवांस जांच सिस्टम उपलब्ध हो चुका है। उसमे से एक सिस्टम है जिसका नाम है एनआईपीटी (नॉन इनवैसिव प्रिनैटल टेस्टिंग ) इसके माध्यम से गर्भस्थ शिशु के जन्म से काफी पहले डाउन्स सिंड्रोम व असमान्य क्रोमोसोम सम्बन्धी गड़बड़ियों को सटीक व सुरक्षित तरीके से पता लगाया जा सकता है । एनआईपीटी नुकसानरहित जांच प्रक्रिया है जिससे एक स्वस्थ बच्चे के जन्म को सुनिश्चित किया जा सकता है। यह गर्भावस्था के नौवें सप्ताह में ही कराया जा सकता है। ऊपर्युक्त बातें आगरा के चिकित्सक डॉ. नरेन्द्र मल्होत्रा ने GFMCON 2018 के कार्यक्रम में कहीं।

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इस अवसर पर उपस्थित GFMCON 2018 के  आयोजन सचिव डॉक्टर प्रज्ञा मिश्र चौधरी ने बताया कि कैसे गर्भस्थ जुड़वां बच्चे के स्वास्थ का ख्याल रखें । साथ ही अगर जुड़वा बच्चों में से एक कि मौत गर्भ में ही हो जाती है तो उसका ट्रीटमेंट कैसे करें, क्योंकि यह स्थिति चिकित्सा के हिसाब से काफी चुनौतीपूर्ण होती है। बता दें कि गर्भ में पल रहे जुड़वां बच्चों में से एक के मर जाने के बाद दूसरे बच्चे के मस्तिष्क के क्षतिग्रस्त होने का खतरा ज्यादा हो जाता है। जुड़वां बच्चा अगर कॉमन प्लेसेंटा से जुड़ा होता है तो स्थिति और जटिल हो जाती है । एक बच्चा के खराब हो जाने बाद हर हाल में 36 से 38 हफ्ते में डिलीवरी जरूर करवा देना चाहिए। इस स्थिति में अल्ट्रासाउंड और एमआरआई के माध्यम से फॉलो अप करते रहना चाहिये।

वहीं इस मौके पर उपस्थित डॉ. वत्सला दधवाल ने बताया कि एक चीज जो कभी काफी जटिलता पैदा करती है वह यह कि कई परिस्थितियों में गर्भ में पल रहे भ्रूण का लिंग जानना जरूरी होता है। लेकिन क्लिनिकल एक्ट के तहत रेडियोलॉजिस्ट को लिंग बताना प्रतिबंधित है। आरएच फैक्टर में जब आरएच नेगेटिव मां का खून उसके आरएच पॉजिटिव गर्भ के संपर्क में आता है तो आरएच नेगेटिव मां के रक्त में शिशु के रक्त के खिलाफ एंटीबॉडी बनने लगता है। कई दफा इन स्थितियों में गर्भस्थ शिशु का भ्रूण जानना आवश्यक हों जाता है। ताकि होमोलाइटिक एनीमिया जैसी बीमारियों से बचा जा सके।

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कार्यक्रम में डॉ. अलका पांडेय, डॉ. अनिता सिंह समेत कई अन्य स्त्री रोग विशेषज्ञों ने अपनी राय रखी।

इस मौके पर डॉ. कुमकुम सिन्हा, डॉ. मंजूगीता मिश्रा, डॉ. शारदा सहाय, डॉ.के जी कपूर, डॉ. सुप्रिया जायसवाल, डॉ. शांति एच के सिंह, डॉ. अंजना सिन्हा, डॉ. कल्पना, डॉ. रंजना सिन्हा, डॉ. उषा डिडवानिया, डॉ. पूनम दीक्षित, डॉ. रजनी शर्मा और डॉ. अमिता सिन्हा मौजूद थे।

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