PATNA : बच्चे
में जन्मजात दोष मां के गर्भावस्था में रहने के दौरान किसी समय हो सकता है,हालांकि
वैज्ञानिक तौर पर अधिकांशतः जो तथ्य सामने आए हैं उसके अनुसार गर्भावस्था के पहले
तीन महीनों में अधिकांश जन्म दोष होते हैं, क्योंकि इस समय ही बच्चे के अंग बनने
शुरू होते है। अतः जरूरी है कि स्त्री रोग विशेषज्ञ इस स्थिति
का आकलन बारीकी से करें,क्योंकि वैज्ञानिक जांच के आधार पर जन्मजात
दोषों को पता लगाना आसान है साथ ही समय से इलाज शुरु हो जाने से जन्मजात दोषों से
बचा जा सकता है ।उपरोक्त बातें डॉ अशोक खुराना ने एफओजीएसआई और आईएसपीएटी (इंडियन सोसाइटी ऑफ प्रिनाटल
डायग्नोसिस एंड थेरेपी) तथा पटना
ओबस्टेट्रिक एंड गायनकोलॉजिकल सोसाइटी के संयुक्त तत्वाधान में स्थानीय लेमन ट्री
होटल में आयोजित GFMCON 2018 विषय
पर आयोजित सेमिनार के वैज्ञानिक सत्र को संबोधित करते हुए कहीं।

वहीं इस अवसर पर मौजूद डॉ प्रज्ञा मिश्रा चौधरी
ने
बताया कि जन्म दोषों की प्रमुख वजह है,गर्भ धारण के समय माता की उम्र, गर्भावस्था
के दौरान धूम्रपान का सेवन ,जन्मपूर्व का देखभाल ,जेनेटिक
कारण,मातृ पोषण की कमी की कमी है। डॉ प्रज्ञा मिश्रा
चौधरी ने कहा कि सम्मेलन में आए
चिकित्सकों को एक हीं मंच पर डाक्टरों
को ट्रेनिंग भी दी गई वहीं ट्रीटमेंट और
प्रिवेंशन के बारे में भी बताया गया।हमारा
उद्देशय है की बर्थ डिफेक्ट को कम किया जाए और यह तभी हो सकता है जब हम समय रहते गर्भ में बच्चे का सही पडताल कर
लें।इसके लिए शुरू का तीन महीना काफी महत्वपूर्ण होता है ।बिहार जैसे राज्य में ओबस्टेट्रिक्स और स्त्रीविज्ञान के विशेषज्ञ मौजूद हैं।हम उन्हें और अधिक
संवेदनशील बनाना है ताकि हम जन्मजात विसंगतियों और जन्म दोषों की घटनाओं को कम कर
सकें। यह सम्मेलन हमारे ज्ञान को समृद्ध करने के लिए एक बडा मंच प्रदान किया है । वहीं दिल्ली से आए मशहुर रेजियोलाँजिस्ट डा.
अशोक खुराना नें कहा की बिहार में इस तरह
का आयोजन पहली बार हुआ है।गर्भावस्था के
दौरान रेडियालाँजिस्ट का महत्वपूर्ण योगदान रहता है ।अल्ट्रासाउंड जाँच के बाद हीं
हम तय करते हैं की गर्भ के दौरान हमें इलाज किस एंगिल से करना है ।बिहार में विशेषज्ञ डाक्टर हैं लेकिन तकनीक के मामले
में थोडे पीछे हैं.इसलिए इस तरह के आयोजन से उन्हें तकनीकी रूप से समृद्ध होनें
में मदद मिलेगी ।

इस दौरान उपस्थित डॉ नरेंद्र मल्होत्रा ने
बताया कि इस स्थिति में सबसे पहले माता पिता को सतर्क रहने की जरूरत है उसके बाद
स्त्री रोग विशेषग्यो को भी तमाम जांच परीक्षण कर गर्भावस्था में पल रहे भ्रूण की
स्थिति का आकलन करना चाहिये, ताकि
जन्मजात दोषों से बचा जा सके। इस मौके पर मौजूद डॉ जयदीप मल्होत्रा ने बताया कि
भारत तो भारत अमेरिका जैसे देश मे हर साल 33 बच्चों में 1
में जमन्जात दोष पाया जाता है। वहीं भारत मे भी स्थिति ठीक नहीं अतः
इस बीमारी से बच्चों को बचाने के लिये साथ ही स्वस्थ भारत के निर्माण के लिये हमें
कई स्तर पर प्रयास करना होगा। सेमिनार में देश भर से आए प्रख्यात डॉक्टरों ने
बताया कि बदलते परिवेश में जन्मजात विकार से बचने के एवम पता लगाने के लिट् के
वैज्ञानिक विधियां और उपकरण उपलब्ध हैं। पहली बात यह कि गर्भावस्था के दौरान
बच्चे के में जन्म के दोषों का पता लगाने के लिये जन्मपूर्व परीक्षण जरूर करवाएं। साथ
ही वैज्ञानिक परीक्षण, ऊंच संकल्प अल्ट्रासाउंड, कोरियोनिक विल्लस नमूनाकरन और
एमिनोसेंटेसिस के माध्यम से क्रमश गंभीर बीमारियों, जन्म दोषों से सम्बंधित विवरणों, अनुवांशिक
विकारों का निदान एवम गर्भ में बच्चों के प्रोटीन का स्तर पता लगाया जा सकता है।
सम्मेलन में एफओजीएसआई के अध्यक्ष डॉ जयदीप
मल्होत्रा और आईएसपीएटी के अध्यक्ष डॉ नरेंद्र मल्होत्रा, डॉ केशव
मल्होत्रा आगरा से,बेंगलुरू से डॉ प्रतिमा राधाकृष्णन और डॉ अनीता
शेटेटेरी, वेल्लोर से डॉ मनीषा माधई बेक और डॉ स्वाती राठौर, मणिपाल
से डॉ अखिला वासुदेव, डॉ
सचिन निचित, मुंबई के डॉ विशाखख्शी कामथ, प्रशांत
आचार्य अहमदाबाद , गीतेन्द्र शर्मा, डॉ वैशाली
चव्हाण, डॉ दीपिका देका, डॉ अपर्णा शर्मा, सहित
कई विशेषज्ञ मौजूद रहे।वहीं बिहार से डा.मंजूगीता मिश्रा, शांति राय,अनिता
सिन्हा,अलका पाण्डेय,विनीता सिन्हा,रीता सिन्हा,उषा
शर्मा,उषा डिडवानिया,रजनी शर्मा, सहित अन्य
डाक्टर मौजूद रहे।