PATNA : किसान के नाम पर राजनीति तो खूब होती है, लेकिन किसान की
सुध लेने वाला कोई नहीं। बिहार सरकार
कृषि रोडमैप के जरिए फसलों के उत्पादन व उत्पादकता बढ़ाने का दावा तो
करती है, लेकिन किसानों को उपज की वाजिब कीमत दिलाना अभी भी बड़ी
चुनौती बनी हुई है। बिहार में फसलों के भंडारण और विपणन के मोर्चे पर सरकार अब तक
विफल सबित होती रही है। यहां धान के बाद गेहूं की खेती सर्वाधिक की
जाती है। खरीफ मौसम में लक्ष्य के अनुरुप धान की खरीदारी नहीं
हुई अब गेंहू की खरीद पर भी ग्रहण लगता दिखायी दे रहा है। इस खेती के
भरोसे किसान अपनी जरूरी कार्य को वर्ष भर संजोए रखते हैं। लेकिन खरीद प्रारंभ नहीं
हो पाने के कारण किसान अगली खेती करने, महाजनों का कर्ज
चुकाने और अपनी अन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए औने-पौने दाम में गेहूं बेचना
शुरू कर चुके हैं। यह दर्द बिहार के ज्यादातर किसान का है। शादी-ब्याह
के कारण किसान अब अपनी फसल बाजारों में बेच रहे हैं, क्योंकि इस लग्न
के शादी-ब्याह के लिए पैसे की जरूरत सभी को होती है। ऐसे में सरकार ने अब तक गेहूं खरीद की व्यवस्था नहीं की है। बिहार में गेहूं
खरीद की समय सीमा एक माह से अधिक बीत चुकी है, लेकिन अब तक
सरकार गेहूं की खरीद शुरू नहीं कर सकी है।

वैसे, सहकारिता विभाग
ने इस वर्ष दो लाख टन गेहूं खरीद का लक्ष्य रखा है और जून महीने में इस लक्ष्य को
प्राप्त करने का विभाग का दावा भी है।विभाग के एक अधिकारी कहते हैं कि व्यापार
मंडल के जरिए गेहूं की खरीद होनी है। किसी कारणवश अगर क्षेत्र में व्यापार मंडल
शिथिल होंगे वहां यह जिम्मेवारी पैक्सो को दी जाएगी। राज्य के सहकारिता मंत्री राणा रंधीर सिंह ने बताया कि सहकारिता विभाग
धान की तरह गेहूं की खरीद करेगी। सरकार ने गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1735 रुपये प्रति क्विंटंल तय किया है। गोदाम के
कारण विभाग को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, मगर सरकार का
लक्ष्य अधिक से अधिक गेंहू खरीदने का है। लेकिन जमीन पर सरकारी दावा हवा-हवाई साबित हो रहा है।