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बिहार की कलात्मकता का मुरीद हुआ गुजरात, मधुबनी चित्रकला से सज रही गुजरात की दीवारें

बिहार की कलात्मकता का मुरीद हुआ गुजरात, मधुबनी चित्रकला से सज रही गुजरात की दीवारें

पटना. बिहार एक ऐसा नाम जिसकी सभ्यता, संस्कृति और कलात्मकता का स्वर्णिम इतिहास रहा है. खासकर कलात्मकता के क्षेत्र में मधुबनी चित्रकला वैश्विक पटल पर बिहार की पहचान चिन्ह बन चुका है. और अब मधुबनी चित्रकला से गुजरात की दीवारें भी सज रही हैं. 

गुजरात के कोसंबा रेलवे स्टेशन को मधुबनी चित्रकला से सजाया गया है. डीसीएम ने बताया कि मधुबनी चित्रकला विश्व प्रसिद्ध है. मधुबनी चित्रकला का कहीं न कहीं महिला सशक्तिकरण से बहुत ज्यादा लगाव है. उन्होंने कहा कि महिला सशक्तिकरण के साथ हमारा उद्देश्य यहां पर आए लोगों को गुजरात की संस्कृति से परिचित कराना है. इसके लिए भी मधुबनी चित्रकला का सहारा लिया गया है. अब कोसंबा आने वाले यहाँ की दीवारों पर मधुबनी चित्रकला में दोनों राज्यों की संस्कृति देख सकेंगे. 

हाल के वर्षों में मधुबनी चित्रकला की लोकप्रियता तेजी से बढ़ी है. बिहार से खुलने वाली कई ट्रेनों की बोगियां मधुबनी चित्रकला से सजी मिलती हैं. इतना ही नहीं बिहार के कई रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड और सार्वजनिक स्थलों के आलावा पर्यटन स्थलों पर भी मधुबनी चित्रकला की छाप देखने को मिलती है. 

अब मधुबनी चित्रकला से गुजरात की दीवारों के सजने से राज्य की इस कला का और ज्यादा प्रसार होगा. साथ ही अन्य राज्यों में इस कला के कद्रदानों की संख्या बढ़ेगी और पारम्परिक कला से नई पीढ़ी भी ज्यादा से ज्यादा बढ़ेगी. 


मधुबनी चित्रकला अथवा मिथिला पेंटिंग मिथिला क्षेत्र जैसे बिहार के दरभंगा, पूर्णिया, सहरसा, मुजफ्फरपुर, मधुबनी एवं नेपाल के कुछ क्षेत्रों की प्रमुख चित्रकला है। प्रारम्भ में रंगोली के रूप में रहने के बाद यह कला धीरे-धीरे आधुनिक रूप में कपड़ो, दीवारों एवं कागज पर उतर आई है। मिथिला की औरतों द्वारा शुरू की गई इस घरेलू चित्रकला को पुरुषों ने भी अपना लिया है।वर्तमान में मिथिला पेंटिंग के कलाकारों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मधुबनी व मिथिला पेंटिंग के सम्मान को और बढ़ाये जाने को लेकर तकरीबन 10,000 वर्ग फीट में मधुबनी रेलवे स्टेशन के दीवारों को मिथिला पेंटिंग की कलाकृतियों से सरोबार किया। उनकी ये पहल निःशुल्क अर्थात् श्रमदान के रूप में किया गया। श्रमदान स्वरूप किये गए इस अदभुत कलाकृतियों को विदेशी पर्यटकों व सैनानियों द्वारा खूब पसंद किया जा रहा है।

माना जाता है ये चित्र राजा जनक ने राम-सीता के विवाह के दौरान महिला कलाकारों से बनवाए थे। मिथिला क्षेत्र के कई गांवों की महिलाएँ इस कला में दक्ष हैं। अपने असली रूप में तो ये पेंटिंग गांवों की मिट्टी से लीपी गई झोपड़ियों में देखने को मिलती थी, लेकिन इसे अब कपड़े या फिर पेपर के कैनवास पर खूब बनाया जाता है। समय के साथ साथ चित्रकार कि इस विधा में पासवान जाति के समुदाय के लोगों द्वारा राजा शैलेश के जीवन वृतान्त का चित्रण भी किया जाने लगा। इस समुदाय के लोग राजा सैलेश को अपने देवता के रूप में पूजते भी हैं।

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