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हुज़ूर इस कदर भी न इतरा के चलिये
खुले आम आँचल न लहरा के चलिये
इक दूर से आती है पास आके पलटती है
इक राह अकेली सी रुकती है न चलती है
ये अल्फ़ाज़ उस जादूगर के है जिसकी जादू की जाल से कोई निकलना ही नहीं चाहता। शब्दों का जाल गुलज़ार साहब कुछ यूँ बुनते मानों उसमे ज़िन्दगी बसी हो. गुलज़ार साहब की कई कहानियां है और ऐसे ही कुछ रोचक बातें हम आपको बताने वाले है.
18 अगस्त 1934 को जिला पंजाब के दीना गांव में जन्मे गुलजार का पूरा नाम संपूर्ण सिंह कालरा है। ये गांव झेलम नदी के पास स्थित है और ये जगह अब पाकिस्तान में है. मशहूर गीतकार बनने से पहले गुलज़ार साहब मैकेनिक की नौकरी करते थे. गुलजार के जीवन में बड़ा मोड़ तब आया जब उनकी मुलाकात बिमल रॉय से हुई। उन्होंने गुलजार को बंदिनी फिल्म में गाना लिखने का मौका दिया।
गुलज़ार साहब अक्सर सफ़ेद कपड़े पहने नज़र आते थे. इसके राज़ का पर्दा भी गुलज़ार साहब ने ही उठाया था. जब उनसे पूछा गया कि वे क्यों केवल सफ़ेद कपड़े पहनते है तो गुलज़ार साहब ने बड़ी खूबसूरती से कहा कि उन्हें अच्छा लगता है. गुलज़ार साहब कुर्ता-पजामा में ही नज़र आते है, इस सवाल पर गुलज़ार साहब ने कहा कि पहले उनके पास सफेद कपड़ों का दो सेट था और हर दिन एक को धोते थे और दूसरे को पहनते थे. फिल्म ‘खुशबू’ में जिंतेंद्र का चरित्र भी हूबहू गुलजार की तरह दिखाने की कोशिश की गई थी.
गुलजार का पहला गीत 'मोरा गोरा अंग लै ले' बिमल राय की फिल्म बंदिनी से था। इसके अलावा फिल्म सदमा से ऐ जिंदगी गले लगा ले, आंधी से तेेरे बिना जिंदगी से, गोलमाल से आने वाला पल जाने वाला है, खामोशी से हमने देखी हैं आंखों से, मासूम से तुझसे नाराज नहीं जिंदगी, परिचय से मुसाफिर हूं यारों, थोड़ी सी बेवफाई से हजार राहें मुड़ के देखी आदि अन्य नगमें हैं। गुलज़ार साहब के किताब प्रेम ने ही उन्हें एक मैकेनिक से गीतकार बनने का रास्ता दिखाया। एक समय था जब गुलजार जासूसी उपन्यासों के आदी हो चुके थे. तब उन्होंने महान लेखक रविन्द्र नाथ टैगोर की उपन्यास ‘दि गार्डनर’ पढ़ी. जिसके बाद उनका झुकाव एक अलग तरह की लेखनी की ओर होने लगा. खुद गुलजार मानते हैं की उस एक किताब ने उनका जीवन बदल दिया.