पटना. हाइकोर्ट ने राज्य सरकार के वकीलों की फीस में पिछले 14 सालों से कोई बढ़ोतरी नहीं होने के मामले पर सुनवाई की। चीफ जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ ने अधिवक्ता सत्यम शिवम सुंदरम की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए पूर्व एजी पीके शाही समेत पांच वरीय अधिवक्ताओं को राज्य के मुख्य कार्यपालक (मुख्य मंत्री) से मिलकर इस सम्बन्ध में विचार करने का निर्देश दिया।
पिछली सुनवाई में कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए राज्य के चीफ सेक्रेट्री को नोटिस जारी करने का निर्देश दिया था। पिछली सुनवाई में कोर्ट को बताया गया था कि केंद्र सरकार सहित अन्य राज्य राज्य सरकार के वकीलों की तुलना में यहं के सरकारी वकीलों को काफी कम फीस का भुगतान किया जाता है। कोर्ट ने इस जनहित याचिका पर ऑनलाइन सुनवाई करते हुए राज्य के मुख्य सचिव को निर्देश दिया है कि 2 हफ्ते के अंदर इस जनहित याचिका पर विस्तृत जवाब देने का निर्देश दिया था।
याचिककर्ता की ओर से पूर्व महाधिवक्ता एवं सीनियर एडवोकेट पीके शाही ने बहस करते हुए कहा कि पटना हाईकोर्ट में ही केंद्र सरकार के वकीलों की, जहां रोजाना फीस न्यूनतम 9 हज़ार रुपये है, वहां बिहार सरकार के वकीलों को इसी हाई कोर्ट में रोजाना अधिकतम फीस रुपये 2750 से 3750 तक ही है।
वरीय अधिवक्ता पीके शाही ने कोर्ट को जानकारी दी कि पंजाब व हरियाणा, दिल्ली सहित पड़ोसी राज्य झारखंड और बंगाल में भी वहां के सरकारी वकीलों का फीस बिहार के सरकारी वकीलों से ज्यादा है। एडवोकेट विकास कुमार ने कोर्ट को बताया कि केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) पटना बेंच में तो मूल वाद पत्र दायर कर उसपे बहस करने वाले केंद्र सरकार के वकीलों को रोजाना हर मामले पर 9 हज़ार रुपये फीस मिलता है।
सबसे दयनीय स्थिति राज्य के सहायक सरकारी वकीलों की है, जिंन्हे रोजाना मात्र 1250 रुपये फीस पर ही काम करना पड़ता है। कोर्ट ने इस मामले को एक गंभीर जनहित याचिका करार देते हुए मुख्य सचिव को शीघ्र प्रभावी कदम उठाने को आदेश दिया है। कोर्ट ने राज्य सरकार के वकील को भी कहा था कि हाईकोर्ट के आदेश को तुरंत मुख्य सचिव तक प्रेषित करें। बिहार में राज्य सरकारों के वकीलों के फीस में वृद्धि 14 साल पहले बिहार के महाधिवक्ता पीके शाही के ही कार्यकाल में ही हुई थी। इस मामले पर अगली सुनवाई 23 दिसंबर 2022 को की जाएगी।