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हाईकोर्ट बना शिक्षा विभाग और विश्वविद्यालयों के वीसी के वकीलों का अखाड़ा, जमकर लगाए एक दूसरे पर आरोप, जानें बैठक में शामिल होने को लेकर क्या हुआ फैसला

हाईकोर्ट बना शिक्षा विभाग और विश्वविद्यालयों के वीसी के वकीलों का अखाड़ा, जमकर लगाए एक दूसरे पर आरोप, जानें बैठक में शामिल होने को लेकर क्या हुआ फैसला

पटना हाईकोर्ट ने राज्य के विश्वविद्यालयों के शिक्षा विभाग द्वारा  खातों को फ्रीज़ करने के आदेश पर रोक लगा दिया। राज्य के विश्वविद्यालयों की ओर से दायर रिट याचिका पर पटना हाई कोर्ट ने सुनवाई की। इस मामलें पर लम्बी सुनवाई के बाद सभी पक्षों के बीच आपसी सहमति से बात बनी। विश्वविद्यालयों के वीसी शिक्षा विभाग के साथ बैठक करने में अपनी सहमति दी। उनका कहना था कि बैठक सौहार्दपूर्ण माहौल में होना चाहिए।किसी के साथ बदसलूकी नहीं होनी चाहिए।इस बात पर शिक्षा विभाग की ओर से महाधिवक्ता पीके शाही ने कोर्ट को बताया कि वीडियो रिकॉर्डिंग के साथ पूरी बैठक होगी।

कोई भी अधिकारी किसी के साथ बदसलूकी नहीं करेंगे।लेकिन विश्वविद्यालयों के वीसी और अन्य अधिकारी भी पूरा सहयोग करेंगे।जस्टिस अंजनी कुमार शरण  ने एक एक कर विश्वविद्यालयों की ओर से दायर याचिकायों पर सुनवाई की। उनका कहना था कि शिक्षा विभाग की ओर से एक पत्र जारी कर कहा है कि विश्वविद्यालयों की परीक्षा का ससमय संचालन पर चर्चा के लिए बैठक बुलाई गई थी।बैठक में भाग नहीं लेने पर विभाग ने विश्वविद्यालयों के सभी खातों के संचालन पर अगले आदेश तक रोक लगा दी गयी। 

वीसी सीनियर, उन्हें बैठक में शामिल होने के लिए नहीं बुला सकते

वीसी के वकील ने कोर्ट को बताया कि विश्वविद्यालय कानून के तहत शिक्षा विभाग वीसी को बैठक में भाग लेने के लिए नहीं बुला सकती। उनका कहना था कि वरीयता क्रम में चांसलर सबसे ऊपर होते हैं। उसके बाद वीसी फिर प्रोवीसी होते हैं।उसके बाद विभाग के सचिव का नम्बर आता हैं।ऐसे में विभाग के सचिव और निदेशक बैठक में भाग लेने के लिए वीसी को  नहीं बुला सकतें।

उनका कहना था कि 2009 में चांसलर ने एक आदेश जारी कर विश्वविद्यालय के सभी अधिकारियों को निर्देश दे रखा है कि चांसलर के अनुमति से ही मुख्यालय छोड़ना हैं।उन्होंने कोर्ट को यह भी बताया कि बैठक में वीसी के साथ बदसलूकी की जाती हैं। जिस कारण वीसी बैठक में जाने से मना कर दिये।यही नहीं,हाल के दिनों में दो दिवसीय एक बैठक एक होटल में आयोजित की गई थी।इस बैठक वीसी आये लेकिन शिक्षा विभाग की ओर से कोई नहीं आया।

उन्होंने कोर्ट को बताया कि अब तो हाल यह हो गया है कि आरडीडीई वीसी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करा रहे हैं। शिक्षा विभाग एक माह में तीन तीन सत्र का परीक्षा लेने का दवाब बना रही हैं। उनका कहना था कि वीसी के नियुक्ति में राज्य सरकार का कोई भूमिका नहीं है। फिर भी बेवजह दवाब बनाने के लिए ऐसा किया जा रहा है। यही नहीं, विश्वविद्यालय के खाता के संचालन पर रोक लगाने का अधिकार नहीं है।

महाधिवक्ता ने दिया यह तर्क

वही राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता ने कहा कि जितना पैसा विश्वविद्यालयो को दी जा रही हैं, उस पैसा को छात्रों को दे दिया जाये, तो वे बेहतर शिक्षा ग्रहण कर लेंगे। उनका कहना था कि राज्य सरकार लगभग 5 हजार करोड़ रुपये देती हैं।और शिक्षा का स्तर अन्य राज्यों के तुलना में काफी खराब है।शिक्षा की बदतर स्थिति के कारण छात्रों का पलायन जारी है। उनका कहना था कि विभाग थोड़ी कड़ाई  क्या की गई कि सभी विचलित हो गये। छात्रों का भविष्य अंधकारमय हैं।उन्होंने बताया कि कोई भी विश्वविद्यालय समय पर परीक्षा नहीं ले रहा है।

परीक्षा समय पर लेने के लिए बैठक बुलाई गई,तो वीसी भाग नहीं लिये।उनका कहना था कि कोर्ट में सभी कानून की बात कर रहे हैं, लेकिन यह नहीं बता रहे हैं कि आखिर किस कानून के तहत विश्वविद्यालय पीएल खाता में पैसा रखते हैं। जबकि चांसलर की ओर से वरीय अधिवक्ता डॉ केएन सिंह और राजीव रंजन कुमार पांडेय ने कोर्ट को बताया कि प्रदेश के छात्रों के उज्ज्वल भविष्य को देखते हुए सभी को आपसी मतभेद मिटा कर बैठक में भाग लेना चाहिए। उनके ही सुझाव के बाद कोर्ट ने बैठक में भाग लेने की बात कही।जिस पर सभी पक्ष अपनी सहमति जताई।और कोर्ट ने सरकार के खर्चा पर बैठक की तारीख,समय और स्थान तय किया।कोर्ट ने मामले पर अगली सुनवाई की तारीख 17 मई,2024 तय की।

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