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अमृतसर हादसा: ड्राइवर के ऊपर लगते आरोपों के बीच पढ़िए ट्रेन में कैसे लगता है इमरजेंसी ब्रेक

अमृतसर हादसा: ड्राइवर के ऊपर लगते आरोपों के बीच पढ़िए ट्रेन में कैसे लगता है इमरजेंसी ब्रेक

News4Nation: अमृतसर में रावण दहन देख रही भीड़ के बीच गुजरती ट्रैन को देख कर लोग कई सवाल लोगों के जहन में है. सवाल ये कि ट्रेन के ड्राइवर ने क्यों इमरजेंसी ब्रेक नहीं लगाया. न्यूज़4नेशन ट्रैन में ब्रेक कैसे लगता है इसकी पूरी इंसाइड स्टोरी लेकर आया है.  अमृतसर में रावण दहन देख रही भीड़ हादसे का शिकार हो गई. लोग मेन लाइन पर खड़े थे, जलते रावण का वीडियो बना रहे थे. तभी जालंधर-अमृतसर डेमू वहां पहुंच गई. पटाखों के शोर के बीच लोगों ने गाड़ी की हॉर्न नहीं सुनी ऐसे में कोई कुछ समझता, उससे पहले 60 लोगों की जान चली गई. हादसे में बचे लोग और उनके बनाये वीडियो में  ट्रेन रफ्तार से निकलती नज़र आती है. तो ये सवाल सभी के मन में है कि क्यों ड्राइवर ने भीड़ देखकर भी गाड़ी नहीं रोकी? न्यूज़4नेशन ने एक ट्रेन के ड्राइवर जिसे आम बोलचाल में लोको पायलट कहते हैं.

ट्रेन में कैसा ब्रेक होता है ?

ट्रेन का ब्रेक सड़क पर चलने वाले ट्रक या बस जैसा ही होता है. देश में चलने वाली ट्रेनों में एयर ब्रेक होता है जो सामान्य स्थितियों में ट्रेन में लगा ही रहता है. गाड़ी चलाने के लिए ब्रेक वाले पाइप में प्रेशर बनाकर ब्रेक शू पहिए से अलग किया जाता है. तब गाड़ी आगे बढ़ पाती है. 

किसके कहने पर लगता है ब्रेक ?

ट्रेन को कब चलना है और कब रुकना है, ये लोको पायलट के हाथ में नहीं होता. वो या तो सिग्नल के हिसाब से चलता है या फिर गाड़ी के गार्ड के कहे मुताबिक लोको पायलट और गार्ड ही वो दो लोग होते हैं, जो गाड़ी के ब्रेक लगाने का फैसला लेते हैं. किसी ट्रेन को हाईस्पीड चलाना आसान होता है लेकिन  ब्रेक लगाना कहीं मुश्किल. ख़ास कर तब कि जब गाड़ी सही वक्त पर सही जगह रुके. ऐसा कहा जा सकता है कि ड्राइवर असली सैलरी ट्रेन चलाने की जगह ब्रेक लगाने की लेता है. 

सबकुछ सिग्नल से चलता है. 

ट्रेन को जब तक हरा सिग्नल मिलता रहता है, वो अपनी नियत रफ्तार से चलती है. भारत में ये रफ्तार 160 किलोमीटर प्रतिघंटा तक हो सकती है. जब लोको पायलट को दो पीले लाइट वाला सिग्नल दिखता है, तो गाड़ी की रफ्तार कम करना शुरू करना पड़ता है. जब ड्राइवर ब्रेक लीवर को घुमाता है, ब्रेक पाइप में हवा का दबाव कम होने लगता है और ब्रेक शू पहिए से रगड़ खाने लगता है. एक पीले लाइट वाले सिग्नल के बाद लोकोपायलट और ज़ोर से ब्रेक लगाता है. इसके बाद अगर गाड़ी को पीले सिग्नल मिलते रहें तो वो धीमी रफ्तार से चलती रहेगी और अगल लाल सिग्नल हुआ, तो लोकोपायलट हर हाल में सिग्नल से पहले गाड़ी खड़ी करता है. रेलवे में लाल सिग्नल पार करना बड़ी लापरवाही माना जाता है और ऐसा होने पर रेलवे जांच कर सकता है. 

इमरजेंसी ब्रेक कब लगाए जाते हैं ?

भारतीय रेल का लोकोपायलट हर उस स्थिति में इमरजेंसी ब्रेक लगा सकता है, जिसमें उसे तुरंत गाड़ी रोकना ज़रूरी लगता है, मसलन सामने कुछ आ जाए, पटरी में खराबी दिखे, गाड़ी में कोई खराबी हो, कुछ भी कारण हो सकता है. इमरजेंसी ब्रेक उसी लीवर से लगता है जिससे सामान्य ब्रेक. लीवर को एक तय सीमा से ज़्यादा खींचने पर इमरजेंसी ब्रेक अपने आप लग जाता है. 

इमरजेंसी ब्रेक लगाने के बाद कितनी दूरी पर ट्रेन रुकती है ?

अब सवाल ये है कि आपात स्तिथि में लगा ब्रेक कब लगाया जाता है. इसे समझने के लिए आप इस उदाहरण को समझिये 24 डिब्बों की ट्रेन 100 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल रही हो और लोको पायलट इमरजेंसी ब्रेक लगा दे तो ब्रेक पाइप का प्रेशर पूरी तरह खत्म हो जाएगा और गाड़ी के हर पहिए पर लगा ब्रेक शू पूरी ताकत के साथ रगड़ खाने लगेगा. इसके बावजूद ट्रेन 800 से 900 मीटर तक जाने के बाद ही पूरी तरह रुक पाएगी. अमृतसर में हादसे वाली डेमू को रुकने के लिए कम से कम 600 मीटर की दूरी चाहिए होती है. यहां ये भी गौर करने की जरुरत है कि डिब्बे में लगी इमरजेंसी चेन खींचते समय भी कमोबेश यही होता है. ब्रेक पाइप का प्रेशर बड़ी तेज़ी से कम होता है और पूरी ताकत से ब्रेक लग जाते हैं. ये वैसा ही है, जैसे ड्राइवर या गार्ड पूरी ताकत से ब्रेक लगाएं.

गाड़ी के सामने किसी के आ जाने पर लोको पायलट ट्रेन क्यों नहीं रोकता ?

लोकोपायलट अगर इमरजेंसी ब्रेक लगाना भी चाहे, तो उसे बड़ी दूर से नज़र आ जाना चाहिए कि कोई पटरी पर है. आमतौर पर रेल हादसों में लोग, जानवर या गाड़ियां अचानक गाड़ी के सामने आ जाते हैं. ऐसे में लोको पायलट के पास इमरजेंसी ब्रेक लगाने का समय ही नहीं होता. और अगर इमरजेंसी ब्रेक लगा भी दिया जाए तो टक्कर को रोकना लगभग असंभव होता है. रात को इमरजेंसी ब्रेक का इस्तेमाल और मुश्किल हो जाता है. लोकोपायलट को रात में उतना ही ट्रैक नज़र आता है, जहां तक इंजन के लाइट की रोशनी जाती है. कोई भीड़ अगर रात के वक्त ट्रैक पर हो, तो ड्राइवर को लगभग एक किलोमीटर के दायरे में होने पर नज़र आएगी. और तब इमरजेंसी ब्रेक लगाकर भी गाड़ी रोकना बहुत मुश्किल होता है. ऐसे में ड्राइवर की आखिरी उम्मीद होती है इंजन में लगा हॉर्न. वो उसे लगातार बजाता है. अमृतसर हादसे वाली डेमू का हॉर्न भी टक्कर के वक्त बज रहा था.

अमृतसर हादसे के बारे में क्या कहा रेलवे ने ?

रेलवे बोर्ड के चेयरमैन अश्वनी लोहानी ने कहा है कि लोग मेन लाइन पर जमा थे. मेन लाइन पर ट्रेनें अपनी निर्धारित स्पीड पर चलती हैं. लोहानी के मुताबिक डेमू लोकोपायलट ने हॉर्न बजाया और ब्रेक लगाने की कोशिश भी की. गाड़ी की रफ्तार 92 किलोमीटर प्रति घंटा थी जो टक्कर तक 68 किलोमीटर तक घट गई थी. लेकिन चूंकि ट्रेन को रुकने के लिए 625 मीटर की जगह चाहिए थी, गाड़ी धीमी होते-होते भी भीड़ पर चढ़ गई.


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