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मानव श्रृंखला के बहाने सरोकार के पेट में पक गयी बिहार की राजनीति और विरोध के चूल्हे में आंच लगाता रहा विपक्ष, वाह रे सियासत!

मानव श्रृंखला के बहाने सरोकार के पेट में पक गयी बिहार की राजनीति और विरोध के चूल्हे में आंच लगाता रहा विपक्ष, वाह रे सियासत!

पटना : अपने शासन काल के दौरान सीएम नीतीश कुमार ने बिहार में कई यात्राएं की है। सभी यात्राओं के नाम अलग अलग रहे हैं।लेकिन मकसद एक ही रहा होगा, यानी इसे ऐसे समझ लीजिये,जनता से रूबरू होना + जागरूकता पैदा करना+ जन समस्याओं को सुनना = सियासत। होना भी चाहिये। आखिर किसी भी राजनीतिक दल का लक्ष्य तो सत्ता ही होता है। इसमें नीतीश कामयाब रहे हैं और आगे भी कामयाब होना चाहते हैं। लेकिन जनता को मजा तब आता है जब सियासत का मतलब लोगों के सरोकार से भी हो।

पर्यावरण के बहाने सन्देश और उसके पेट में पक रही राजनीति को समझिये

आज से कुछ ही दिन पहले बिहार के मुखिया नीतीश कुमार ने पर्यावरण को लेकर जल जीवन हरियाली जैसे संवेदनशील मुद्दों को योजनाओं में बदलकर क्रियान्वयन करने का निर्णय लिया । इस योजना के लिए उन्होंने 24000 करोड का बजट भी रखा ।काम शुरू होने से पहले नीतीश बिहार की यात्रा पर निकल गए। जिसका नाम रखा जल जीवन हरियाली यात्रा।

इसी दौरान एक जनसभा में उन्होंने मानव श्रृंखला की घोषणा भी कर डाली जिसे 19 जनवरी को अंजाम दिया गया। अब थोड़ा यात्राओं का मतलब समझिए। इतिहास बताता है की यात्राओं के सहारे बदलाव के नाव पर समाज भी सवार हुआ है और सियासत भी।सत्ता के लिए भी यात्राओं को बतौर हथियार इस्तेमाल करने के कई उदाहरण सामने रहे हैं। यात्राओं के सहारे सरोकार की सियासत करने वालों में फिलहाल नीतीश का नाम सबसे ऊपर है ।

बिहार विधानसभा चुनाव से पहले जल जीवन हरियाली यात्रा एक राजनीतिक यात्रा भी है,ऐसा कहना कोई अतिशयोक्ति न होगा। एक ऐसी सियासत या यूं कहें एक ऐसा सरोकारी मुद्दा है जिसे समाज ने खुद ही थाम लिया ।तभी तो 40% जनता ने सड़कों पर स्वतः उतरकर इतिहास रच दिया। बिहार वासियों ने स्वयं 2017 और 2018 का रिकॉर्ड तोड़ दिया।ठीक है यह संदेश पर्यावरण के लिए था लेकिन इसके पेट में छिपी बातों को भी पहचानना होगा। एनडीए के तमाम नेता सड़कों पर उतर कर हाथों में हाथ मिलाकर एक तरफ पर्यावरण का संदेश दे रहे थे तो दूसरी तरफ एक मजबूत सियासत को भी अंजाम दे रहे थे। सरकारी आंकड़ों की माने तकरीबन 5 करोड से ज्यादा लोगों ने मानव श्रृंखला बनाया ।

इसे कहते हैं सरोकार वाली सियासत 
सबको पता है कि 2020 में बिहार विधानसभा चुनाव होने वाला है । नीतीश कुमार कि इस सरोकार वाली सियासत वोट की राजनीति की खेत में फसल काटने में काम आएगी।  जानकारों की माने तो मानव श्रृंखला को हर वर्ग का समर्थन मिला। मतलब साफ था नीतीश भले ही जल जीवन हरियाली के माध्यम से पर्यावरण वाली सियासत कर रहे थे लेकिन उसे समाज ने हाथों-हाथ थाम लिया। चुकी यह समाज की जरूरत है।जाहिर सी बात है इसका राजनीतिक फायदा भी नीतीश कुमार को मिल सकता है।

लालू फैमली के विरोध से राजद को क्या मिलेगा?
अब सवाल लाख टके का है कि आखिर यह सामाजिक सरोकार वाली सियासत पर लालू की फैमिली उबल क्यों रही थी। क्या इससे लालू प्रसाद की पार्टी को राजनीतिक फायदा मिलने वाला था या फिर यह विरोध सिर्फ विरोध के नाम पर हुआ। लालू जेल से ही ट्वीट पर ट्वीट कर जल जीवन हरोयाली और मानव श्रृंखला को पर निशाना साधते रहे वहीं तेजस्वी और राबड़ी ने जल जीवन हरियाली योजना को ही लूट का अड्डा बता दिया।

 लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या इस तरह की सियासत से राजद को फायदा होने वाला है? जानकारों की माने तो ऐसा नहीं लगता। सामाजिक सरोकार वाली सियासत में विरोध का स्वर सोच-समझकर निकालना चाहिए। जिस तरीके से लोगों ने पर्यावरण की इस मुहिम में साथ दिया उससे ऐसा लगा कि नीतीश कुमार की सरोकार वाली सियासत को समाज ने साथ दे दिया है।

यह वोट में कितना तब्दील होगा या तो वक्त बताएगा। लेकिन सड़कों पर एक स्वतः दिखे उमंग ने यह जाहिर कर दिया कि आने वाले बिहार विधानसभा चुनाव के जंग में यह सरोकार वाली सियासत रंग जरूर दिखाएगी। जल जीवन हरियाली योजना के रंग में बिहार को रंगने की कोशिश अब शुरू हो जाएगी।अगर उसका सीधा फायदा समाज को मिला तो चुनाव में अंदाज तो जरूर बदल जाएगा। देखने वाली बात यह होगी कि इसका फायदा लालू यादव की पार्टी को कितना मिलता है?

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