पटना। पटना हाईकोर्ट में राज्य सरकार द्वारा एससी, एसटी, ओबीसी, ई बीसी श्रेणियों की आरक्षण सीमा पचास फीसदी से बढ़ा कर 65 फीसदी आरक्षण देने पर शुक्रवार को सुनवाई की जाएगी। चीफ जस्टिस के वी चन्द्रन की खंडपीठ गौरव कुमार व अन्य की जनहित याचिकायों पर सुनवाई करेगी।
9 नवंबर,2023 को राज्य सरकार ने एक कानून ला कर आरक्षण की सीमा बढ़ा दी थी। पटना हाईकोर्ट ने इसे चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए इस पर रोक लगाने से इंकार कर दिया था। साथ ही कोर्ट ने राज्य सरकार का इस मामलें पर जवाब भी देने का निर्देश दिया था।
इसके पहले पटना हाईकोर्ट में राज्य सरकार द्वारा सरकारी नौकरियों में एससी, एसटी, ईबीसी व अन्य पिछड़े वर्गों को 65 फीसदी आरक्षण दिये जाने को मोहन कुमार ने एक याचिका दायर कर चुनौती दी हैँ। इस मामलें पर चीफ जस्टिस के वी चंद्रन की खंडपीठ ने तय किया था कि इसी मुद्दे पर दायर गौरव कुमार के याचिका के साथ 12 जनवरी,2024 को सुनवाई करेगी।
इस याचिका में भी राज्य सरकार द्वारा 21 नवंबर,2023 को पारित कानून को चुनौती दी गई है, जिसमें एससी, एसटी, ईबीसी व अन्य पिछड़े वर्गों को 65 फीसदी आरक्षण दिया गया है,जबकि सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थियों के लिए मात्र 35 फीसदी ही पदों पर सरकारी सेवा में जा सकते है।
अधिवक्ता दीनू कुमार ने अपनी याचिका में बताया है कि सामान्य वर्ग में ईडब्ल्यूएस के लिए 10 फीसदी आरक्षण रद्द करना भारतीय संविधान की धारा 14 और धारा 15(6)(b) के विरुद्ध है।
उन्होंने बताया कि जातिगत सर्वेक्षण के बाद जातियों के अनुपातिक आधार पर आरक्षण का ये निर्णय लिया,न कि सरकारी नौकरियों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व के आधार पर ये निर्णय लिया।
उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा स्वाहने मामलें में आरक्षण की सीमा पर 50 प्रतिशत का प्रतिबंध लगाया था।जातिगत सर्वेक्षण का मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के फिलहाल लंबित है।
इसमें ये सुप्रीम कोर्ट में इस आधार पर राज्य सरकार के उस निर्णय को चुनौती दी गई, जिसमें राज्य सरकार ने सरकारी नौकरियों में आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से बढ़ा कर 65 फीसदी कर दिया था
पूर्व में गौरव कुमार की याचिका पर कोर्ट ने इस राज्य सरकार के निर्णय पर रोक लगाने से इंकार करते हुए राज्य सरकार को 12 जनवरी, 2024 तक जवाब देने का निर्देश दिया था।