PATNA : बिहार की राजनीति में पिछले कुछ दिन राजनीतिक उठा पटक रहे हैं। पहले जदयू ने भाजपा के साथ रिश्ते तोड़ कर जदयू के साथ गठबंधन कर लिया। चाचा नीतीश के साथ भतीजे तेजस्वी ने मिलकर सरकार बनी ली। वहीं दूसरी तरफ अब एक और चाचा भतीजे की चर्चा शुरू हो गई है। बताया जा रहा है कि चाचा पशुपति पारस और चिराग पासवान फिर से साथ आ सकते हैं। चाचा-भतीजे में सुलह की संभावना इसलिए अधिक है क्योंकि दोनों पार्टियों का आधार वोट और विजन एक है। दोनों स्व रामविलास पासवान के आदर्शों को साथ लेकर चलने के पक्षधर हैं। एक साथ मिल कर लड़ेंगे ,तो मजबूती से वोट पा सकेंगे। विवाद के बाद असली लोजपा का नाम और चुनाव चिह्न चुनाव आयोग के पास फ्रीज है. ऐसे में संभव है कि एका होने पर उनको पार्टी का पुराना नाम और चुनाव चिह्न वापस मिल जाये।
पशुपति पारस ने तो सार्वजनिक रूप से एनडीए के साथ रहने की घोषणा कर दी है। रालोजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्रवण अग्रवाल की मानें चिराग पहले निर्णय लें कि किसके साथ हैं. सिर्फ नीतीश के खिलाफ हैं या महागठबंधन के भी खिलाफ हैं. अगर बिहार में एनडीए की सरकार चाहते हैं तो अपना स्टैंड क्लियर करें. रालोजपा पूरी तरह एनडीए के साथ है और आगे भी रहेगी.
वहीं दूसरी तरफ चिराग ने अब तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं। लोजपा-रा के प्रवक्ता राजेश भट्ट ने कहा है हम न एनडीए के साथ हैं, न यूपीए के साथ. हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान स्वतंत्र रूप से अपनी पार्टी को मजबूत करने में जुटे हैं. हमारा मानना है कि वर्तमान बिहार सरकार 2024 तक भी नहीं चलेगी. मध्यावधि चुनाव होकर रहेगा।
रालोजपा में टूट की चर्चा के बाद बनी संभावना
दरअसल शनिवार को यह खबर सामने आई कि पशुपति पारस की रालोजपा के तीन सांसद राजद और जदयू में शामिल होने जा रहे हैं। जिसके बाद रालोजपा में सिर्फ पशुपति पारस और भतीजे प्रिंस राज ही बचे रहेंगे। हालांकि पशुपति पारस सहित रालोजपा के सभी सांसदों ने इसे गलत बताया और एनडीए में बने रहने की बात कही। रालोजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पशुपति कुमार पारस, पार्टी के वरिष्ठ नेता सूरजभान सिंह ने इस खबर को अफवाह बताया है। लेकिन जिस तरह चिराग की तरह पशुपति पारस भी नीतीश कुमार के खिलाफ हो गए हैं। उसके बाद चिराग-पशुपति पारस के बीच दूरी में कमी में बिहार की राजनीति में बड़ा बदलाव ला सकती है।
चिराग मॉडल की हो रही चर्चा
चिराग पासवान को नीतीश कुमार का धूर विरोधी माना जाता है. एनडीए से जदयू की टूट के पीछे भी ' चिराग मॉडल ' ही सबसे बड़ी वजह बनी. ऐसे में एनडीए नेताओं का मानना है कि 2024 में विपक्ष के पीएम उम्मीदवार के रूप में प्रोजेक्ट किये जा रहे नीतीश कुमार को रोकने के लिए चिराग पासवान उनके साथ आ सकते हैं. यह संभावना इसलिए भी जतायी जा रही है क्योंकि चिराग खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हनुमान बताते रहे हैं।
पिछले साल चाचा भतीजे के बीच आपसी मनमुटाव के कारण लोजपा दो हिस्से में बंट गया था। जिसे नीतीश कुमार की बड़ी जीत मानी जा रही थी। ऐसे में दोनों चाचा भतीजा फिर से एक साथ आते हैं तो 2024 के लोकसभा चुनाव के साथ ही 2025 के विधानसभा चुनाव को भी प्रभावित करेगा।