बिहार उत्तरप्रदेश मध्यप्रदेश उत्तराखंड झारखंड छत्तीसगढ़ राजस्थान पंजाब हरियाणा हिमाचल प्रदेश दिल्ली पश्चिम बंगाल

LATEST NEWS

यूपी में भाजपा को अपनों से निपटने की चुनौती, जदयू और वीआईपी ने एनडीए की एकता में लगाई सेंध

यूपी में भाजपा को अपनों से निपटने की चुनौती, जदयू और वीआईपी ने एनडीए की एकता में लगाई सेंध

लखनऊ. उत्तर प्रदेश में भाजपा को विपक्ष के साथ ही एनडीए के घटक दलों से भी चुनौती झेलनी पड़ रही है. सत्ताधारी दल भाजपा का यूपी में पहले में अपना दल और निषाद पार्टी से गठबंधन है. बुधवार को अमित शाह सहित भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, यूपी चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान ने अनुप्रिया पटेल और संजय निषाद के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस कर गठबंधन पर मुहर भी लगाई. लेकिन इसके उलट भाजपा को एनडीए के ही दो घटक दलों से सीटों के मुद्दे पर अलग किस्म की चुनौती मिल रही है. 

खासकर बिहार में सत्ता की साझीदार जदयू और मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी ने यूपी में भाजपा को आँखें दिखाई हैं. यूपी की राजनीतिक सरगर्मी का सीधा असर इन दिनों बिहार में देखने को मिल रहा है. जदयू और वीआईपी ने सीटों की दावेदारी को लेकर भाजपा पर वादा खिलाफी करने का आरोप भी लगाया है. जदयू के वरिष्ठ नेता केसी त्यागी ने तो यहाँ तक कहा कि हम एनडीए में ही हैं लेकिन भाजपा से नाराज नहीं निराश होकर यूपी में अपने बलबूते चुनाव लड़ने का फैसला लिया है. 

राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो एनडीए का चेहरा हर राज्य में अलग अलग है. बिहार में जहाँ जदयू और अन्य दलों के साथ भाजपा को समझौता करने में कोई गुरेज नहीं है वहीं यूपी में स्थिति अलग है. यूपी में अपना दल और निषाद पार्टी जिन जातियों का प्रतिनिधित्व करने का दावा करते हैं उन्हीं जातियों के बलबूते जदयू और वीआईपी भी अपना राजनीतिक जनाधार यूपी में बढ़ाने की तैयारी में है. 

यूपी में 25 फीसदी वोट बैंक मुख्य रूप से दलितों का है. वहीं ब्राह्मणों का वोट बैंक 8 फीसदी, 5 फीसदी ठाकुर व अन्य अगड़ी जाति 3 फीसदी है.  अगड़ी जाति का कुल वोट बैंक तकरीबन 16 फीसदी है. वहीं पिछड़ी जाति के वोट बैंक पर नज़र डालें तो यह कुल 35 फीसदी है, जिसमें 13 फीसदी यादव, 12 फीसदी कुर्मी और 10 फीसदी अन्य जातियों के लोग आते हैं. इसी कुर्मी समाज और निषाद पर बिहार के दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों की नजर है. 

ऐसे में जदयू हो या वीआईपी दोनों दलों का अकेले अपने दम पर चुनाव में उतरना उनके खुद के सांगठनिक विस्तार के लिहाज से भी अहम है. अगर दोनों दलों को चुनाव में अनुकूल सफलता मिली तब तो यह भाजपा के लिए मुसीबत की बात होगी. वहीं अगर दोनों दलों ने प्रभावशाली प्रदर्शन नहीं किया तो यह आने वाले समय में एनडीए में जदयू और वीआईपी का वजन कम करने वाली स्थिति ला देगा. 


Suggested News