ंइस साल प्लास्टिक प्रदूषण थीम पर भारत को 45वां विश्व पर्यावरण दिवस की मेजबानी करने का मौका मिला, वहीं दूसरी तरफ देश में हर रोज 24,940 टन प्लास्टिक कचरा पैदा होता है, और इस प्लास्टिक से हर साल कई जानवरों की मौत हो रही है. विश्व पर्यावरण दिवस पर देश को और पूरे विश्व को पर्यावरण सुरक्षा को लेकर जागरूक किया जाता है, लेकिन हम कितना जागरूक है वो तो अकड़े ही बता देते हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार समुद्र को प्रदूषित करे वाले टॉप 5 प्रदूषकों में से चार पैकेजिंग उद्योग से निकलने वाला प्लास्टिक हैं.
इस दिन को दुनियाभर में मनाने की घोषणा संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 1972 में की थी लेकिन पहला विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून 1974 को मनाया गया था. पर्यावरण के लिए काम करने वाले NGO ग्रीनपीस ने प्लास्टिक बनाने वाली कंपनी से अनुरोध किया, कि वे प्लास्टिक से होने वाले पर्यावरण के नुकसान की ज़िम्मेदारी लें. आपको बता दें कि करीब 90% प्लास्टिक को रिसाईकिल नहीं किया जा सकता है.
एक डाटा के अनुसार साल 2015-16 तक करीब 900 टन कचड़े का उत्पादन किया गया है. 2015 के आंकड़ों के अनुसार दिल्ली में 689.52 टन, चेन्नई में 429.39 टन, मुंबई में 408.27 टन, बंगलोर में 313.87 टन और हैदराबाद में 199.33 टन प्लास्टिक कचरा तैयार होता है. ये शहर देश में सबसे अधिक प्लास्टिक कचरा पैदा करते हैं.
अब सोचने की बात यह है कि एक तरफ जहाँ देश पर्यावरण दिवस की मेज़बानी कर रहा है वहीं दूसरी तरफ इतनी गंदगी भी फैली हुई है. भले ही आज भारत 2018 का पर्यावरण दिवस को होस्ट कर रहा हो लेकिन पूरा देश वायू प्रदूषण और पीने के पानी की कमी से जूझ रहा है. और यह कहने में जरा भी शर्मिंदगी नहीं होनी चाहिए कि भले ही हम अच्छे होस्ट हों और अतिथि की उपमा देव से करते हों लेकिन पर्यावरण देव की चिंता हमें नहीं है.