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भारत इन परियोजनाओं पर कर रहा है काम, बहुत जल्द पानी के लिए भी तरसेगा पाकिस्तान

भारत इन परियोजनाओं पर कर रहा है काम, बहुत जल्द पानी के लिए भी तरसेगा पाकिस्तान

NEWS4NATION DESK : पाकिस्तान पर शिकंजा कसने के लिए भारत अब अपने एक और हथियार का इस्तेमाल कर रहा है। इस हथियार के इस्तेमाल से जल्द ही पाकिस्तान पानी के लिए भी तरसेगा।

दरअसल  सिंधु नदी जल समझौता के तहत भारत के हिस्से में आई तीन नदियों के पानी को पाकिस्तान जाने से रोकने के लिए भारत ने अब तेजी से काम करने का फैसला किया है।  इसके लिए फिलहाल 3 बांध परियोजनाओं पर काम शुरू हुआ है। 

पहली परियोजना शाहपुर कंडी बांध परियोजना है।  परियोजना के पूरा होने पर रावी नदी पर बने रणजीत सागर डैम से छोड़े गए पानी का पूरा इस्तेमाल हो सकेगा। रणजीत सागर डैम पठानकोट के पास पंजाब और जम्मू कश्मीर के बॉर्डर पर बनी एक जल बिजली परियोजना है। अभी तक परियोजना द्वारा बिजली उत्पादन के बाद छोड़ा गया पानी बिना उपयोग हुए सीधा पाकिस्तान चला जाता है।  लेकिन अब ऐसा नहीं हो सकेगा।

शाहपुर कंडी परियोजना पूरी होने के बाद रणजीत सागर डैम से छोड़े गए पानी का इस्तेमाल 206 मेगावाट बिजली के उत्पादन और पंजाब के 37000 हेक्टेयर जमीन पर सिंचाई के काम में हो सकेगा। इस परियोजना पर लगभग 2750 करोड़ रुपए खर्च होंगे और इस 4 सालों में पूरा कर लिया जाएगा। 

वही दूसरी परियोजना उझ बहुउद्देश्यीय बांध है।  परियोजना सबसे अहम है। जम्मू कश्मीर के कठुआ ज़िले में बनाई जाने वाली ये परियोजना उझ नदी पर बनाई जाएगी, जो रावी नदी की एक सहायक नदी है।  क़रीब 6000 करोड़ रूपए की लागत से बनने वाली इस योजना से क़रीब 78 करोड़ क्युबिक मीटर पानी के भंडारण का इंतज़ाम हो पाएगा।  परियोजना के 6 साल में पूरा होने की उम्मीद है और इससे जम्मू कश्मीर के कठुआ , सांबा और हीरानगर ज़िले की 31000 हेक्टेयर ज़मीन को सिंचाई की सुविधा मिलने के साथ साथ कठुआ ज़िले में पीने का पानी भी मिल सकेगा। 

वहीं उझ परियोजना के नीचे रावी - ब्यास के बीच एक और बराज और लिंक नहर बनाए जाने की योजना बन रही है।  सरकार की योजना है कि रावी नदी पर एक बराज बनाकर पानी को एक लिंक नहर के ज़रिए ब्यास बेसिन तक पहुंचाया जाए। अबतक रावी नदी पर रणजीत सागर ( थियाम डैम ) डैम होने के बावजूद बहुत मात्रा में पानी उपयोग नहीं हो पाने के कारण पाकिस्तान को चला जाता है। अब इस बराज और लिंक नहर का निर्माण कर क़रीब 5 लाख एकड़ फीट पानी को पाकिस्तान जाने से रोका जा सकेगा। इसे अगले पांच सालों में पूरा किए जाने का लक्ष्य है। 

बता दें 1955 में भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु नदी जल बंटवारा समझौता हुआ था। समझौते के तहत पाकिस्तान को सिंधु , झेतम और चिनाब नदी के 135 मिलियन एकड़ फीट पानी का अधिकार मिला। जबकि भारत को रावी , ब्यास और सतलज नदी के 33 मिलियन एकड़ फीट पानी के इस्तेमाल का अधिकार मिला। हालांकि समझौते के मुताबिक़ पाकिस्तान के हिस्से वाली नदियों के पानी का इस्तेमाल भारत उन कामों के लिए कर सकता है जिसके लिए पानी निकालने की ज़रूरत नहीं पड़ती हो जैसे पनबिजली परियोजना।  वहीं भारत को मिली तीनों नदियों के पानी के इस्तेमाल का पूरा अधिकार भारत के पास है।  

मतलब ये कि भारत के पास ये अधिकार है कि इन नदियों का पानी वो पूरी तरह से इस्तेमाल कर सके। अबतक मुकम्मल इंतज़ाम नहीं होने के चलते भारत अपने हक़ का क़रीब 90 फ़ीसदी पानी ही इस्तेमाल कर पा रहा है जबकि बाक़ी पानी पाकिस्तान चला जाता है। 


 
 

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