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जेल प्रशासन का दिखा अमानवीय चेहरा, कैदी ने लगाया नजरबंद करने का आरोप, संस्था की पहल पर रिहा

जेल प्रशासन का दिखा अमानवीय चेहरा, कैदी ने लगाया नजरबंद करने का आरोप, संस्था की पहल पर रिहा

गया : गया केंद्रीय कारागार से रिहा दो विचाराधीन कैदियों ने जेल प्रशासन पर कई संगीन इल्जाम लगाये हैं। उन्होंने जेल प्रशासन पर अमानवीय व्यवहार करने का आरोप लगाया है। कैदी ने बताया कि जैसे ही जेल प्रशासन को पता चला कि उसे एड्स है, उसके साथ अमानवीय व्यवहार शुरू हो गया। उसे वार्ड से ट्रांसफर कर सेल में रख दिया गया। न तो ठीक से खाना दिया जाता था और न ही किसी से मिलने की इजाजत थी। पूरी तरह से नजरबंद कर दिया गया था। कैदी ने बताया कि उसे 19 नंबर की सेल में रखा गया था, जहां उसे सांस लेने में भी काफी कठिनाई होती थी। किसी तरह कैदी ने अपनी आपबीती नेशनल ह्यूमन राइट्स एंड पब्लिक वेलफेयर ट्रस्ट तक पहुंचायी। संस्था के सचिव गणेश सिंह ने बताया कि हमलोगों ने अपनी ओर से पहल कर बिहार राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण व गया के जिलाधिकारी से मानवता के आधार पर दोनों कैदियों को रिहा करने की अपील की। गुरुवार को दोनों कैदियों को रिहा कर दिया गया। एक कैदी का नाम सुरेंद्र बहादुर (बदला हुआ नाम) है और दूसरे कैदी का नाम विनोद कुमार है। सुरेंद्र बहादुर नेपाल का रहनेवाला है तो विनोद कुमार हिमाचल प्रदेश का निवासी है। 


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दोनों एनडीपीएस मामले में गया के सेंट्रल जेल में साल 2015 से बंद थे। दोनों ट्रक लेकर गया की ओर आ रहे थे, तभी रास्ते में किसी ने ट्रक रुकवाया और जड़ी-बूटी के नाम पर एक बोरा ट्रक में लोड करवा दिया। रास्ते में चेकिंग लगा हुआ था। आमस थाना की पुलिस ने जब ट्रक रुकवाया और तलाशी ली तो बोरा से गांजा बरामद हुआ, जिसके बाद दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया। रिहा कैदी ने बताया कि जब वो जेल आया था तो उसे कोई बीमारी नहीं थी। वो सामान्य कैदियों की तरह ही रहता और जेल परिसर में घूमा करता था। इसी बीच उसके पैर में चोट लगी और जख्म हो गया। जेल के डॉक्टरों ने इलाज में कोताही बरती। हीमोग्लोबिन की कमी बताकर उसे खून भी चढ़ाया गया। साथ ही गलत तरीके से इंजेक्शन व बिना स्टर्लाइज्ड किए चीरा लगाया गया था। उसके बाद जब अनुग्रह नारायण मगध मेडिकल कॉलेज में खून की जांच हुई तो ब्लड टेस्ट की रिपोर्ट में एचआईवी पॉजीटिव निकला। मुझे एड्स बताकर मेरे साथ अमानवीय व्यवहार किया जाने लगा। कैदी का आरोप है कि इसके पहले जब मेरे खून की जांच हुई थी तो मुझे कुछ नहीं था। बाद में कैदियों ने किसी तरह नेशनल ह्यूमन राइट एंड पब्लिक वेलफेयर ट्रस्ट तक अपनी बात पहुंचायी और फिर इसी संस्था की पहल पर दोनों कैदियों की रिहाई संभव हो पायी।    

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