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गरीब बिहार में स्कूलों में पढ़ाई करा पाना आम लोगों के लिए मुश्किल, हर साल दस फीसदी की दर से बढ़ रही है फीस

गरीब बिहार में स्कूलों में पढ़ाई करा पाना आम लोगों के लिए मुश्किल, हर साल दस फीसदी की दर से बढ़ रही है फीस

PATNA : बिहार को गरीब राज्य माना जाता है। लेकिन राज्य के प्राइवेट स्कूलों की फीस को देखकर ऐसा नहीं लगता है। पिछले दो साल से कोरोना के कारण स्कूल बंद  रहे.  बच्चे स्कूल नहीं गए। लेकिन प्राइवेट स्कूलों  को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। बिहार सरकार फीस कम करने की बात करती रही और दूसरी तरफ प्राइवेट स्कूल संचालक बच्चों के परिजन पर नामांकन और बढ़े हुए वसूलने में स्कूलों ने कोई नरमी नहीं बरती। यहां तक कि जब छात्रों के परिजनों ने इस पर आपत्ति जाहिर की तो बच्चों के प्रवेश पत्र और रिजल्ट रोककर बढ़ी हुई फीस जमा करायी गई। अभिभावक परेशान रहे और जिम्मेवार इसके प्रति आंख मूंदे रहे

हर साल बढ़ जाता है नामांकन फीस

बिहार के प्राइवेट स्कूलों का हाल यह है कि यहां हर साल फीस में कम से कम दस फीसदी की बढ़ोतरी की जाती है। यह सिलसिला पिछले तीन साल से चल रहा है। इस बार भी तमाम स्कूलों ने एलकेजी और नर्सरी नामांकन शुल्क बढ़ा दिया है। नामांकन के समय ही पूरे साल की फीस जमा करवा रहे हैं। बात अगर पटना के नए शिक्षा हब बन रहे दानापुर और खगौल के प्राइवेट स्कूलों की करें तो यहां पिछले दो साल में नामांकन में 15 हजार रुपए तक फीस बढ़ गए है। यही  स्थिति कंकड़बाग, पटना के बाइपास के किनारे संचालित स्कूलों में भी नजर आती है। 

साल भर का फीस भरने का नया तरीका

अब तक प्राइवेट स्कूलों में हर माह फीस वसूला जाता था। लेकिन अब यहां के प्राइवेट स्कूलों ने नया तरीका आजमा लिया है। अब सभी स्कूलों में एक साल की फीस लिया जा रहा है। इस फीस की रकम पचास हजार से लेकर एक लाख से अधिक तक पहुंच जाती है। एक साथ इतनी राशि जमा कर पाना किसी भी सामान्य परिवार के लिए आसान नहीं होता है। स्कूलवाले ऐसा इसलिए कर रहे हैं ताकि छात्र स्कूल अधिक फीस के कारण दूसरी जगह नहीं जाएं और उनके परिजनों का शोषण किया जाता रहे। 


सिर्फ पांच फीसदी बढ़ाने का प्रावधान

फीस  बढ़ोतरी को लेकर परिजनों की मांग पर तीन साल पहले 2019 में राज्य सरकार ने निजी स्कूल शुल्क वृद्धि विनियमन कानून बनाया गया। इसके तहत स्कूल को नामांकन शुल्क पांच फीसदी से अधिक नहीं बढ़ाना था। लेकिन प्राइवेट स्कूल संचालकों ने इसका भी तोड़ निकाल लिया। स्कूलों द्वारा ऑनलाइन पढ़ाई के नाम पर, कंप्यूटर के नाम पर शुल्क लिये गये। लेकिन ऑनलाइन पढ़ाई की सुविधा नहीं दी गयी।  

पिछले साल ज्यादातर स्कूलों ने मासिक शुल्क 20 से 25 फीसदी तक बढ़ाया। विवाद बढ़ा तो पटना आरडीडीई द्वारा 30 स्कूलों को कारण बताओ नोटिस भी जारी किया गया, लेकिन अभी तक इन स्कूलों को कुछ नहीं किया गया। जबकि कानून के प्रावधान के अनुसार पांच फीसदी से अधिक शुल्क बढ़ाने पर एक लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जायेगा।

किताबें और ड्रेसों पर मनमाना रेट

सबसे ज्यादा खर्च किताबों और स्कूल ड्रेस पर कराया जा रहा है। हर साल इन स्कूलों के ड्रेस बदल दिए जाते हैं। यह ड्रेस भी किसी कपड़े की दुकान से नहीं बल्कि स्कूल से ही या स्कूल द्वारा तय किए दुकान से खरीदनी होती है। जिसके लिए मनमाना पैसा वसूला जाता है। यही स्थिति किताबों को लेकर भी है। अब बच्चों की किताबें दुकानों की जगह स्कूलों से ही दी जाती है। जिनमें एक ही किताब के लिए हर स्कूल में अलग अलग मूल्य लिए जाते हैं। जो कि उसके मूल कीमत से दोगुनी या तीन गुनी अधिक होती है। 

दलाल भी है सक्रिय

कुछ स्कूूलों में तो स्थिति यह है कि यहां नामांकन कराने के लिए दलाल भी सक्रिय हैं. स्कूल प्रबंधन द्वारा उन्हें इस  काम के लिए लगाया जाता है। इसके लिए उन्हें कमीशन भी दी जाती है। साथ ही दलाल बच्चे के परिजन से भी पैसे वसूल करता है। 



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