मुंबई। उस महिला की अंतिम इच्छा थी कि जब मौत हो उसका शव पति के बगल में दफनाया जाए। लगभग तीन माह पहले महिला की मौत हो गई, लेकिन, हालात ऐसे बने कि महिला की अंतिम इच्छा पूरी नहीं सकी और उसके शव को दूसरी जगह दफन कर दिया गया। लेकिन, अब महिला के बेटे ने मां की आखिरी ख्वाहिश को पूरा कर दिया है। महिला को अब उसके पति के बगल में दफन किया गया है। लेकिन, इस तीन माह की अवधि में बेटे ने किस प्रकार का कानूनी लड़ाई का सामना किया, वह हैरान करनेवाला है।
घटना नासिक के मनमाड़ की है। यहां डमरे मला इलाके की रहने वाली मंजूलता वसंत क्षीरसागर (76) का 21 सितंबर को निधन हो गया था। डॉक्टर ने मौत की वजह दिल की बीमारी और निमोनिया को बताया। प्रशासन ने कोरोना की आशंका के चलते शव का RT-PCR टेस्ट करवाया। संक्रमण का खतरा देखते हुए प्रशासन ने रिपोर्ट आने से पहले ही मंजुलता के पार्थिव को क्रिश्चियन रीति-रिवाज से मालेगांव के एक कब्रिस्तान में दफना दिया।
मौत के आई कोरोना रिपोर्ट
मंजूलता के शव दफनाने के अगले दिन कोरोना रिपोर्ट मिली, जिसमें उन्हें निगेटिव बताया गया। जिसके बाद बेटे सुहास ने मां की अंतिम इच्छा पूरी करने की लड़ाई शुरू की। मनमाड़ में नागरी सुविधा केंद्र पर काम करनेवाले सुहास ने मालेगांव नगर निगम कमिश्नर को पत्र लिखा, पर कोई रिस्पांस नहीं मिला। इसके बाद सुहास लगातार नगर निगम गया। तकरीबन 64 दिनों बाद यानी 23 नवंबर को उसे नगर निगम से अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) मिली।
सुहास की परेशानी अभी खत्म नहीं हुई थी। इसके बाद शव निकालने के लिए तहसीलदार की मंजूरी भी जरूरी थी। जिसमें अर्जी लगाने के लगभग तीन सप्ताह बाद मंजूरी मिली। उसके 100 रुपये के बॉन्ड पर नियम और शर्तें पालन करने का एफिडेविट, नगर निगम का NOC, मालेगांव कैंप के चर्च से शव ले जाने के लिए NOC, मनमाड़ क्रिश्चियन मिशनरी की NOC और मेडिकल सर्टिफिकेट जैसे कई दस्तावेज जमा करने पड़े। आखिरकार गुरुवार को मालेगांव दंडाधिकारी के प्रतिनिधि एसपी विधाते समेत कई अफसरों और परिजन की मौजूदगी में 17 दिसंबर को दोबार दफन किया गया।
सुहास ने कहा मिला सुकून
सुहास ने बताया, कोरोना काल बहुत ही कठिन था। मां की अंतिम इच्छा के बावजूद भी सरकार के निर्देशों के आगे हम बेबस थे। कोरोना रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद से हमारा संघर्ष शुरू हुआ। लेकिन आखिरकार मां की आखिरी इच्छा पूरी करने में सफल हुआ। मेरे लिए यह बहुत ही सुकून वाला पल है।
मा-बेटे के रिश्ते को समझा
वहीं मालेगांव के तहसीलदार चंद्रजीत राजपूत ने बताया, जब हमारे पास इसकी अर्जी लगाई गई तो हमने इसे गंभीरता से लिया। अर्जी के पीछे मां बेटे का वह रिश्ता था, जो बेहद अनमोल था। जिसे देखते हुए कई विभाग के लोगों को पत्र लिख अनुमति ली गई। आखिरकार एक बेटा अपनी मां की अंतिम इच्छा पूरी कर पाया।