पटना... जैसे बाजार में सब्जी बिकती है वैसे ही चुनावी समर में राजनीतिक दल नौकरी बेच रहे हैं। बिहार में नेता कह रहे हैं नौकरी ले लो नौकरी। बिहार में चुनावी समर के दौरान मतदान चल रहा है। पहले चरण का मतदान खत्म हो चुका है और दूसरे व तीसरे चरण का मतदान होना बाकि है। ऐसे में राजनीतिक दलों की ओर से जनता के बीच धड़ल्ले से नौकरी बेची जा रही है। आलू-प्याज भले ही मंहगा मिले, लेकिन नौकरी यहां सरलता से मिलती दिखाई दे रही है। क्योंकि तमाम राजनीतिक दल चुनाव में नौकरी देने का वादा बड़ी आसानी से करते दिखाई दे रहे हैं। चुनाव शुरू होने से पहले जहां आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने अपने पहले दस्तखत से 10 लाख युवाओं को नौकरी देेने की बात की तो वहीं एनडीए ने भी सत्ता में आने पर 19 लाख रोजगार देने की बात कह डाली। इस बीच नौकरी देने का मुद्दा तो गरमाया, लेकिन लोग इस बात में भी उलझ कर रह गए हैं कि नौकरी व रोजगार में कितना फर्क है।
युवा वोटर तय करेंगे जीत-हार
बिहार चुनाव में जीत-हार युवा वोटर तय करेंगे। चुनाव में 18 से 39 साल के मतदाता निर्णायक साबित होंगे। 50 फीसदी मतदाता 39 से कम उम्र के हैं। चुनाव में 50 फीसदी मतदाता को साधने की कवायद दोनो तरफ से जारी है। पहली बार विधानसभा का चुनाव नौकरी और रोजगार पर हो रहा है।
दोनो दलों के दावे
महागठबंधन की ओर से 10 लाख नौकरी देने की बात तो कही ही गई, लेकिन इनकी सहयोगी कांग्रेस ने भी दो कदम आगे बढ़ कर कहा कि डिग्री लाओ नौकरी पाओ। कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि हमारी सरकार जिस दिन बनेगी उस दिन से ओपन रिक्यूरमेंट सिस्टम से नौकरी देंगे। वहीं आरजेडी के नेताओं का कहना है कि बार-बार रोडमैप बताने के बावजूद अगर नौकरी ले लो, नौकरी ले लो की बात कह कर सब्जी के भाव की तरह लोग बोलते हैं तो ये गलत है। जब प्रधानमंत्री के 2 करोड़ नौकरी देने का जुमला पर कोई सवाल नहीं उठाता है, तो तेजस्वी यादव के सच्चे दावे को ये झूठलाने पर तुले हैं।
वहीं जेडीयू के नेता ने कहा कि पूरा देश जानता है कि भ्रष्टाचार के आरोप में आरजेडी के नेता जेल में बैठे हुए हैं। जेडीयू नेता ने कहा कि सरकार का डेटा कुछ और कहता है, लेकिन पता नहीं साढ़े चारे लाख को डेटा कहां से लेकर आए हैं। लोग इनके वादे और नौकरी देने के दावे को झूठ समझ रहे हैं, जिसका परिणाम भी 10 नंवबर को देखने को मिल जाएगा।
तेजस्वी ने रोजगार को बनाया मुद्दा
बिहार के चुनावी समर में जानकारों की मानें तो तेजस्वी यादव ने बेरोजगारी को मुद्दा बनाया और उन्होंने समझा कि चुनाव में अगर रोजगार को मुद्दा बनाएंगे तो उसका असर जनता के बीच बेहतर होगा। इसके लिए उन्होंने बताया भी है कि स्वास्थ्य और पुलिस जैसे अहम महकमों में पदें रिक्त हैं, जिसे हमारी सरकार आने के बाद भरी जाएंगी। ये बात तेजस्वी यादव ने कई बार साफ-साफ कहा है।
पहली बार विपक्ष ने एजेंडा किया सेट
यह पहली बार चुनाव में देखने को मिला है कि विपक्ष ने किसी एजेंडा को सेट किया है तो तमाम पार्टी उसी पर बैटिंग-बोलिंग कर रही है। वर्तमान में ये पूरे बिहार में ही नहीं बल्कि पूरे देश में बेरोजगारी एक मुद्दा है। ऐसे में सबकी नजर इस पर लगी हुई है। अभी तो ये बड़ा सवाल है कि 10 लाख नौकरी कैसे देंगे, अभी तो तेजस्वी यादव सिर्फ बता रहे हैं कि वो किस-किस सेक्टर में नौकरी देंगे। इस पर तमाम पक्ष-विपक्ष के लोग लगे तेजस्वी यादव को घेरने में लगे हुए हैं।
एक जानकारी के मुताबिक इन आंकड़ों को देखें ---
1. राज्य में कुल सरकारी कर्मचारी 3 लाख 44 हजार हैं। इनके वेतन पर 26423 करोड़ रुपए खर्च।
2. पंचायत शहरी निकाय के शिक्षक रसोइया, विश्वविद्यालय कर्मी संविदाकर्मी, इनके वेतन पर 26314 करोड़ रुपए खर्च।
3. बिहार सरकार का वेतन पर ही कुल 52734 करोड़ रुपए खर्च।
4. राज्य में पेंशन भोगियों की संख्या 3 लाख 80 हजार।
5. पेंशन पर 20468 रुपए खर्च।
6. हर साल वेतन और पेंशन पर 73202 रुपए खर्च
7. बिहार का बजट है 2 लाख 11 हजार करोड़ रुपए
8. बजट का 34 प्रतिशत वेतन और पेंशन पर खर्च कर रही सरकार
मतदाताओं के आंकड़े---
आयु वर्ग मतदाता प्रतिशत
18-19 1079127 1.47 प्रतिशत
20-29 16726149 22.92 प्रतिशत
30-39 19962820 27.35 प्रतिशत
40-49 14709538 20.15 प्रतिशत
50-59 9773394 13.39 प्रतिशत
60-69 6341062 11.43 प्रतिशत
70-79 3090374 4.2 प्रतिशत
एक नजर में नौकरी और रोजगार का फर्क भी समझ लेते हैं।
नौकरी का मतलब - ऐसी सेवा जिसमें वेतन मिले। नौकरी दो तरह की होती हैं, सरकारी और प्राइवेट। उदाहरण के तौर पर शिक्षक, नर्स, पुलिस, क्लर्क।
रोजगार का मतलब - आजीविका के लिए किया गया कार्य। कोई भी ऐसा काम जिससे खर्चा निकले। उदाहरण के तौर पर व्यवसाय, कारोबार, सेवा या फिर धंधा।
पटना से मदन कुमार की रिपोर्ट