PATNA
: राज्यपाल
के सामने तेजस्वी यादव ने सरकार बनाने का दावा पेश किया है। जदयू ने तेजस्वी के इस
कदम को बचकाना बताया है। जदयू
ने तेजस्वी यादव को एक खुला
पत्र लिखा उन्हें संविधान और मर्यादा
की याद दिलायी है। जदयू ने कहा है कि 2005 में
बिहार के राज्यपाल बूटा सिंह ने 22 मई, 2005
में कैसे विधानसभा भंग कर दी गयी थी। उस कार्रवाई को आप क्या मानते हैं? उस समय
राजद के पास 91 विधायक थे, जबकि उनकी आपकी राय क्या है ।
जदयू ने खुले खत में लिखा
है- तेजस्वी जी, लोकतंत्र
में 'बबुआगिरी' काम नहीं आता। लोकतंत्र, संविधान और मर्यादाओं से
चलती है। वैसे इसमें आपका दोष भी नहीं। आपको अनुभव और मेहनत के बिना ना केवल पद, बल्कि संपत्ति भी हासिल
हो गयी है। राजनीतिक और पारिवारिक अनुकंपा पर अगर सबकुछ हासिल हो जाए, तो ऐसे में ज्ञान की कमी
होना लाजिमी है। वैसे कर्नाटक में सरकार बनने के बाद आपके मन में बालमन की तड़प
समझी जा सकती है। परंतु, ऐसे
समय किसी चीज को जल्दी पाने की ललक नुकसानदेह है। कहा भी गया है- ''कारज धीरे होत है, काहे होत अधीर। समय
पाय तरुवर फरै केतक सींचै नीर।''
खत में लिखा है कि वैसे, आपके पिताजी लालू प्रसाद
जी अभी भ्रष्टाचार के आरोप में सजायाफ्ता हैं। ऐसे में दल के अन्य वरिष्ठ नेताओं
से आपको इसकी जानकारी ले लेनी चाहिए। आप लोकतंत्र की हत्या और संविधान के साथ
छेड़छाड़ की बात करते हैं, तो
क्या वर्ष 2005 में
बिहार के राज्यपाल बूटा सिंह द्वारा 22 मई, 2005 की आधी रात को राज्य में विधायकों की
खरीद-फरोख्त रोकने का हवाला देते हुए विधानसभा भंग कर दी गयी थी। उस कार्रवाई को
आप क्या मानते हैं? उस समय
राजद के पास 91 विधायक
थे, जबकि
एनडीए के पास 92 और 10 निर्दलीय
विधायकों का समर्थन था। उससमय को आप क्या कहेंगे? बाद में राहत की बात थी
कि सुप्रीम कोर्ट ने तत्कालीन राज्यपाल बूटा सिंह के फैसले को असंवैधिक करार दिया
था। वैसे, आपके
पिताजी को राजनीतिक विषय में बोलने पर अदालत ने रोक लगा दी है, परंतु आप उन्हीं से पूछ
लेंगे कि क्या उस समय उसने लोकतंत्र की हत्या नहीं करवाई थी?