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मेरा नाम जूता है, किसी पर भी मेरा दिल आ सकता है… बुश पर भी आया और चिदंबरम का चेहरा भी भाया

मेरा नाम जूता है, किसी पर भी मेरा दिल आ सकता है… बुश पर भी आया और चिदंबरम का चेहरा भी भाया

जूता से कोई नहीं है अछूता। जिस चेहरे को चूमने के लायक समझ बैठा वहां जा लगता है।चाहे वो चेहरा अमेरिकी राष्ट्रपति बुश का हो या फिर भारत के पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम का। अब भाजपा प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा राव भी जूते की प्रेम कहानी के अभिन्न अंग हो गए।

  कुछ ही दिन पहले यूपी से आनेवाले भाजपा के सांसद ने अपने ही विधायक पर भरी सभा मे जमकर जूते बरसाए थे। वही जूता आज बीजेपी के नए कार्यालय में प्रवक्ता जीवीएल पर बरस गया। हां अलबता जूते बरसाने वाले किरदार हर बार जरुर बदल जाते हैं।

शुरुआत अमेरिका से 

बता दें कि जूता कांड की शुरुआत 2008 में विश्व के सबसे विकसित देश अमेरिका से हुआ। एक पत्रकार ने प्रेस वार्ता के दौरान अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति पर जूता फेंका था।उस पत्रकार का नाम मुंतज़र अल जैदी था।तब से लेकर आज तक कई बड़े शख्स,खासकर नेता जूते के शिकार हो चुके हैं।

 इसी तरह पूर्व पाकिस्तानी पीएम नवाज शरीफ,पूर्व केंद्रीय मंत्री चिदम्बरम,और दिल्ली के सीएम केजरीवाल को भी जूते का आक्रोशित प्रेम झेलना पड़ा है।

 इसी तरह 2009 में लालकृष्ण आडवाणी की तरफ भी एक व्यक्ति ने जूता उछाल दिया था। वहीं कांग्रेसी नेता नवीन जिंदल , कर्नाटक के पूर्व सीएम येदियुरप्पा, अकाली दल के नेता प्रकाश सिंह बादल,पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, अखिलेश यादव,नितिन गडकरी भी जूते के जलवा को झेल चुके हैं।

जूता क्या कहना चाहता है

सवाल यह है कि आखिर जूता चलता क्यों है? खासकर नेताओं पर ही क्यों चलता है?  आज तक जितने जूते जितने नेताओं पर चले हैं सब की वजहें अलग अलग है। लेकिन सबकी बुनियाद में एक अहम मुद्दा है वह है असंतोष। असंतोष का आधार भी अलग- अलग है।ज्यादातर जूता कांडों की वजह पूर्व में सरकारों और उनसे जुड़े नेताओं के खुद के कर्म है वहीं कुछ व्यक्तिगत भी।जब संबंधित व्यक्ति को न्याय नहीं मिलता तो हारकर वह जूते का सहारा लेता है।इसके बाद क्या होता है यह सबको पता है।

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