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कृषि कानूनों को कुछ सालों के लिए स्थगित करने के पक्ष में नहीं हैं बिहार के किसानः रालोसपा

कृषि कानूनों को कुछ सालों के लिए स्थगित करने के पक्ष में नहीं हैं बिहार के किसानः रालोसपा

PATNA : राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के किसान चौपाल में किसान खुल कर अपनी बात कह रहे हैं. वे न सिर्फ इन कानूनों का विरोध कर रहे हैं. बल्कि सरकार के उस प्रस्ताव को भी ठीक नहीं मान रहे हैं जो सरकार ने किसानों के सामने रखा था. सरकार ने कृषि कानूनों को डेढ़ साल तक स्थगित करने का प्रस्ताव किसान संगठनों को दिया था. बिहार के किसान इसे सही नहीं मान रहे हैं. रालोसपा के राज्यव्यापी किसान चौपाल में किसान सरकार के इस प्रस्ताव से सहमत नहीं हैं और इसे भरमाने वाला मान रहे हैं. किसानों का कहना है कि दरअसल सरकार ऐसा कर किसान आंदोलन को खत्म करने की साजिश रच रही है. किसानों ने चौपाल में अपने मन की बात कही और कहा की इस तरह की बात कर सरकार किसानों के आंदोलन को कमजोर करने में लगी है. राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव व प्रवक्ता फजल इमाम मल्लिक और प्रदेश महासचिव व प्रवक्ता फजल इमाम मल्लिक ने प्रेस कांफ्रेंस में यह जानकारी दी. दोनों नेताओं ने बताया कि बिहार के किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानून बनाए जाने के पक्ष में हैं. उनका मानना है कि इससे बिहार के किसान को फायदा होगा. किसान चौपाल में रालोसपा नेताओं से किसान इन कानूनों को लेकर सवाल कर रहे हैं और तमाम बातों की जानकारी लेने के बाद बिहार और देश की खेती-किसानी पर सवाल करते हैं. किसानों ने कहा कि अगर न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानून बनता है तो उससे बिहार के किसानों को भी फायदा होगा. रालोसपा काले कृषि कानूनों के खिलाफ देशव्यापी किसान आंदोलन के समर्थन में बिहार में किसान चौपाल लगा रहे है, प्रेस कांफ्रेंस में रालोसपा के उपाध्यक्ष शंकर झा आजाद के अलावा राघव कुशवाहा, भुनेश्वर कुश्वाहा, वीरेंद्र दांगी, कार्यालय प्रभारी अशोक कुशवाहा, संजीव कुमार भी मौजूद थे. रालोसपा का किसान चौपाल कार्यक्रम दो फरवरी से बिहार में शुरू हुआ है. किसान चौपाल 28 फरवरी तक लगाई जाएगी.

किसान चौपाल की जानकारी देते हुए पार्टी नेताओं ने कहा कि किसान चौपाल के जरिए पार्टी किसानों तक इन कानूनों की खामियों को बताने में कामयाब हो रही है. मल्लिक और धीरज ने बताया कि इन कृषि कानूनों में सफेद कुछ भी नहीं है, सच तो यह है कि पूरा कानून ही काला है और यह अगर पूरी तरह लागू हो गया तो किसान अपने खेतों में ही मजदूरी करने के लिए मजबूर हो जाएगा. रालोसपा की किसान चौपाल शनिवार को गोपालगंज, बक्सर, मधुबनी, व मोतिहारी जिलों में लगाई गई. एक हफ्ते में करीब बीस जिलों में चौपाल लगाई जा चुकी है. अगले कुछ दिनों में खगड़िया, नालंदा, मुंगेर, जमई, बांका, भागलपुर, सम्सतीपुर, मोतिहारी, कैमूर, किशनगंज व किशनगंज जिलों के करीब दो हजार गांवों में किसान चौपाल लगाई जाएगी.

रालोसपा इन कानूनों की खामियों की चर्चा पार्टी के कार्यक्रम किसान चौपाल में कर रही है और किसानों व आम लोगों को बता रही है कि तीन कृषि कानून दरअसल किसानों के लिए डेथ वारंट है. इन कानूनों के जरिए केंद्र सरकार किसानों को गुलाम बनाने पर तुली हुई है. बिहार में दो फरवरी को काले कृषि कानूनों की प्रतियां जला कर रालोसपा ने किसान चौपाल की शुरुआत की थी.

पार्टी नेताओं ने बताया कि बिहार में किसान जानना चाह रहे हैं कि इन कानूनों में ऐसा क्या है. जिससे देश के किसान आंदोलित है और दिल्ली की सीमा पर आंदोलन चल रहा है. किसान इन कानूनों को लेकर रालोसपा नेताओं से सवाल कर रहे हैं और पार्टी के जिला प्रभारी व दूसरे नेता उनके सवालों का जवाब दे रहे हैं और उन्हें इन कानूनों से होने वाले नुकसान की जानकारी भी दे रहे हैं. पार्टी नेता और कार्यकर्ता गांवों के अलावा शहरों में भी बुद्धीजिवियों और छात्रों के अलावा समाज के वंचित तबके के बीच जाकर इन कानूनों की सच्चाई सामने रख रहे हैं और बता रहे हैं कि यह कानून किसानों को गुलाम बनाने वाला है. इससे किसानों के साथ-साथ समाज के दूसरे तबके का अहित होगा. किसान चौपाल बिहार के हर जिले में लगाई जा रही है और 28 फरवरी तक रालोसपा का यह कार्यक्रम चलेगा. रालोसपा ने दस हजार गांवों में किसान चौपाल लगाने का लक्ष्य तो रखा ही है इसके अलावा 25 लाख किसानों तक पहुंच कर इन कानूनों की जानकारी और जागरूक बनाने का भी लक्ष्य रखा है. 



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