बिहार उत्तरप्रदेश मध्यप्रदेश उत्तराखंड झारखंड छत्तीसगढ़ राजस्थान पंजाब हरियाणा हिमाचल प्रदेश दिल्ली पश्चिम बंगाल

LATEST NEWS

कस्तूरबा की डायरी: गांधी और बा कि शादी की पहली रात,उनकी पीठ पर मेरे नाखूनों के चार अर्धचन्द्राकार खरोचों ने मुझे उतेजित कर दिया....फिर.....

कस्तूरबा की डायरी: गांधी और बा कि शादी की पहली रात,उनकी पीठ पर मेरे नाखूनों के चार अर्धचन्द्राकार खरोचों ने मुझे उतेजित कर दिया....फिर.....

DESK : कमरे में गुलाब की पंखुड़ियां बिखरी हुई थी और माहौल में मीठी गंध भरी थी ।खिड़की के पास एक स्टूल पर रखी तेल की लालटेन प्रकाश बिखेर रही थी। पलंग पर वनस्पति रंगों का पलंगपोस बिछा हुआ था । जिस पर आदिवासी नमूने बने हुए थे। मोहनदास पलंग पर बैठ गए। 

मैं सिर झुकाए उनके पास खड़ी रही। मुझे समझ नहीं आया कि मुझे क्या करना चाहिए । वे तकिए पर अधलेटे होकर मेरी ओर पलट गए।मैं खामोशी से वहां खड़ी रही। उनके बोलने का इंतजार करते रही... तभी एक आवाज आई "यहां आओ कस्तूर" उन्होंने मुझे धीरे से खींचते हुए कहा और अपनी बांहें में मेरी गिर्द कस दीं। मैंने अपनी आंखें बंद कर ली और शरमाते हुए उनके प्रति समर्पण कर दिया।

जब हम एक दूसरे को थामे हुए पलंग पर लेटे हुए थे तो उन्होंने मेरी उंगलियां पकड़ी और मेरे हाथों, गालों, गर्दन और ठोड़ी को सहलाते रहे, रहे फिर उनके हाथों उस महीन वस्त्र पर ठिठक गए जिसने मेरा गला ढका हुआ था ।उन्होंने उसे खींचा और वह छिटककर गिर गया। मैं शरमा गई और अनायास मैंने अपनी साड़ी के एक छोर से चेहरा ढक लिया।फिर मैंने अपने ऊपर चादर खींच ली,ठोड़ी तक ।उन्होंने मुझे पास खींचा मगर मैं अटपटे ढंग से खुद में सिमट गई।मोहनदास लालटेन बुझाने के लिए उठे ।कमरा अंधेरे में डूब गया। कोने में रखे मिट्टी के दीए की हल्की सी टीमटीमाहट और कांच की खिड़की से छनकर आती पूर्णमासी के चांद की रूपहली किरणें हमारे बदनों को दिव्य नीले प्रकाश में नहला रही थी ।उन्होंने मुझे अपनी बाहों में खींच लिया। 

मैं सिहर गई ।मेरा सारा शरीर हल्का लगने लगा था ।ऐसा एहसास जो सुखद भी था और नया भी ।यह मेरे पति थे और मेरे स्वामी भी और मां ने कहा था उनका मेरे ऊपर अधिकार है कि वे जो चाहे मेरे साथ करें।मेरे मन और बदन में हर किस्म की उत्तेजनाएं उठ रही थीं..मेरे भीतर एक गर्म सा ताव छितर गया और मुझे तेज धमक महसूस होने लगी।  मैंने अपनी हर तंत्रिका को शिथिल किया और स्वयं को उन्हें सौंप दिया मानो यह देवताओं के प्रति भेंट हो,एक पूर्ण और उन्मुक्त समर्पण।

हमारे विवाह के 72 घंटे बाद मेरा विवाह पूर्णता पा गया था। मैं आखिरकार अपनी जेठानीयों गंगा और हर कुंवर की गौरवान्वित श्रेणी में पहुंच गई थी।उनके पीठ पर मेरे नाखूनों की चार अर्धचंद्राकार खरोचों ने मुझे उत्तेजित कर दिया। यह अहसास रोमांचकारी था कि मोहनदास और में आत्म खोज और वासना की दुनिया में आवेग के एक नए सफर पर निकल पड़े हैं ......कस्तूरबा कि रहस्यमयी डायरी से ........क्रमश:.....अगले अंक में

Suggested News