पटना... कांग्रेस ने अपना घोषणापत्र जारी करते हुए कई वादे किए, जिसमें शराबबंद कानून को लेकर समीक्षा की बात की गई है। पार्टी की तरफ से जारी घोषणापत्र में कहा गया है कि हमारी सरकार बिहार के वर्तमान शराबबंदी काननू की समीक्षा करते हुए इसमें आवश्यक सुधार करेगी, जिससे राज्य के गरीब एवं असहाय लोगों के साथ न्याय हो सके। एक आंकड़े के अनुसार 1 अप्रैल 2016 से लेकर 31 अगस्त 2020 तक तीन लाख से अधिक लोग शराबबंदी के केस में गिरफतारी हो चुकी है। इनके परिवार दर-दर की ठोकरे खाने को मजबूर हैं।
सही मायने में शराबबंदी केवल कागजों तक ही सिमित हैं। पर इसी के नाम पर एक सामानंतर अर्थव्यवस्था पुलिस व माफिया के सांठगांठ से सरकार के साथ ही चल रही है। इससे सरकारी कोष में तो घाटा हो रहा है और साथ-साथ ही सरकार सकारात्मक उद्देश्यों से भटक रही है।
पुलिस के सहायता से यह अवैद्यानिक व्यापार राज्य की पंचायती स्तर पर पनप रहा है। बेरोजगार युवक भी इस अवैद्यानिक व्यापार की ओर आकर्षित हैं। इनमें से अधिकांश दलित-महादलित परिवार के हैं। पुलसि का सारा ध्यान जघन्य एवं आम अपराधों से हटकर उत्पाद शुल्क एवं वस्तुओं की ओर ज्यादा दिखता है। फलस्वरूप पुलिस एवं प्रशासन को तो व्यक्तिगत लाभ हो रहा है, लेकिन हमारी मासूम जनता लगातार प्रताड़ित हो रही है।
जदयू का पलटवार
बिहार में शराबबंदी कानून को लेकर कांग्रेस द्वारा अपने चुनावी घोषणा पत्र में समीक्षा की बात कहे जाने पर जदयू के कार्यकारी अध्यक्ष और सरकार में मंत्री अशोक चैधरी ने कहा कि कांग्रेस के लोगों को सामाजिक सरोकार से कोई मतलब नहीं है उन्होंने कहा कि कांग्रेस की जो हालत हुई है वह इसी वजह से है और आने वाले वक्त में कांग्रेस की स्थिति और भी खराब होगी